श्री दुर्गा सप्त श्लोकी जप विधानम्

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  • धर्म-पथ
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  • 27 March 2025
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डॉ दीनदयाल मणि त्रिपाठी प्रबंध संपादक-

दुर्गा सप्तश्लोकी एक महान माला मन्त्र है, जो सप्तशतीरूपी क्षीरसागरका मन्थन कर मात्र ७ श्लोकों के रूप में ऋषियों द्वारा प्रकट है। इसके सौवेधि पाठ / जप मात्र से ही समग्र चण्डी पाठ की फल प्राप्ति हो जाती है। भगवती दुर्गा की उपासना का यह अति सरल विधान है। विविध दिनों में अनुष्ठानपूर्वक विविध नैवेद्यों के निवेदन से जिन फलों की प्राप्ति उपासकों को होती है वह निम्न सारिणी से द्रष्टव्य है।

वारनैवेद्यफल
रविवारमधुर ओदन (मीठा भात)रोगशमन
सोमवारमधु, शर्करा, फलसम्पदा, यश, उच्च पद
मङ्गलवारचित्रान्न, फल, मधुसर्व ग्रह दोष शमन
बुधवारगोदुग्ध पायससन्तति प्राप्ति
बृहस्पतिवारदधि ओदनमेधा तथा ज्ञान
शुक्रनारिकेल तथा अन्य फलविवाह तथा दाम्पत्य सुखलब्धि
शनिवारतिलसर्व विघ्न तथा चिन्ताशमन

आचमनम् ॥

शुक्लाम्बर धरं विष्णुं शशि वर्णं चतुर्भुजम् । 

प्रसन्न वदनं ध्यायेत् सर्व विघ्नोऽपशान्तये ॥

 

प्राणायामः 

संकल्पम्-

ममोपात्त समस्त दुरित क्षय द्वारा श्री दुर्गा प्रीत्यर्थं श्रीदुर्गासप्तश्लोकी माला महामन्त्र जपं करिष्ये ॥

 

॥ ऋष्यादि न्यासः ॥

अस्य श्री दुर्गा सप्त श्लोकी माला महामन्त्रस्य। नारायण ऋषिः। अनुष्टुबादीनि छन्दांसि । श्री दुर्गा लक्ष्मी सरस्वती देवता ॥ ऐं बीजं। क्लीं शक्तिः ह्रीं कीलकं ॥ श्री दुर्गा लक्ष्मी सरस्वती प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ॥

 

॥ अंग न्यासः ॥

ऐं अंगुष्ठाभ्यां नमः। 

ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः ।

क्लीं मध्यमाभ्यां नमः। 

ऐं अनामिकाभ्यां नमः। 

ह्रीं कनिष्ठिकाभ्यां नमः। 

क्लीं करतल करपृष्टाभ्यां नमः।

 

॥ हृदयादि न्यासः ॥

ऐं हृदयाय नमः।

 ह्रीं शिरसे स्वाहा। 

क्लीं शिखायै वषट् ।

ऐं कवचाय हुम् ह्रीं नेत्र त्रयाय क्लीं अस्त्राय फट्।

 

ॐ भूर्भुवस्सुवरोम् इति दिग्बन्धः ॥

॥ ध्यानम् ॥

मातमें मधुकैटभघ्नि महिष प्राणापहारोद्यमे । 

हेला निर्मित धूम्रलोचन वधे हे चण्ड मुण्डाऽचिनी । 

निश्शेषी कृत रक्तबीज दनुजे नित्ये निशुंभापहे। 

शुभ ध्वंसिनि संहराशु दुरितं दुर्गे नमस्तेऽम्बिके ॥

 

॥ पंच उपचार पूजा ॥

लं पृथिव्यात्मिकायै गन्धं समर्पयामि हं आकाशात्मिकायै पुष्पैः पूजयामि। 

यं वाय्वात्मिकायै धूपं आघ्रापयामि। 

रं अग्न्यात्मिकायै दीपं दर्शयामि। 

वं अमृतात्मिकायै अमृतं महा नैवेद्यं निवेदयामि। 

सं सर्वात्मिकायै सर्वोपचार पूजां समर्पयामि ॥

 

॥ मन्त्र जपम् ॥

ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा। 

बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ॥१॥

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेष जन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि । 

दारिद्र्य दुःख भयहारिणी का त्वदन्या 

सर्वोपकार करणाय सदा चित्ता ॥२॥

 

सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। 

शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमो ऽस्तु ते ।।३।।

शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे। 

सर्वस्यार्ति हरे देवि नारायणी नमोऽस्तु ते॥ ४॥ 

सर्व स्वरूपे सर्वेशे सर्व शक्ति समन्विते। 

भयेभ्यस् त्राहि नो देवी दुर्गे देवी नमोऽस्तु ते ॥ ५॥

रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलान् अभीष्टान् । 

त्वां आश्रितानां न विपन्नराणां त्वां आश्रिता याश्रयतां प्रयान्ति ॥ ६॥

सर्वा बाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्या ऽ खिलेश्वरि।

एवमेव त्वया कार्यं अस्मद् वैरि विनाशनम् ॥ ७॥

 

॥ हृदयादि न्यासः ॥

ऐं हृदयाय नमः।

ह्रीं शिरसे स्वाहा।

क्लीं शिखायै वषट् ऐं कवचाय हुँ।

ह्रीं नेत्र त्रयाय वौषट् । क्लीं अस्त्राय फट्।

ॐ भूर्भुवस्सुवरोम् इति दिग् विमोकः ॥



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