कलयुग में राष्ट्रगुरुओं की आवश्यकता !

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  • मिस्टिक ज्ञान
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  • 06 July 2025
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श्री सुरेश मुंजाल हिन्दू जनजागृति समिति

इतिहास में जब-जब भारत पर संकट आया तब आर्य चाणक्य एवं समर्थ रामदास स्वामी जैसे गुरुओं ने समाज को जागृत किया, राष्ट्र के लिए संघर्ष करने वाले शिष्यों का निर्माण किया तथा विदेशी आक्रमणों के समय भारत के अस्तित्व को नवसंजीवनी दी । आज का समय केवल तकनीक या भौतिक उन्नति का समय नहीं है, बल्कि आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक अस्तित्व के लिए संघर्ष का समय है। हमारे देश में जहां धर्माचरण, साधना एवं गुरु की कृपा को भुलाया जा रहा है, वहीं समाज को मार्गदर्शन देने के लिए राष्ट्रगुरुओं की अधिक आवश्यकता है। कालानुसार आध्यात्मिक मार्गदर्शन एवं राष्ट्र हित का भान रखने वाले गुरु ही भारत को पुनः एक बार वैभव की ओर ले जा सकते हैं। इसलिए आज भी हिंदू समाज को धर्म शिक्षा की, साधना की एवं राष्ट्र निष्ठ गुरुओं के मार्गदर्शन की अत्यंत आवश्यकता है।

 

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10 जुलाई को गुरु पूर्णिमा है। यह दिन गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन होता है। इस दिन गुरु तत्व अधिक मात्रा में कार्यरत रहता है। आइए हम सब इसका लाभ उठाएं।

जीवन में साधना और गुरु का महत्व ! : -

छत्रपति शिवाजी महाराज, कुलदेवी श्री भवानी देवी के अनन्य भक्त थे। वे हमेशा 'जगदंब जगदंब' का नाम जपते थे। उनकी सेना भी युद्ध करते समय 'हर हर महादेव' का जाप करती थी। इसलिए अल्प मनुष्य बल और साधन सामग्री होने पर भी वे पाँच शक्तिशाली शासकों को हराने और 'हिंदवी स्वराज्य' स्थापित करने में सक्षम हुए । उनकी साधना के कारण ही उन्हें संत तुकाराम महाराज और संत रामदास स्वामी का आशीर्वाद प्राप्त हुआ और वे बड़ी-बड़ी विपत्तियों से सुरक्षित रहे।

अर्जुन न केवल एक महान धनुर्धर थे; वे श्री कृष्ण के भक्त भी थे। वे बाण चलाते समय हमेशा श्री कृष्ण का नाम लेते थे। इसलिए उनके बाण अपने आप ही निशाने पर लग जाते थे। श्री कृष्ण का नाम अर्जुन के मन में लक्ष्य भेदने के संकल्प को सिद्ध कर देता था।

 

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"राष्ट्र एवं धर्म रक्षा की शिक्षा देने वाले गुरुओं के कार्य "

आचार्य चाणक्य : आचार्य चाणक्य, तक्षशिला विद्यापीठ में आचार्य पद पर नियुक्ति होने के बाद केवल विद्यादान में ही धन्यता नहीं मानी अपितु चंद्रगुप्त जैसे अनेक शिष्यों को क्षात्र उपासना का महामंत्र देकर उनके द्वारा विदेशी ग्रीकों का हिंदुस्तान पर हुआ आक्रमण निष्प्रभावी किया एवं हिंदुस्तान को एक संघ बनाया।

समर्थ स्वामी रामदास : प्रत्यक्ष प्रभु राम का जिन्हें दर्शन हुआ था ऐसे समर्थ रामदास स्वामी केवल राम नाम का जाप करने में ही मगन नहीं हुए उन्होंने समाज में शक्ति की, बल की उपासना करने के लिए अनेक स्थानों पर मारुति अर्थात हनुमान जी की स्थापना की एवं शिवाजी महाराज को अनुग्रह देकर उनके द्वारा हिंदवी स्वराज्य की स्थापना करवा कर ली।

स्वामी वरदानंद भारती एवं महायोगी गुरुदेव काटे स्वामी जी :  वर्तमान में हुए स्वामी वरदानंद भारती एवं महायोगी गुरुदेव काटेस्वामी भी ऐसे ही महान गुरु थे।

धर्म एवं अध्यात्म की शिक्षा देने के साथ ही इन महान पुरुषों की लेखनी चली तो राष्ट्र एवं धर्म के कर्तव्यों के विषय में निद्रा मग्न हिंदू समाज को जागृत करने के लिए। ऐसे अनेक गुरु है जिन्होंने स्वयं के आचार विचार से अपने शिष्यों को एवं समाज को भी राष्ट्र एवं धर्म रक्षा के पवित्र कार्य हेतु आदर्श मार्ग स्थापित कर दिया है।

'समय की आवश्यकता पहचान कर राष्ट्र एवं धर्म रक्षा की शिक्षा देना यह गुरु का आज का प्रमुख कर्तव्य ही है।' - शिष्य को ईश्वर प्राप्ति का रास्ता दिखलाना यह जैसे गुरु का धर्म है वैसे ही राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा के लिए समाज को जागृत करना यह भी गुरु का धर्म ही है। आर्य चाणक्य, समर्थ रामदास स्वामी जैसे गुरुओं का आदर्श हमारे सामने है। आज हमारे राष्ट्र एवं धर्म की स्थिति अत्यंत विदारक एवं चिंतनीय है। समय की आवश्यकता पहचान कर शिष्यों को एवं समाज को साधना करते-करते राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा की शिक्षा देना यह गुरु का आज का प्रमुख कर्तव्य है। हिंदू धर्म में गुरु शिष्य परंपरा अनादि काल से प्रारंभ है । गुरु शिष्य परंपरा को अंगीकृत करके स्वयं की एवं अपने राष्ट्र की प्रगति करना यह भी हमारा कर्तव्य ही है।

 

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'हिंदुओं को धर्म शिक्षा देने वाली व्यवस्था निर्मित करनी चाहिए'! :  हिंदू समाज को धर्माचरणी बनाना हो तो हिंदू धर्म की वर्तमान स्थिति समझ लेना आवश्यक है । दूसरे धर्मावलंबियों को धर्म शिक्षा देने के लिए उनके प्रार्थना स्थलों में उनके धर्मगुरु होते हैं उदाहरणार्थ चर्च में पादरी एवं मस्जिदों में मौलवी जो उन्हें उनकी धर्म संबंधी शिक्षा देते हैं। इस कारण क्रिश्चियन को बाइबल एवं मुसलमान को कुरान का थोड़ा-बहुत तो ज्ञान होता है, इसके विपरीत हिंदुओं को गीता के बारे में ज्ञान होगा ही ऐसा नहीं है। गीता का केवल पठन करने वाले भी बहुत अल्प हैं। उसे पढ़कर समझने वाले तो और भी अल्प है एवं उसे पढ़कर समझ कर उसके अनुसार कृति करने वाले उसको आचरण में लाने वाले तो लाखों करोड़ों में एक आध ही होगा। लगभग 80% व्यक्तियों को अध्यात्म विषय की वास्तविक शिक्षा न होने के कारण उस बारे में उनमें अज्ञान ही रहता है। वर्तमान समय में हिंदुओं को धर्म शिक्षा देने वाली कोई भी व्यवस्था उपलब्ध नहीं है ऐसी व्यवस्था हमें ही निर्मित करनी पड़ेगी।

'राम राज्य की स्थापना के लिए साधना एवं भक्ति आवश्यक '! : भारत भूमि पर एक आदर्श राष्ट्र की अर्थात हिंदू राष्ट्र की, सनातन राष्ट्र की स्थापना करना हमारा ध्येय है। उसके लिए प्रभु श्री रामचंद्र का राम राज्य आदर्श है । राम राज्य में प्रजा धर्माचरणी थी इसलिए उनको श्री राम जैसा सात्विक राजा प्राप्त हुआ एवं आदर्श रामराज्य का उपभोग प्रजा कर सकी। पहले के समान रामराज्य अर्थात हिंदू राष्ट्र अभी निर्मित करना हो तो इसके लिए हिंदू समाज धर्माचरण करने वाला तथा ईश्वर भक्त होना चाहिए। पूर्व के काल में बहुसंख्यक लोग साधना करने वाले तथा धर्माचरणी होने के कारण सात्विक थे। कलयुग में बहुसंख्यक लोगों को साधना एवं धर्माचरण के विषय में अज्ञान है, इसलिए रज, तम का प्रमाण बहुत बढ़ गया है । इसी के परिणाम स्वरूप राष्ट्र एवं धर्म की स्थिति अतिशय विकट हो गई है । इसे बदलने के लिए प्रत्येक को धर्म शिक्षा लेनी ही चाहिए एवं उसके साथ ही साधना भी करनी चाहिए।

"कालानुसार आवश्यक साधना" :  केवल व्यक्तिगत मोक्ष का मार्ग दिखलाना यह गुरु का कर्त्तव्य ना होकर राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा के लिए शिष्य को तैयार करना यह भी उनका ही कर्तव्य है। राष्ट्र, धर्म एवं समाज संकट में होने पर इसका नेतृत्व करने वाले गुरु वर्तमान समय में आवश्यक हैं। इतिहास ने दिखा दिया है कि आर्य चाणक्य, समर्थ रामदास स्वामी जैसे राष्ट्र गुरुओं ने चरित्र संपन्न शिष्य एवं जागृत समाज निर्मित करके अखंड भारत की रक्षा के लिए मार्गदर्शन किया था । आज पुनः इस ध्येय की, लक्ष्य की आवश्यकता है। संक्षिप्त में समय की आवश्यकता पहचान कर राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा के लिए साधना करने की शिक्षा शिष्यों को एवं समाज को देना यह गुरु का आज का प्रमुख कर्तव्य है। राष्ट्र एवं धर्मरक्षण यह उनकी, शिष्य की एवं समाज की भी काल अनुसार आवश्यक साधना ही है।



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