श्री नारायणदास -
Mystic Power- पुराणों में आता है की लक्ष्मी, शान्ति, पुष्टि, वृद्धि तथा आयु की इच्छा रखने वाले वीर्यवान् पुरुष को ग्रहों की भी पूजा करनी चाहिये। ( पहली शर्त वीर्यवान होना , वीर्य को अकारण या वासना के वशीभूत होकर बहाने वाले यज्ञ के योग्य ही नही है )
तो वीर्यवान बंधुओ नवग्रहों की पूजा में सूर्य, सोम, मङ्गल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु तथा केतु-इन नवग्रहों की क्रमशः स्थापना की जाती है ।
सूर्य की प्रतिमा ताँबे की, चन्द्रमा की रजत या स्फटिक की मङ्गल की प्रतिमा लाल चन्दन की बुध की प्रतिमा सुवर्ण की गुरु की सुवर्ण की शुक्र की रजत की शनि की लोहे की और राहु-केतु की सीसे से बनी प्रतिमा चाहिए होती है ।। इससे शुभ की प्राप्ति होती है। इतना साधन राजाओ या धनाढ्य लोगो के पास ही उपलब्ध होता है ।
इतने साधन नही हो,तो वस्त्र पर उन-उनके रंग के अनुसार वर्णक से उन ग्रहो का चित्र अङ्कित कर लिया जाता है । अथवा मण्डल बनाकर उनमें गन्ध (चन्दन-कुङ्कुम आदि) - से ग्रहों की आकृति बना बना ली जाती है । ग्रहों के रंग के अनुसार ही उन्हें फूल और वस्त्र भी देने दिए जाते है । सबके लिये गन्ध, बलि, धूप और गुग्गुल दी जाति है ।
प्रत्येक ग्रह के लिये (अग्निस्थापन पूर्वक) समन्त्रक चरु का होम होता है ।
आ कृष्णेन रज॑सा वर्त्त॑मानो निवेशय॑न्नमृतं मर्त्यं॑ च।
हिरण्यये॑न सविता रथेना देवो या॑ति भुव॑नानि॒ पश्य॑न् ॥
(यजु० ३३।४३) इत्यादि सूर्य देवता के, 'इमं देवाः०' (यजु० ९।४०; १०।१८) इत्यादि चन्द्रमा के, 'अग्निमूर्धा दिवः ककुत्०' (यजु०१३ । १४) इत्यादि मङ्गल के, उद्बुध्यस्व० (यजु०१५।५४; १८।६१) इत्यादि बुध के, 'बृहस्पते अदित यदिर्यः०' (यजु० २६।३) इत्यादि बृहस्पति के, 'अन्नात्परिश्रुतो० ' (यजु० १९।७५) इत्यादि शुक्र के, 'शं नो देवी: ०' (यजु० ३६ । १२) इत्यादि शनैश्चर के, 'काण्डात् काण्डात्०' (यजु० १३।२०) इत्यादि राहु के और 'केतुं कृण्वन्नकेतवे० ' (यजु० २९ । ३७) इत्यादि केतु के मन्त्र हैं। इन मंत्रों को पूर्णतः वैदिक स्वर में गायन करते हुए मंत्रोचारण होता है ।
आक, पलास, खैर, अपामार्ग, पीपल, गूलर, शमी, दूर्वा और कुशा-ये क्रमशः सूर्य आदि ग्रहों की समिधाएँ हैं। सूर्य आदि ग्रहों में से प्रत्येक के लिये एक सौ आठ या अट्ठाईस बार मधु, घी, दही अथवा खीर की आहुति दी जाति है । गुड़ मिलाया हुआ भात, खीर, हविष्य (मुनि-अन्न), दूध मिलाया हुआ साठी के चावल का भात, दही-भात, घी-भात, तिलचूर्ण मिश्रित भात, उड़द मिलाया हुआ भात और खिचड़ी- इनका ग्रह के क्रमानुसार ब्राह्मण के लिये भोजन दिया जाता है ।।
अपनी शक्तिके अनुसार यथाप्राप्त वस्तुओं से ब्राह्मण का विधिपूर्वक सत्कार करके उनके लिये क्रमशः धेनु, शङ्ख, बैल, सुवर्ण, वस्त्र, अश्व, काली गौ, लोहा और बकरा - ये वस्तुएँ दक्षिणा में दी जाति है । ये ग्रहों की दक्षिणाएँ हैं।
जिस-जिस पुरुष के लिये जो ग्रह अष्टम आदि दुष्ट स्थानों में स्थित हों, वह पुरुष उस ग्रहकी उस समय विशेष यत्नपूर्वक पूजा करनी चाहिए । ब्रह्माजी ने इन ग्रहों को वर दिया है कि जो तुम्हारी पूजा करें, उनकी तुम भी पूजा (मनोरथपूर्तिपूर्वक सम्मान) करना। राजाओं के धन और जाति का उत्कर्ष तथा जगत की जन्म-मृत्यु भी ग्रहों के ही अधीन है; अतः ग्रह सभीके लिये पूजनीय हैं ॥
यदि आप नवग्रह शांति के लिए इतना कर सकते है, तो कीजिये । इसके लिए कितना धन चाहिए, कितना योग्य पंडित चाहिए, यह सब भी विचार कर लीजिए ।।
या जब तक इस यज्ञ के योग्य नही हो जाओ आसान, सरल उपाय हम बताते ही है । की राम राम रटो और गीताजी का पाठ करो । लेकिन उस पर विश्वास नही होता । अब आपको जिसपर अधिक भरोषा हो, वह करो ।। यज्ञ कर लो, सामर्थ्य है तो । कुछ नही है, तो राम नाम पर आ जाओ ।
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