मन्त्र रहस्य (ध्वनि)

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  • धर्म-पथ
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  • 31 October 2024
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ज्ञानेन्द्रनाथ- हमारे इस विश्वांतर्गत करीब करीब सभी चीजे स्पंदमय होती है। स्पंदन का अर्थ है– ताल व लय युक्त आघातों के परिणामो की निर्मिती।सम्पूर्ण निसर्ग स्पंदमय होता है। वायु की बहने की अपनी लय होती है। नदी का प्रवाह — इसका भी एक ताल होता है। प्रपात-गर्जना ; समुद्र-गाज ; आदि सब कुछ तालबद्ध ही होते है। संगीत भी तालबद्ध–लयबद्ध ही होता है।हमारा सम्पूर्ण देह भी स्पंदन युक्त ही है। इन स्पंदनो की लय में जरा भी परिवर्तन ; देह में तकलिफे/बीमारी/व्याधी निर्माण करू सकता है। हमारा ह्रदय व नाडी आदि के स्पंदन भी तालबद्ध और लयबद्ध होते है।हमारे अंतर्गत उर्जा का प्रकटीकरण ( इसे ही योगशास्त्र की परिभाषा मे कुंडलिनी जागरण कहते है।)– भी ; स्पंद-शक्ति तथा स्पंदन निर्मिती का ही परिणाम है। यही विवेचन अब हम योगशास्त्र की परिभाषा मे देखेंगे। सुषुम्ना मे होने वाला प्रमस्तिष्क द्रव्य — जिसे संस्कृत मे तनमात्रा कहते है — होता है। इनमे से ही ये स्पंदन में दूर सहस्रार तक जाकर ; विशिष्ट या इच्छित परिणाम देते है।  या ये परिणाम स्पंदनो द्वारा निर्माण भी किये जा सकते है। फिर ये स्पंदन नैसर्गिक हो या किसी चीज द्वारा निर्मित हो। सम्पूर्ण योगशास्त्र (इसमे मन्त्र विज्ञान भी है।)– स्पंदनो पर ही आधारित है। स्पंदन ही जीवितता का लक्षण ; तथा स्पंदन-रहितता ही मृत्यू है। यह तथ्य ध्यान मे लिया तो ; एक बात प्रमुखता से उजागर होती हुई दिखेगी कि ; हम सामान्य व्यक्ति ; अपने दैनिक जीवनमें ; इनही स्पंदनोंको भुलकर या उन्हे दुर्लक्षित कर ; जिंदगी बिताते रहते है।ऐसे मे कैसा आनंद और कैसा समाधान ? परिणाम ? कुछ व्यक्ति होते है– व्यसनाधीन । हां कुछ सत्प्रवृत्त व्यक्ति ; नृत्य; संगीत; एकाध कला; या योग को अपनाते है। योग की वजह से ही ; जागृत तथा निद्रित अवस्था मे भी ; ऐसे स्पंदन निरंतर जागृत रहते है। व्यक्ति स्फूर्तिवान बनती है।यह स्फूर्ती ही स्पंद मानता है ना ? इसी वजह से मन और देह — दोनो मे सुसंवाद रहकर; हम अग्रसर होते है– उन्नती की ओर। गुरु गोरक्षनाथ अपनी प्रस्तुति “पंचमात्रायोग”में इनही क्रियाओ पर बल देते है। इसी परिप्रेक्ष में हम ; “मन्त्र” विषय की ओर देख सकते है। किसी भी मंत्र मे ; ध्वनी ; उसका उच्चारण ; लय; ताल महत्वपूर्ण होते है। आरती; स्तोत्र-पठण; मंत्रजप; नाम-स्मरण आदि सब कुछ हम करते है— ताल और लयबद्धतापूर्वक। है ना ? अब इसका कारण यहां पर स्पष्ट हुआ होगा। इच्छित व इष्ट परिणाम प्राप्त होने हेतु ; महत्व होता है — ताल और लय को ही। साधारणतया मंत्रो के विषय मे समाज मे काफी आकर्षण दिखता है।यहां एक बात स्पष्ट रुप मे ध्यान मे लेणी होगी कि; मन्त्र होते है — शस्त्र की भांति। जिस चीज पर शस्त्र चलाया जायेगा ; उसके दो टुकडे हो सकते है। परंतु कठिन पदार्थो पर चलाया गया तो ? शस्त्र ही निरुपयोगी होने की संभावना बनी रहती है ना? मंत्रो के या स्पंदनों के विषय मे भी ऐसा ही है। जिस पर मंत्र प्रयोग करना हो — उसके सामर्थ्य पर भी मंत्रो के परिणाम निर्धारित होते ही है। एक बात और देखते है। मंत्र से भी सामर्थ्यशाली /बलवान ऐसी बाते भी होती है।कृतीया (कर्म) भी होते है — जिसकी वजह से; इस विश्वांतर्गत मूलतत्वो के साथ मुकाबला किया जा सकता है –अवश्य । जिसने यह विश्व तथा वह किसके द्वारा बना है? उन मूल तत्वों को जान लिया; उसे मंत्रो की आवश्यकता ही नही पडती। इसके बिना भी वह कई बाते ; वह अत्यन्त आसानी से; सहजतापूर्वक कर सकता है। सभी मित्रोको यह बौद्धिक आक्रमण ; उचित नही लगेगा शायद। तथापि यही कडवा सत्य है। हर गुरु यही अपेक्षा रखते है कि; अपना शिष्य ; इसे साध्य करे। यह पोस्ट गँभीरतापूर्वक पढे। चिंतन करे। योग का अवलम्बन आरंभ करे। यही हम सभी की मनोकामना है। इति आदेश सभी को।



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