प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि,जलधि लांघि गये अचरज नाहीं॥

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  • धर्म-पथ
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  • 31 October 2024
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पी के सिंह,सेवानिवृत्त अभियंता प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि, जलधि लांघि गये अचरज नाहीं॥ अर्थ- हनुमानजी श्री रामचन्द्र जी की अंगूठी मुंह में रखकर समुद्र को लांघ लिये, इसमें कोई आश्चर्य नहीं है। जानते हैं क्यों? क्योंकि उस अंगूठी पर प्रभु श्रीराम का नाम अंकित है। इस भव सागर से हम सभी जिस प्रभु श्रीराम का नाम लेकर पार हो जाते हैं,तो जिसने राम नाम मुख में धर रखा है वह समुद्र पार कैसे नहीं करते! मित्रों प्रभु श्रीराम का “राम” नाम जप सभी कष्टों का निवारण करते हुए,इस भव सागर से पार कराकर मोक्ष की यात्रा करा देता है। दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥ अर्थ- संसार में जितने भी कठिन से कठिन काम हो, वो आपकी कृपा से सहज हो जाते है। आपको गणिका की याद ताजा कराते हैं जो तोते को राम नाम रटाते इस भव सागर से पार उतर गई। हम और आप जिसे पाने की जिद ठान लेते हैं, उसे पा लेते हैं तो राम नाम की रट लगाने को ठानने भर की तो देर है। मेरे भाई जो कलक्टर है वह भी परेशान है और जो चपरासी है वह भी परेशान है। तो यह तय हुआ कि परेशानी का कारण रुपया या शोहरत तो नहीं है। फिर क्या है? केवल राम नाम का सुमिरन। राम नाम रटने से मेरा अभिप्राय नहीं है,राम नाम को हृदय में धारण करने से है। हनुमान जी मां सीता और लखन सहित प्रभु श्रीराम जी को हृदय में धारण कर रखे थे। हममें जो प्रभु को हृदय में बिठा लेता है। वह भव सागर से पार उतर जाता है। भगवान हृदय में धारण कैसे होंगे?तो बड़ा ही सहज है।भगवान भाव के भूखे हैं और भाव निर्मल हृदय से आता है।निर्मल हृदय धारण करना अपने बस में है,बस यह समझ आ जाय कि इस धरा पर खाली हाथ आये हैं और खाली हाथ जाएंगे।मेरे भाई यह समझिए कि जो आत्मा हमारे शरीर में है वही परमात्मन है।यह शरीर तो उसे ढोने के लिए बना है।जब यह ढोने में सक्षम नहीं रहती है तो आत्मा दूसरा शरीर धारण करती है। हम जो दिख रहे हैं,वह हम नहीं हैं।हम तो एक भुलावा हैं।असली तो आत्मा है और उसके साथ रहने वाली चेतना है।जो कई जन्मों का लेखा जोखा आत्मा के लिए रखती है।हम पिताजी तभी तक हैं जब तक कि इस शरीर में आत्मा है।याद रखें कि आत्माओं की भी एक दुनिया है और वे एक दूसरे को जानती हैं।सभी आत्माओं का लक्ष्य मोक्ष प्राप्त करना है। हम,हम,केवल अन्तिम सांस तक हैं।मरने के बाद मेरा कोई वजूद नहीं रहता है।बस आत्मा बचती है और इस आत्मा को सद्गति दिलाना कुटुम्ब का कर्तव्य है।जब आत्मा शरीर से अलग होती है तो वह सभी आत्माओं से मिलती है और चाहती है कि शरीर द्वारा जो दूसरी आत्माओं को कष्ट पहुंचा है वह उसे माफ कर दें।इसी से आत्मा हल्की होती है और हम पिंडदान करके तीन दिन से लेकर तेरह दिन में आत्मा को शरीर दिलाने में मदद करते हैं।इसके बाद भी जिस आत्मा को शरीर नहीं मिलती है वह प्रेतलोक में चली जाती है और हम बरखी करके उस आत्मा को शरीर दिलाने में मदद करते हैं। मेरे भाई मैं कोई विद्वान नहीं हूँ।बस इतनी सी प्रार्थना है कि लिखने में जो गलती हुई है,कृपया उसे सुधार कर पढ़ लीजियेगा। कवि की पंक्तियां साभार राम कहने से तर जाएगा,पार भव से उत्तर जायेगा । उस गली होगी चर्चा तेरी,जिस गली से गुजर जायेगा । राम कहने से तर जाएगा… बड़ी मुश्किल से नर तन मिला,कल ना जाने किधर जाएगा । राम कहने से तर जाएगा… अपना दामन तो फैला ज़रा,कोई दातार भर जाएगा । राम कहने से तर जाएगा… सब कहेंगे कहानी तेरी,जब इधर से उधर जाएगा । राम कहने से तर जाएगा… याद आएगी चेतन तेरी,काम ऐसा जो कर जाएगा ।



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