प्राचीन बंगभूमि, जिसमें वर्तमान बँगलादेश भी सम्मिलित था, परम्परागत रूप से शक्ति-उपासना का विशिष्ट केन्द्र रही है। दुर्गापूजा यहाँ का सबसे बड़ा उत्सव माना जाता है। इस भू-भाग में १४ शक्तिपीठ स्थित हैं। इनका विवरण इस प्रकार है-
१. कालिका
कोलकाता पूर्वी भारत का एक महानगर और पश्चिम बंगाल-प्रान्त की राजधानी है। गङ्गा जिसे यहाँ हुगली कहा जाता है, इसके तट पर बसे इस नगर में भगवती के कई प्रसिद्ध स्थान हैं। परम्परागत रूप से काली घाट स्थित काली मन्दिर की प्रसिद्धि शक्ति पीठ के रूप में सर्वमान्य है। यहाँ सती देह के दाहिने पैर की चार अँगुलियाँ (अँगूठा छोड़कर) गिरी थीं। यहाँ की शक्ति 'कालिका' और भैरव 'नकुलीश' हैं। इस पीठ में महाकाली की भव्य मूर्ति विराजमान है, जिसकी लम्बी लाल जिह्वा मुख के बाहर निकली हुई है। देवी मन्दिर के समीप ही नकुलेश शिव का मन्दिर स्थित है। कुछ लोग कोलकाता में टालीगंज बस अड्डे से २ कि०मी० पर स्थित आदिकाली के प्राचीन मन्दिर को भी शक्तिपीठ के रूप में मान्यता देते हैं। प्राचीन मन्दिर भग्नप्राय होने से उसका आंशिक जीर्णोद्धार हुआ है। यहाँ एकादश रुद्र के ग्यारह शिवलिङ्ग भी स्थापित हैं। गङ्गा तट पर ही दक्षिणेश्वर काली का एक प्रसिद्ध भव्य मन्दिर है। यहाँ परम हंस श्री राम कृष्ण देव ने जगदम्बा की आराधना की थी।
२. युगाद्या
पूर्वी रेलवे के वर्धमान (बर्दवान) जंकशन से लगभग ३२ कि०मी० उत्तर की ओर क्षीर ग्राम में यह शक्तिपीठ स्थित है। यहाँ देवी देह के दाहिने पैर का अँगूठा गिरा था। यहाँ की शक्ति 'भूतधात्री' और भैरव 'क्षीरकण्टक' हैं।
३. त्रिस्त्रोता
पूर्वोत्तर रेलवे में सिलीगुड़ी-हल्दीवाड़ी रेलवे लाइन पर जलपाइगुड़ी स्टेशन है। यह जिला मुख्यालय भी है। इस जिले के बोदा इलाके में शालवाड़ी ग्राम है। यहाँ तीस्ता नदी के तट पर देवी का प्रसिद्ध मन्दिर है। यहाँ देवी देह का वाम चरण गिरा था। यहाँ की शक्ति 'भ्रामरी' और भैरव 'ईश्वर' हैं।
४. बहुला
यह शक्तिपीठ हावड़ा से १४४ कि०मी० तथा नवद्वीप धाम से ३९ कि०मी० दूर कटवा जंकशन से पश्चिम केतु ब्रह्म ग्राम या केतु ग्राम में है। यहाँ देवी देह की वाम बाहु गिरी थी। यहाँ की शक्ति 'बहुला' और भैरव 'भीरुक' हैं।
५. वक्त्रेश्वर
पूर्वी रेलवे की मुख्य लाइन में ओंडाल जंकशन है, वहाँ से एक लाइन सैन्थिया जाती है। इस लाइन पर ओंडाल से ३५ कि०मी० की दूरी पर दुब्राजपुर स्टेशन है। इस स्टेशन से ११ कि०मी० उत्तर तप्त जल के कई झरने हैं। तप्त जल के इन झरनों के समीप कई शिवमन्दिर भी हैं। बाकेश्वर नाले के तट पर होने से यह स्थान बाकेश्वर या वक्त्रेश्वर कहलाता है। यह शक्तिपीठ सैन्थिया जंकशन से १२ कि०मी०की दूरी पर श्मशान भूमि में स्थित है। यहाँ का मुख्य मन्दिर बाकेश्वर या वक्त्रेश्वर शिवमन्दिर है। यहाँ पाप हरण कुण्ड है। जनश्रुति के अनुसार यहाँ अष्टावक्र ऋषि का आश्रम था। देवी देह का मन यहाँ गिरा था। यहाँकी शक्ति 'महिषमर्दिनी' और भैरव 'वक्त्रनाथ' हैं।
६. नलहटी
यह शक्तिपीठ बोलपुर शान्तिनिकेतन से ७५ कि०मी० तथा सैन्थिया जंकशन से मात्र ४२ कि०मी० दूर नलहटी रेलवे स्टेशन से ३ कि०मी० की दूरी पर नैऋत्य कोण में स्थित एक ऊँचे टीले पर है। यहाँ देवी देह की उदर नली का पतन हुआ था। कुछ लोगों की मान्यता है कि यहाँ शिरोनली का पतन हुआ था। यहाँ की शक्ति 'कालिका' और भैरव 'योगीश' हैं।
७. नन्दीपुर
पूर्वी रेलवे की हावड़ा-क्यूल लाइन में सैन्थिया स्टेशन से अग्निकोण में थोड़ी दूर पर नन्दीपुर नामक स्थान में एक बड़े वटवृक्ष के नीचे देवी मन्दिर है, यह ५१ शक्तिपीठों में से एक है। यहाँ देवी देह से कण्ठहार गिरा था। यहाँ की शक्ति 'नन्दिनी' और भैरव 'नन्दिकेश्वर' हैं।
८. अट्टहास
यह शक्तिपीठ वर्धमान (बर्दवान) से ९३ कि०मी० दूर कटवा-अहमदपुर लाइन पर लाबपुर स्टेशन के निकट है। यहाँ देवी देह का अधरोष्ठ (नीचे का होठ) गिरा था। यहाँ की शक्ति 'फुल्लरा' और भैरव 'विश्वेश' हैं।
९. किरीट
यह शक्तिपीठ हावड़ा-बरहरवा रेलवे लाइन पर हावड़ा से २३ कि०मी० दूर लालबाग कोट स्टेशन से लगभग ५ कि०मी०पर बड़ नगर के पास गङ्गा तट पर स्थित है। यहाँ देवी देह से किरीट नामक शिरोभूषण गिरा था। यहाँ की शक्ति 'विमला, 'भुवनेशी' और भैरव 'संवर्त' हैं।
१०. यशोर
यह शक्तिपीठ बृहत्तर भारत के बंगप्रदेश में और वर्तमान में बँगलादेश में स्थित है। यह खुलना जिले के जैशोर शहर में है। यहाँ देवी देह की वाम हथेली गिरी थी। यहाँ की शक्ति 'यशोरेश्वरी' और भैरव 'चन्द्र' हैं।
११. चट्टल
यह शक्तिपीठ भी बाँगलादेश में है। यह चटगाँव से ३८ कि०मी० दूर सीताकुण्ड स्टेशन के पास चन्द्रशेखर पर्वत पर भवानी मन्दिर के रूप में स्थित है। चन्द्रशेखर शिव का भी यहाँ मन्दिर है। जो समुद्र की सतहसे लगभग ३५० मी० की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ निकट सीताकुण्ड, व्यासकुण्ड, सूर्यकुण्ड, ब्रह्मकुण्ड, जनकोटिशिव, सहस्त्रधारा, बाडवकुण्ड तथा लवणाक्ष तीर्थ हैं। बाडवकुण्ड में से निरन्तर आग निकला करती है। शिवरात्रि को यहाँ मेला लगता है। यहाँ देवी देह की दक्षिण बाहु गिरी थी। यहाँ की शक्ति 'भवानी' और भैरव 'चन्द्रशेखर' हैं।
१२. करतोयातट
वर्तमान में यह शक्तिपीठ भी बँगलादेश में ही है। यह लालमनीरहाट-संतहाट रेलवे लाइन पर बोंगड़ा स्टेशन से दक्षिण-पश्चिम में ३२ कि०मी० दूर भवानीपुर ग्राम में स्थित है। यहाँ देवी देह का बायाँ तल्प गिरा था। यहाँ की शक्ति 'अपर्णा' और भैरव 'वामन' हैं।
१३. विभाष
यह शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल में मिदनापुर जिले में ताम्रलुक में है, वहाँ रूपनारायण नदी के तट पर वर्ग भीमा का विशाल मन्दिर ही यह शक्तिपीठ है। मन्दिर अत्यन्त प्राचीन है। दक्षिण-पूर्व रेलवे के पास कुड़ा स्टेशन से २४ कि०मी० की दूरी पर यह स्थान है। यहाँ सती का बायाँ टखना (एड़ीके ऊपर की हड्डी) गिरी थी। यहाँ की शक्ति 'कपालिनी' 'भीमरूपा' तथा भैरव 'सर्वानन्द' हैं।
१४. सुगन्धा
यह शक्तिपीठ भी वर्तमान में बँगलादेश में है। यहाँ पहुँचने के लिये खुलना से बारीसाल तक स्टीमर से जाया जाता है। बारीसाल से २१ कि०मी० उत्तर में शिकारपुर ग्राम में सुगन्धा (सुनन्दा) नदी के तट पर उग्र तारा देवी का मन्दिर है, यह ५१ शक्तिपीठों में से एक है। यहाँ देवी देह की नासिका गिरी थी। यहाँ की शक्ति 'सुनन्दा' और भैरव 'त्र्यम्बक' हैं।
डॉ मदन मोहन पाठक (धर्मज्ञ)