भगवान् विष्णु सकल देवताओं के स्वरूप हैं। श्री हरि की अर्चा से सकल देवताओं की अर्चा का फल मिलता है और सकल देवतार्चन का फल विष्णु पद-प्राप्ति ही है-
विष्णुर्वे सर्वा देवताः । विष्णु सर्वेषामधिपतिः परमः । पुराणः ।
परो लोकानाम् अग्निवें देवानामवमो विष्णुः ।' परमस्तदन्तरेण अन्या देवताः ।। (ऐतरेय ब्राह्मणम् १.१)
स्मृति के अनुसार भी श्रीहरि ही सभी सत्कर्मों का फल देते हैं-
सर्वेऽपि वैदिकाचारास्सर्वे यज्ञास्तपांसि च । विष्णुपूजाविधेभेदाः सत्कर्मफलदो हरिः ।।
इस प्रकार बिष्णु ही परमाराध्य हैं। साम्प्रदायिक दृष्टि से विष्णु की अर्चना के दो प्रधान भेद प्राचीन हैं-
इनमें वैखानस सम्प्रदाय भगवान् विखना मुनि के द्वारा भगवान् विष्णु के उपदेशानुसार प्रचलित है। भगवान् विष्णु ने लोक कल्याण के लिए अर्चा रूप में इस धरती पर अवतार लेकर उक्त अर्चावतार की पूजा-अर्चना की परम्परा को स्थापित करने हेतु स्वांश से विखना को प्रकट किया। श्री विखना मुनि ही विश्व के आदि वेणव धर्म के प्रवर्तक आचार्य हुए। श्री विखना मुनि साक्षात् ब्रह्मा ही हैं। ब्रह्मा जी ने ही भगवान् विष्णु के संकल्पानुसार विखना रूप से सृष्टि के आदि में यजुर्वेद की वैखानसी शाखा के अनुसार वैखानस सूत्र का निर्माण किया –
आदिकाले तु भगवान् ब्रह्मा तु विखना मुनिः । यजुशाखानुसारेण चक्रे सूत्रं महत्तरम् ।। (भार्गव संहिता)
वैखानसी महाशाखां स्वसूत्रे विनियुक्तवान् । पद्मभूः परमो धाता तस्मिन्नाराधनत्रयम् ।।(स्कन्दपुराण)
उन विखना मुनि ने भगवान् विष्णु द्वारा उपदिष्ट विस्तृत आगम को संक्षिप्त किया और फिर भृगु, अत्रि, कश्यप, मरीचि आदि शिष्यों को उसका उपदेश किया । उक्त वैखानस भगवच्छास्त्र को पुनः इन मुनियों ने चार लाख श्लोकों में संक्षिप्त करके भारतभूमि पर प्रकट किया-
पश्चादपश्यद्विष्णूक्तमागमं विस्तरात्तदा । संक्षिप्य सारमादाय शाणोल्लिखितरत्नवत् ।।
धाता विखनसो नाम्ना मरीच्यादिसुतान् मुनीन् । अबोधयदिदं शास्त्रं सार्द्धकोटिप्रणतः ।
मुनिभिस्तैश्च संक्षिप्तं चतुर्लक्षप्रमाणतः ।। (श्रीपाञ्चरात्र)
वैखानस शास्त्रोक्त रीति से विष्णु पूजा की विधि का सविशेष विवरण 'अर्चना नवनीत', 'विष्ण्वार्चनसार संग्रह', 'भगवदर्चा प्रकरण' मादि ग्रन्थों में विस्तृत रूप से पाया जाता है।
डॉ. सुधाकर मालवीय
खनिज कर्म करने वाले को शबर या सौर कहते हैं। मीमांसा दर्शन की सबसे पुरानी व्याख्या शबर मुनि की है। शिव द्वारा शबर-मन्त्र दिये गये थे जो बिना किसी अर्थ के भी फल देते हैं। राजा इन्द्रद्युम्न के समय जगन्नाथ की लुप्त मूर्त्ति को भी विद्यापति शबर ने खोजा था जिनके वंशज आज भी उनके उपासक हैं तथा उनको स्वाईं महापात्र कहा जाता है। शूकर का अपभ्रंश सौर (हिन्दी में सुअर) जो अपने मुंह या दांतों से मिट्टी खोदता है। अतः मिट्टी खोदनेवाले को शुकर या शबर बोलते हैं। यह नाम पूरे विश्व में प्रचलित था क्योंकि हिब्रू में भी इसका यही अर्थ था जिसका कई स्थान पर बाईबिल में प्रयोग हुआ है-हिब्रू की औनलाइन डिक्शनरी के अनुसार- 7665. shabar (shaw-bar') A primitive root; to burst (literally or figuratively) -- break (down, off, in pieces, up), broken((-hearted)), bring to the birth, crush, destroy, hurt, quench, X quite, tear, view (by mistake for sabar). शबर के लिये वैखानस शब्द का भी प्रयोग है। विष्णु-सहस्रनाम का ९८७ वां नाम वैखानस है जिसका अर्थ शंकर भाष्य के अनुसार शुद्ध सत्त्व के लिये ग्रन्थों के भीतर प्रवेश है। यह पाञ्चरात्र दर्शन का मुख्य आगम है तथा एक वैखानस श्रौत सूत्र भी है। वैखानस नाम की यजुर्वेद शाखा नहीं है।