जप-विधि

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  • धर्म-पथ
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  • 31 October 2024
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डॉ. दीनदयाल मणि त्रिपाठी (प्रबंध संपादक) जप तीन प्रकार का होता है – वाचिक, उपांशु और मानसिक । वाचिक जप धीरे-धीरे बोलकर होता है । उपांशु-जप इस प्रकार किया जाता है, जिससे दूसरा न सुन सके । मानसिक जप में जीभ और ओष्ठ नही हिलते । तीनों पहले की अपेक्षा दूसरा और दूसरे की अपेक्षा तीसरा प्रकार श्रेष्ठ है । प्रातःकाल दोनो हाथों को उत्तान कर, सायंकाल नीचे की ओर करके और मध्याह्न मे सीधा करके जप करना चाहिये । प्रातःकाल हाथ को नाभि के पास, मध्याह्न मे ह्रदय के समीप और सायंकाल मुँह के समानान्तर मे रखे । जप की गणना चन्दन, अक्षत, पुष्प, धान्य, हाथ के पोर और मिट्टी से न करे । जप की गणना के लिये लाख, कुश, सिन्दूर और सूखे गौ बर को मिलाकर गौ लियाँ बना ले । जप करते समय दाहिने हाथ को जपमाली में डाल ले अथवा कपड़े से ढक लेना आवश्यक होता है, किंतु कपड़ा गीला न हो । यदि सूखा वस्त्र न मिल सके तो सात बार उसे हवा में फटकार ले तो वह सूखा-जैसा मान लिया जाता है । जप के लिये माला के अनामिका अँगुली पर रखकर अँगूठे से स्पर्श करते हुए मध्यमा अँगुली से फेरना चाहिये । सुमेरु का उल्लङ्घन न करे । तर्जनी न लगाए । सुमेरु के पास से माला को घुमाकर दुसरी बार जपे । जप करते समय हिलना, डोलना, बोलना निषिद्ध है । यदि जप करते समय बोल दिया जाय तो भगवान का स्मरण कर फिर से जप करना चाहिये । यदि माला गिर जाय तो एक सौ आठ बार जप करे । यदि माला पैर पर गिर जाय तो इसे धोकर दुगुना जप करे । (क) स्थान- भेद से जप की श्रेष्ठता का तारतम्य – घर में जप करने से के गुना, गौ शाला मे सौ गुना, पुण्यमय वन या वाटिका तथा तीर्थ मे हजार गुना, पर्वतपर दस हजार गुना, नदी-तट पर लाख गुना, देवालय में करोड़ गुना तथा शिवलिङ्ग के निकट अनन्त गुना पुण्य प्राप्त होता है – गृहे चैकगुणः प्रोक्तः गौ ष्ठे शतगुणः स्मृतः । पुण्यारण्ये तथा तीर्थे सहस्त्रगुणमुच्यते ॥ अयुतः पर्वते पुण्यं नद्यां लक्षगुणो जपः । कोटिर्देवलये प्राप्ते अनन्तं शिवसंनिधौ ॥ (ख) माला-वन्दना – निम्नलिखित मन्त्रसे मालाकी वन्दना करे – ॐ मां माले महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिणी । चतुर्वर्गस्त्वयि नयस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा भव ॥ ॐ अविघ्नं कुरु माले त्वं गृह्नामि दक्षिणे करे । जपकाले च सिद्ध्यर्थं प्रसीद मम सिद्ध्ये ॥ देवमन्त्रकी करमाला अङ्गुल्यग्रे च यज्जप्तं यज्जप्तं मेरुलङ्घनात् । पर्वसन्धिषु यज्जप्तं तत्सर्वं निष्फलं भवेत ॥ अँगुलियोंके अग्रभाग तथा पर्वकी रेखाओंपर ओर सुमेरुका उल्लङ्घन कर किया हुआ जप निष्फल होता है । यस्मिन् स्थाने जपं कुर्याद्धरेच्छक्रो न तत्फलम् । तन्मृदा लक्ष्म कुर्वीत ललाटे तिलकाकृतिम् । जिस स्थानपर जप किया जाता है, उस स्थानकी मृत्तिका जपके अनन्तर मस्तकपर लगाये अन्यथा उस जपका फल इन्द्र ले लेते है ।



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