माँ यशोदा का ब्रह्माण्ड दर्शन

img25
  • मिस्टिक ज्ञान
  • |
  • 31 October 2024
  • |
  • 0 Comments

श्री शशांक शेखर शुल्ब(धर्मज्ञ )- Mystic Power - माता यशोदा ने कृष्ण के मुख में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को देखा। एक बार कृष्ण के मिट्टी खाने की बात ग्वालों ने माता यशोदा से कही। "कृष्णो मृदं भक्षितवानिति मात्रे न्यवेदयन् ।" (भागवत ८ । १० । ३२ ) कृष्ण ने कहा- माता मैंने मिट्टी नहीं खायी। ये सब झूठ बक रहे हैं। यदि तुम इन सब की बात सच मानती हो तो मेरा मुंह तुम्हारे सामने हैं, देख लो। "नाहं भक्षितवानम्ब सर्वे मिथ्याभिशंसिनः। यदि सत्य गिरस्तर्हि समक्षं पश्य मे मुखम्॥" (भागवत् १० । ८। ३५ ) यशोदा ने कृष्ण के मुख में सम्पूर्ण विश्व चराचर जगत्, आकाश, दिशाएँ, पर्वत, द्वीप और सागरों सहित सारी पृथ्वी, प्रवहमान वायु, विद्युत्, अग्नि, चन्द्रमा और तारों के साथ सम्पूर्ण राशि चक्र, जल, तेज, पवन, वियत्, नभ, वैकारिक अहंकार के कार्य देवता, मन, इन्द्रिय, पञ्च तन्मात्राएँ और तीनों गुण देखा। "सा तत्र ददृशे विश्वं जगत् स्थास्नु च खं दिशः । साद्रिद्वीपाब्धिभूगोलं सवाय्वग्नीन्दुतारकम् ॥ ज्योतिष्चक्रं जलं तेजो नभस्वान् वियदेव च। वैकारिकाणीन्द्रियाणि मनो मात्रा गुणास्त्रयः ॥" ( भागवत १० । ८ । ३७, ३८)   आदि नारायण भगवान् बालमुकुन्द के उदर में मार्कण्डेय मुनि ने अखिल ब्रह्माण्ड का दर्शन किया। महाप्रलय के समय एकार्णव में वट वृक्ष के एक पत्ते पर उन्हों ने एक दिव्य शिशु देखा। प्रलय काल में ऐसे अद्भुत शिशु को देख कर वे उस के पास पहुँचने को उद्यत हुए। अभी पहुँच भी न पाये थे कि शिशु के श्वास के साथ नाक से होकर वे उसके उदर में चले गये, जैसे मच्छर प्रवेश करता है, उसी तरह। उस शिशु के पेट में जा कर उन्होंने सब की सब वही सृष्टि देखी, जो उन्होंने प्रलय के पहले देखी थी। वे वह दृश्य देख कर मोह में पड़ गये तथा विस्मित हुए। "तावत् शिशोर्वै श्वसितेन भार्गवः सोऽन्तरशरीरं मशको यथाविशत्। तंत्राप्यदो व्यस्तमचष्ट कृत्स्नशो यथा पुरा मुह्यादतीव विस्मितः ॥" ( भागवत १२ । ९ । २७ ) उस शिशु के उदर में मुनि ने आकाश अन्तरिक्ष, ज्योतिष्चक्र (राशि चक्र) पर्वत, समुद्र, द्वीप, वर्ष, दिशाएँ, देवता, दैत्य, वन, देश, नदियाँ, नगर, खानें, माम, आश्रम, वर्ण, आचार, महाभूत, भूतों से बने पदार्थ- वस्तुएँ,काल, युग, कल्प, तथा जिसको पहले कभी न देखा था न सुना था वह सब देखा। "खं रोदसी भगणाद्रिसागरान् द्वीपान् सवर्षान् ककुभः सुरासुरान्। वनानि देशान् सरितः पुराकरान् खेटान् ब्रजान् आश्रमवर्णवृत्तयः।। महान्ति भूतान्यथ भौतिकान्यसौ कालं च नानायुग कल्पकल्पनम्। यत् किञ्चिदन्यद् व्यवहारकारणं ददर्श विश्वंसादिवावभासितम् ॥" ( भागवत् १२ । ९ । २८, २९) यह चराचर विश्व परमात्मा का रूप है और यह परमात्मा के भीतर आश्चर्यजनक रूप से प्रतिष्ठित है । इसका ज्ञान योगेश्वर कृष्ण की कृपा से अर्जुन ने साक्षात् प्राप्त किया। कृष्ण ने कहा- हे अर्जुन, मेरे शरीर में एक जगह स्थित चराचर सहित सम्पूर्ण जगत् को देख तथा और भी जो कुछ देखना चाहता हो, वह सब देख । "इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम्। मम देहे गुणाकेश यच्चान्यद्रष्टुमिच्छसि ॥" ( गीता.११ / ६) सामान्य नेत्रों से यह सब देखा जाना किसी के लिये भी संभव नहीं है। इस लिये कृष्ण ने अर्जुन को दिव्य चक्षु दिया। "दिव्यं ददामि ते चक्षुः पश्य में योगमैश्वरम् ॥" ( गीता ११/७) कृष्ण के शरीर के भीतर अर्जुन ने सभी देवताओं, भूतों के समुदायों को, कमलासनस्थ ब्रह्मा को, महादेव को, अषियों को तथा दिव्य सर्पों (सरकने वाले ग्रहों नक्षत्रों वा राशियों) को देखा। “पश्यामि देवांस्तव देव देहे सर्वांस्तथा भूतविशेष संघान् । ब्रह्मणमीशं कमलासनस्थं अषींश्च सर्वानुरागांश्च दिव्यान् ॥" (गीता ११।१५) जिन लोगों के पास महान् तपराशि थी, वे भगवदकृपा से परमात्मा के मुख में, उदर में, वा देह में सम्पूर्ण विश्व को देखे। ईश्वर अनन्त है। उसका मुख अनन्त है। उसका उदर अनन्त है। उसका देह अनन्त है। अतः मुख, उदर, देह परस्पर पर्यायवाची हैं।



Related Posts

img
  • मिस्टिक ज्ञान
  • |
  • 05 September 2025
खग्रास चंद्र ग्रहण
img
  • मिस्टिक ज्ञान
  • |
  • 23 August 2025
वेदों के मान्त्रिक उपाय

0 Comments

Comments are not available.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Post Comment