पण्डित रघुनन्दन शर्मा (साहित्यभूषण) Mystic Power- एक दिन हमने भी वेदों से भागवत के दशम स्कन्ध की वे घटनाएँ निकालना शुरू की थीं, जो श्रीकृष्णभगवान् को कलंकित करती हैं। हमारे इस खेल का अच्छा परिणाम निकला और भागवत तथा गीता से सम्बन्ध रखने वाली दो बड़ी घटनाओं पर बहुत बड़ा प्रकाश पड़ा। पहले हम वे मन्त्रांश एकत्र करते हैं, जिनमें कृष्ण की व्रजलीला दिखलाई पड़ती है।
१. स्तोत्रं राधानां पते। -ऋ० १ । ३०१५ २. गवामप व्रजं वृधि। - ऋ० १।१०।७ ३. दासपत्नीरहिगोपा अतिष्ठत्। - ऋ० १।३२।११ ४. त्वं नृचक्षा वृषभानु पूर्वीः कृष्णास्वाग्रे अरुषो वि भाहि। - *ऋ० ३।१५।३ ५. तमेतदाधारयः कृष्णासु रोहिणीषु च। - ऋ० ८।९३।१३ ६. कृष्णा रूपाण्यर्जुना वि वो मदे। - ऋ० १०।२१।३
इन मन्त्रों में राधा, गौ, व्रज, गोप, वृषभानु, रोहिणी, कृष्ण और अर्जुन सभी मण्डली एकत्र हो गई है। इसी मण्डली के आधार पर भागवत की रचना हुई है, परन्तु मन्त्रों में आये हुए अन्य शब्दों को देखने पर पता लगेगा कि ये सब आकाशीय पदार्थ हैं।
ऋ० ६।९।१ में कहा है कि 'अहश्च कृष्णमहरर्जुनं च' अर्थात् अर्जुन और कृष्ण दोनों दिन के नाम हैं। इसी प्रकार राधा, धन और अन्न को कहते हैं। गो, किरणें हैं और व्रजकिरणों का स्थान द्यौ है और भी सब इसी प्रकार के आकाशीय पदार्थ हैं। वेदों के इस कृष्णार्जुन अलङ्कार से ही भागवत और गीता का वह स्थान बनाया गया है, जिसमें कृष्ण ने अपनी विभूतियों का वर्णन किया है कि वृक्षों में पीपल मैं हूँ, इत्यादि। ऋग्वेद में सूर्य, इन्द्र और विद्युत्, अर्थात् आकाशस्थ आग्रेय शक्तियाँ कहती हैं कि- अहं मनुरभवं सूर्यश्चाहं कक्षीवाँ ऋपिरस्मि विप्रः । अहं कुत्समार्जुनेयं न्यूचेऽहं कविरुशना पश्यता मा ।।
१. मनु० १।२५ -ऋ०४।२६।१ ७३ अर्थात् हम मनु, सूर्य, कक्षीवान्, उशना आदि पदार्थ हैं। शुक्र की टेढ़ी चाल भी हम ही हैं। यहाँ गोता का यह वाक्य भी कि 'कवियों में उशना कवि मैं हूँ', स्पष्ट हो जाता है। यह उशना कोई मनुष्य नहीं हैं। उशना नाम शुक्र का है। इसकी चाल बड़ी टेढ़ी-बाँकी होती है। वेद में नक्षत्रों की इस चाल को काव्य कहते हैं। 'पश्य देवस्य काव्यम्" यह वाक्य नक्षत्र काव्य के लिए कहा गया है। इसलिए जो प्रकाश कृष्ण और अर्जुन है, वही उशना काव्य भी है। महाभारत आदिपर्व ४।७७ में लिखा है कि 'उशनस्य दुहिता देवयानी', अर्थात् देवयानी उशना की लड़की है। इससे और भी स्पष्ट हो गया है कि उशना शुक्र ही है। इस प्रकार से भागवत की व्रजलीला और गीता की विभूतियाँ सूर्य, किरण, वर्षा, अन्न, प्रकाश, ग्रह, ग्रहगति, और विद्युत् आदि ही हैं। इन वैदिक वर्णनों को शब्द-साम्य के कारण कथाओं के रूप में लिखकर पौराणिक कवियों ने व्यर्थ ही बात का बतंगड़ बना दिया है।
Comments are not available.