डॉ.बिपिन पाण्डेय ,ज्योतिर्विज्ञान विभाग ,लखनऊ विश्वविध्यालय ,लखनऊ मास अनुसार देवपूजन माघ मास में सूर्य पूजन का विशेष विधान है । भविष्य पुराण आदि में वर्णन आता है । आरोग्यप्राप्ति हेतु, माघ मास आया तो सूर्य उपासना करों । फाल्गुन मास आया तो होली का पूजन किया जाता है.. बच्चों की सुरक्षा हेतु । चैत्र मास आता है चैत्र मास में ब्रम्हा, दिक्पाल आदि का पूजन कियाजाता है ताकि वर्षभर हमारे घर में सुख-शांति रहें । वैशाख मास भगवान माधव का पूजन किया जाता है ताकि, मरने के बाद वैकुंठलोक की प्राप्ति हो । ॐ नमो भगवते वासुदेवाय… । जेष्ठ मास में यमराज की पूजा की जाती है जो की वटसावित्री का व्रत सुहागन देवियाँ करती हैं । यमराज की पूजा की जाती है ताकि, सौभाग्य की प्राप्ति हो, दुर्भाग्य दूर हो । श्रावण मास में दीर्घायु की प्राप्ति हो, श्रावण मास में शिवजी की पूजाकी जाती है । अकाल मृत्यु हरणं सर्व व्याधि विनाशनम् । भाद्रपद मास में गणपति की पूजा करते है की, निर्विध्नता की प्राप्ति हेतु । आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में फिर पितृ पूजन करते है की, वंश वृद्धि हेतु । और अश्विन मास के शुक्ल पक्ष में माँ दुर्गा की पूजा होती है की, शत्रुओं पर विजय प्राप्ति हेतु नवरात्रियां । कार्तिक मास में लक्ष्मी पूजा की जाती है, सम्पति बढ़ाने हेतु । मार्गशीर्ष मास में विश्वदेवताओं का पूजन किया जाता है कि जो गुजर गये उनकी आत्मा की शांति हेतु ताकि उनको शांति मिले । जीवनकाल में तो बिचारेशांति न लें पाये और चीजों में उनकी शांति दिखती रही पर मिली नहीं । तो मार्गशीर्ष मास में विश्व देवताओं का पूजन करते हैं भटकते जीवों के सद्गति हेतु । आषाढ़ मास में गुरुदेव का पूजन करते हैं अपने कल्याण हेतु और गुरुदेव का पूजन करते हैं तो फिर बाकी सब देवी-देवताओं की पूजा से जो फल मिलता है वह फल सद्गुरु की पूजा से भी प्राप्त हो सकता है, शिष्य की भावना पक्की हो की – सर्वदेवोमय गुरु । सभी देवों का वास मेरे गुरुदेव में हैं । तोअन्य देवताओं की पूजा से अलग-अलग मास में अलग-अलग देव की पूजा से अलग-अलग फल मिलता है पर उसमें द्वैत बना रहता है और फल जो मिलता है वो छुपने वाला होता है । पर गुरुदेव की पूजा-उपासना से ये फल भी मिल जाते है और धीरे-धीरे द्वैत मिटता जाता है । अद्वैत में स्थिति होती जाती है ।
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