पूजाकार्यों में चाँदी का उपयोग निषिद्ध माना गया है, परंतु उसमें विद्यमान रजोगुण और वायुतत्त्व के कारण पितर नैवेद्य (भोजन)...
महात्माओं द्वारा कल्याण के निमित्त यह श्रुति दूधर्मेसे रुद्राष्टाध्यायी रूप नवनीत निकालकर साररूप लिया गया है।...
प्रतिष्ठा में जहां एक कुण्ड का विधान वहाँ ईशान, पूर्व, पश्चिम, सत्तर आदि का कण्ड आचार्य कुण्ड होता है। प्रतिष्ठा...
व्यक्ति, समाज या राष्ट्र के अंगों का आन्तरिक समन्वय १७ प्रकार से है जो दीखता नहीं है। वह कृष्ण गति...
गर्भशुद्धिकारक हवन, जातकर्म, चूडाकरण तथा मौञ्जीबन्धन (उपनयन) आदि संस्कारों के द्वारा द्विजों के बीज तथा गर्भसम्बन्धी दोष- पाप नष्ट हो जाते हैं।...
भगवान सूर्यदेवजी ब्रह्माजी, भगवान विष्णु और शिवजी का साकार संयुक्त स्वरूप होने के कारण परब्रह्म का आसानी से बोधगम्य साकार रूप...
उषा की लाली से पूर्व ही स्नान करना उत्तम है। इससे प्राजापत्य व्रत का फल प्राप्त होता है। तेल लगाकर...
श्रीकृष्ण को केवल गीता में भगवान् कहा है, जब वे समाधि अवस्था में ब्रह्म के साथ एकाकार थे। महाभारत में...
भगवान् विष्णु सकल देवताओं के स्वरूप हैं। श्री हरि की अर्चा से सकल देवताओं की अर्चा का फल मिलता है...
अस्मिन् मार्गे सर्वश्रेयोमूलभूतो गुरुरेव, इस (नाथपंथ, सिद्धमत, सिद्धामृत) मार्ग में गुरु ही समस्त मंगलों का स्वरूप (मूल आधार) है, दूसरा...