श्री सुशील जालान mysticpower- प्रकृतिपुरुषात्मकं जगत:। पुरुष: चैतन्यात्मा अकर्ता:। प्रकृति पञ्चभूतात्मकं एवं भावात्मकं जीवरुपा:। पञ्चभूता: स्थूलरुप:। भावा: सूक्ष्मरुप:। कर्म जीवनमृत्युकारणं। चैतन्यात्मा ईश्वररुप:। ईश्वरजगद्कारणं जीवनमुक्त:। योगाभ्यासेन प्राप्तव्य:। यह जगत जो दृष्टिगोचर होता है हमें, इसके दो अवयव हैं, प्रकृति व पुरुष। पुरुष चैतन्य तत्त्व है और अकर्ता है, अर्थात् कर्म में लिप्त नहीं होता है। प्रकृति के दो अवयव हैं, स्थूल व सूक्ष्म। स्थूल अवयव के अन्तर्गत पंचमहाभूत हैं, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश। इन पांच स्थूल तत्त्वों से प्रकृति के दृष्यमान जगत की रचना हुई है। प्रकृति का सूक्ष्म अवयव है भावनात्मक। तैंतीस करोड़ भाव संज्ञाएं हैं जिनसे प्रकृति ओतप्रोत है। जीव भावात्मक है और प्रकृति के स्थूल अवयव में विचरण करता है। समस्त कर्म जीव द्वारा संपादित किए जाते हैं, प्रकृति के सूक्ष्म और स्थूल अवयवों के संसर्ग से। कर्म-कर्मफल-कर्म के भोग से जीव जन्म-मृत्यु के चक्र में बंधा हुआ है। पुरुष चैतन्य तत्त्व है जो निर्लिप्त है प्रकृति के कर्मचक्र से। चैतन्य आत्मतत्त्व है, जो धारण करता है जीवभाव को, जगत के प्राकट्य, संचालन एवं तिरोधान के लिए। यह चैतन्य आत्मा पुरुष ही ईश्वर है जो सभी जीवों में विद्यमान है। ईश्वर जीवों के जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त है, भावों में निर्लिप्त है, लेकिन जगत का कारण विशेष है। ईश्वर द्रष्टा है, साक्षी है, निर्लिप्त है, इसलिए जीवन-मुक्त है। योगासन और प्राणायाम के सतत् अभ्यास से पुरुष आत्मबोध कर सकता है, ईश्वरत्व प्राप्त कर सकता है, जीवन-मुक्त हो सकता है।
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