माघ मास का महत्त्व

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  • धर्म-पथ
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  • 31 October 2024
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  डॉ० बिपिन पाण्डेय, आचार्य, ज्योतिर्विज्ञान विभाग,  लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ mysticpower-माघ मास हिंदू पञ्चाङ्ग का 11 वां चंद्रमास है। इस मास में मघा नक्षत्र युक्त पूर्णिमा होने के कारण इसका नाम माघ रखा गया (मघायुक्ता पौर्णमासी यत्र मासे सः)। उत्तर भारत हिन्दू पञ्चाङ्ग के अनुसार माघ मास प्रारंभ हो चुका है। माघ मास में श्रवण और मूल शून्य नक्षत्र हैं इनमें कार्य करने से धन का नाश होता है। माघ मास में कृष्ण पक्ष की पंचमी व शुक्ल पक्ष की षष्ठी मास शून्य तिथियां होती हैं। इन तिथियों शुभ काम नहीं करना चाहिए। https://www.mycloudparticles.com/ महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 106 के अनुसार माघं तु नियतो मासमेकभक्तेन य: क्षिपेत्। श्रीमत्कुले ज्ञातिमध्ये स महत्त्वं प्रपद्यते।। अर्थात जो माघ मास में नियमपूर्वक एक समय भोजन करता है, वह धनवान कुल में जन्म लेकर अपने कुटुम्बजनों में महत्व को प्राप्त होता है। माघ में मूली का त्याग  करना चाहिए। देवता और पितर को भी मूली अर्पण न करें। श्री हरि नारायण को माघ मास अत्यंत प्रिय है। वस्तुत: यह मास प्रातः स्नान (माघ स्नान), कल्पवास, पूजा-जप-तप, अनुष्ठान, भगवद्भक्ति, साधु-संतों की कृपा प्राप्त करने का उत्तम मास है। माघ मास की विशिष्टता का वर्णन करते हुए महामुनि वशिष्ठ ने कहा है, ‘जिस प्रकार चंद्रमा को देखकर कमलिनी तथा सूर्य को देखकर कमल प्रस्फुटित और पल्लवित होता है, उसी प्रकार माघ मास में साधु-संतों, महर्षियों के सानिध्य से मानव बुद्धि पुष्पित, पल्लवित और प्रफुल्लित होती है। यानी प्राणी को आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है।   पद्मपुराण, उत्तरपर्व  में कहा गया है ग्रहाणां च यथा सूर्यो नक्षत्राणां यथा शशी मासानां च तथा माघः श्रेष्ठः सर्वेषु कर्मसु अर्थात जैसे ग्रहों में सूर्य और नक्षत्रों में चन्द्रमा श्रेष्ठ है, उसी प्रकार महीनों में माघ मास श्रेष्ठ है। पद्मपुराण में कहा गया है की माघ मास आने पर नाना प्रकार के फूलों से भगवान की पूजा करें। उस समय कपूर से तथा नाना प्रकार के नैवेद्य एवं लड्डूओं से पूजा होनी चाहिए। इस प्रकार देवदेवेश्वर के पूजित होने पर मनुष्य निश्चय ही मनोवाञ्छित फलों को प्राप्त कर लेता है।   पद्मपुराण में वसिष्ठजी कहते हैं कि वैशाख में जल और अन्न का दान उत्तम है, कार्तिक में तपस्या और पूजा की प्रधानता है तथा माघ में जप, होम और दान ये तीन बातें विशेष हैं। जिन लोगों ने माघ में प्रातः स्नान, नाना प्रकार का दान और भगवान विष्णु का स्तोत्र पाठ किया है, वे दिव्यधाम में आनन्दपूर्वक निवास करते हैं। माघ मास में प्रातःकाल स्नान का विशेष महत्व है व्रतैर्दानैस्तपोभिश्च न तथा प्रीयते हरि:। माघमज्जनमात्रेण यथा प्रीणाति केशव:।। प्रीतये वासुदेवस्य सर्वपापापनुक्तये। माघस्नानं प्रकुर्वीत स्वर्ग लाभाय मानव:।। पूरे माघ मास में प्रयाग में निवास तथा प्रयाग में त्रिवेणी संगम में स्नान बहुत भाग्यशाली मनुष्य को प्राप्त होता है । स्कन्दपुराण वैष्णवखण्ड के अनुसार प्रयागो माघमासे तु पुष्करं कार्तिके तथा ।। अवन्ती माधवे मासि हन्यात्पापं युगार्जितम् ।। माघ मास में प्रयाग, कार्तिक में पुष्कर और वैशाख मास में अवन्तीपुरी (उज्जैन) - ये एक युगतक उपार्जित किये हुए पापों का नाश कर डालते हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार जो व्रती पुरुष चैत्र अथवा माघ मास में शंकर की पूजा करता है तथा बेंत लेकर उनके सम्मुख रात-दिन भक्ति पूर्वक नृत्य करने में तत्पर रहता है, वह चाहे एक मास, आधा मास, दस दिन, सात दिन अथवा दो ही दिन या एक ही दिन ऐसा क्यों न करे, उसे दिन की संख्या के बराबर युगों तक भगवान शिव के लोक में प्रतिष्ठा प्राप्त हो जाती है। माघ में तिलों का दान जरूर जरूर करना चाहिए। विशेषतः तिलों से भरकर ताम्बे का पात्र दान देना चाहिए। महाभारत अनुशासन पर्व के 66वें अध्याय के अनुसार माघ मासे तिलान् यस्तु ब्राह्मणेभ्यः प्रयच्छति। सर्वसत्वसमकीर्णं नरकं स न पश्यति॥ जो माघ मास में ब्राह्मणों को तिल दान करता है, वह समस्त जन्तुओं से भरे हुए नरक का दर्शन नहीं करता। माघ मास के शुक्ल पक्ष तृतीया को मन्वंतर तिथि कहते है उस दिन जो कुछ दान दिया जाता है उसका फल अक्षय बताया गया है ( पद्मपुराण - सृष्टि खंड )  



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