डॉ. दीनदयाल मणि त्रिपाठी (प्रबंध संपादक )-
बौद्ध धर्म का विकास 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व में हुआ, जब सामाजिक विषमताओं, यज्ञकांडों और रूढ़ियों के विरुद्ध एक नई चेतना का उदय हुआ। तथागत बुद्ध के उपदेशों ने जनसाधारण को सरल आचार-संहिता और मोक्ष के व्यावहारिक मार्ग प्रदान किए। किंतु यह उल्लेखनीय है कि बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में जिन अनेक वर्गों ने भूमिका निभाई, उनमें ब्राह्मणों का योगदान अत्यंत महत्त्वपूर्ण रहा।
1. ब्राह्मणों का बौद्ध धर्म में दीक्षा लेना
बुद्ध के अनेक प्रमुख अनुयायी जन्म से ब्राह्मण थे। ये विद्वान, तपस्वी और नैतिक दृष्टि से प्रतिष्ठित व्यक्ति थे जिन्होंने बौद्ध संघ में प्रवेश करके अपने ज्ञान एवं प्रभाव से धर्म का प्रसार किया।
सारिपुत्र और महामोग्गलान – बुद्ध के दो प्रधान शिष्य, जो ब्राह्मण थे। सारिपुत्र को 'बुद्ध के समान ज्ञान' वाला कहा गया।
महाकात्यायन, भद्रवाहिय, ब्रह्मायू आदि भी ब्राह्मण परंपरा से थे और बौद्ध धर्म के प्रमुख प्रचारक बने।
2. ब्राह्मणों का बौद्ध साहित्य और शास्त्रों में योगदान
ब्राह्मण परंपरा के कारण इनमें शास्त्रज्ञान, वाकपटुता और शास्त्रार्थ की विशेष दक्षता थी। इन्हीं गुणों के कारण इन ब्राह्मण बौद्ध भिक्षुओं ने:
विनय, सुत्त और अभिधम्म पिटकों की रचना और संपादन में योगदान दिया।
बौद्ध उपदेशों को व्यवस्थित किया और उन्हें प्रचार योग्य बनाया।
अनेक बौद्ध ग्रंथों में वेद, उपनिषद, स्मृति और ब्राह्मण ग्रंथों के तात्त्विक संवादों का समावेश किया गया, जो ब्राह्मणों के योगदान का परिचायक है।
3. तर्क और शास्त्रार्थ के माध्यम से प्रचार
ब्राह्मणों की वाग्मिता और शास्त्रार्थ-कौशल ने बौद्ध धर्म को दार्शनिक विरोधियों के समक्ष प्रतिष्ठित किया।
नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालयों में ब्राह्मण भिक्षु तर्कशास्त्र, व्याकरण, मीमांसा, और बौद्ध दर्शन के आचार्य बने।
बौद्ध धर्म के तर्कशास्त्रीय विस्तार में नागरजुन, वसुबन्धु, धर्मकीर्ति आदि का योगदान महत्वपूर्ण रहा — जिनमें अनेक ब्राह्मण मूल के थे।
4. राजाओं और आमजन को प्रभावित करना
ब्राह्मणों की सामाजिक प्रतिष्ठा और आध्यात्मिक प्रभाव के कारण:
उन्होंने बौद्ध धर्म को स्वीकार करने वाले राजाओं को नैतिक मार्गदर्शन दिया। उदाहरण: मौर्य सम्राट अशोक के शासन में कई ब्राह्मण बौद्ध भिक्षु बनकर धर्म-प्रसार के कार्य में संलग्न हुए।
ब्राह्मणों ने समाज में अपनी प्रतिष्ठा का उपयोग करते हुए बौद्ध धर्म को एक सामाजिक-धार्मिक विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया।
5. बौद्ध तंत्र और महायान परंपरा में ब्राह्मणों का योगदान
तांत्रिक और महायान बौद्ध परंपराओं में ब्राह्मणों का योगदान गूढ़ साधना, मंत्र और तंत्रशास्त्र की ओर था।
पाँचवीं से आठवीं शताब्दी के मध्य, जब वज्रयान बौद्ध परंपरा का विकास हुआ, तब ब्राह्मण-साधकों ने योगिनी तंत्र, अभिषेक विधि, मंत्रदीक्षा आदि को विकसित किया।
6. बौद्ध धर्म के भारत से बाहर प्रसार में सहयोग
ब्राह्मण बौद्ध भिक्षुओं ने चीन, तिब्बत, श्रीलंका, सुएनत्सांग (ह्वेनसांग) जैसे यात्रियों को शास्त्रार्थ, संस्कृत शिक्षण, और बौद्ध दर्शन सिखाया।
कुमारजीव, धर्मपाल, बुद्धघोष, शांतिरक्षित, कमलशील जैसे विद्वान, जिनमें कुछ ब्राह्मण थे, उन्होंने भारत के बाहर बौद्ध धर्म को प्रतिष्ठित किया।
अद्भुत जानकारी है। हिन्दुस्तान में यही तो धर्म की खूबसूरती है सभी मिल जुलकर रहते हैं।