डॉ० मदन मोहन पाठक (धर्मज्ञ)-
देवता मुख्यतया तैंतीस माने गये हैं। उनकी गणना इस प्रकार है-प्रजापति, इन्द्र, द्वादश आदित्य, आठ वसु और ग्यारह रुद्र। निरुक्त के दैवतकाण्ड में देवताओं के स्वरूप के सम्बन्ध में विचार किया गया है, वहाँ के वर्णन से यही तात्पर्य निकलता है कि वे कामरूप होते हैं। वेदान्त-दर्शन में कहा गया है कि देवता एक ही समय अनेक स्थानों में भिन्न-भिन्न रूप से प्रकट होकर अपनी पूजा स्वीकार कर सकते हैं। शास्त्रों में देवताओं के ध्यान की सुस्पष्ट विधि निर्दिष्ट है। उसी रूप में उनका ध्यान एवं उपासना की जानी चाहिये।
सभी साधना एवं उपासनाओं का अन्तिम फल भगवत्प्राप्ति या सायुज्य मुक्ति है। देवतालोग अपनी उपासना से प्रसन्न होकर सांसारिक पुरुषार्थो की उपलब्धि के साथ भगवत्प्राप्ति में भी सहायक होते हैं। ऊपर देवोपासना की संक्षिप्त विधि निर्दिष्ट है। विशेष जानकारीके लिये उनके उपासनापरक पुराण, आगमादि ग्रन्थ देखने चाहिये।
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