श्री शशांक शेखर शुल्ब (धर्मज्ञ )-
Mystic Power - अमावस्या = घोर अन्धकार । वर्ष में १२ अमावस्याएँ होती है। हर मास की प्रत्येक अमावस्या को दीपावली का उत्सव न कर के केवल कार्तिक अमावस्या को ही दीपोत्सव किया/ मनाया जाता है। ऐसा क्यों ? उत्तर स्पष्ट है। कार्तिकमास = संख्या ७। ७ = तुलाराशि। सूर्य तुला राशि में नीच का होता है। सूर्य आत्मा, आंख वेद वचन है...
"सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुपश्च ।"( ऋग्वेद १ । ११५ ।१)
" चक्षोः सूर्यो अजायत ।"*अथर्ववेद १९ । ६।७)
अतएव कार्तिक मास में आत्मा को नीच स्थिति तथा नेत्र की हानि अवस्था होती है। तुला शुक्र की राशि है। सूर्य का नैसर्गिक शत्रु शुक्र है। सूर्य का शत्रु गृह तुला में होना आत्मा एवं नेत्र को निर्बल करता है। आत्मा को बली बनाने एवं नेत्रों को दर्शन शक्ति को दृढ़ करने के लिये कार्तिक अमावस्या को प्रकाशोत्सव मनाया जाता है।
प्रकाशोत्सव- कार्तिक अमावस्या की रात्रि में दीपक जलाना शुक्र स्त्री यह है स्त्री से सुख मिलता है। अतः शुक्र को सुख का कारक माना जाता है। धन से सुख मिलता है। अतः धन को स्त्री (लक्ष्मी) कहते है। कार्तिक अमावस्या में सूर्य एवं चन्द्रमा तुलाराशि में होते हैं। सूर्य दायाँ नेत्र है। चन्द्रमा बायाँ नेत्र है। सूर्य आत्मा (देह) है। चन्द्रमा मन (हृदय) है। इन दोनों की पुष्टि के लिये दीपावली की रात में स्त्री लक्ष्मी पूजन का प्रावधान है। दीपक को ज्योति लक्ष्मी धनदा है। दीपक का धुआँ कालो बलदा है। दीपावली की रात में बनाये गये काजल को नेत्रों में लगाने से दृष्टिबल मिलता है। कार्तिक अमावस्या की रात में दो देवियों लक्ष्मी एवं काली की पूजा विशेष रूप से होती है। धन समृद्धि सुख सौभाग्य की देवी लक्ष्मी है। मुझे ज्ञान एवं हनन कर्म को देवी काली है। जहाँ सामान्य गृहस्थ लक्ष्मी की पूजा करता है, वहीं तांत्रिक एवं अभिचारकर्मी इस रात को काली को पूजा करता है। इन दो शक्तियों को मेरा प्रणाम।
कार्तिक अमावस्या की रात घर के बाहर एवं भीतर सर्वत्र दीप जलाया जाता है, नदियों एवं जलाशयों को दीपदान किया जाता है। दीपक का प्रकाश =ज्ञान। घर के बाहर भीतर प्रकाश का अर्थ है, अन्तर्ज्ञान एवं बाह्य ज्ञान का होना। जो इन दोनों ज्ञानों से युक्त है, वह धन्य है। ऐसे जन की दीपावली नित्य उसके साथ है। तस्मै नमः।
चन्द्रमा मन है। मुन ज्ञानेन्द्रियों का स्वामी या ज्ञान का कारक है। अतः चन्द्रमा में ज्ञान संनिहित है। ज्ञानी वही है, जिसका चन्द्रमा बलवान हो- पक्षबली या गुरुदृष्ट/ युक्त हो ज्ञान = प्रकाश। जिसका चन्द्रमा सुप्रकाशमान सूर्य के सम्मुख सुदूरस्थ वा पूर्ण होता है, वह हानी होता है। जिसका चन्द्रमा दुष्प्रभावों से मुक्त होता हुआ सुबली/बक्री/प्रकाशमान गुरु से पूर्ण दृष्ट/ युक्त होता, वह ज्ञानी होता है। अमावस्या = चन्द्रमा का प्रकाशहीन / अस्त या सूर्य के अतिनिकट युक्त होना अमावस्या का चन्द्रमा बलहीन होता है। अमावस्या = ज्ञान का अभाव, पूर्ण अज्ञान इस अज्ञान को मिटाने का सरल एवं अचूक उपाय है-ज्योति जलाना, दीपोत्सव मनाना जो सदैव ज्योति जलाते हैं, सतत दीपावली मनाते हैं, उन्हें मेरा प्रणाम।
धनेच्छु जन, जिनकी बुद्धि को राहु ने यस लिया है, धनवान होने के लिये दीपावली की रात में जुआ/ सट्टा खेलते हैं। कुछ लोग टोना टोटका करते, जन्तर मन्तर साधते और जागते हैं। कुछ तुच्छ बुद्धि लोग ध्वनि एवं वायु प्रदूषण करते हुए जीवन को नरक बनाते हैं। इन आसुर वृत्ति वालों को मेरा नमस्कार ।
मन को ज्ञान विज्ञानमय बनाये रखना वास्तविक दीपावली है। ज्ञान से राम मिलता है, विज्ञान से रोटी मिलती है। जीवन के लिये ये दोनों महत्वपूर्ण हैं। पेट की भूख रोटी से जाती है। मन की भूख राम से मिटती है। अन्तर्ज्ञान =राम । बाह्य ज्ञान= रोटी। ये दोनों जिन्हें प्राप्त हैं, वे धन्य हैं।
शिवजी कहते हैं-
"गिरिजा ते नर मंद मति,
जे न भजहिं श्रीराम ।"
(लंकाकाण्ड, रा. च. मा.)
हे पार्वती । वे लोग बुद्धिहीन हैं, जो श्री राम का भजन नहीं करते। श्री =लक्ष्मी / सीता राम = विष्णु / ज्ञान। श्रीराम= सीताराम= लक्ष्मीविष्णु - लक्ष्मीविष्णु = बाह्य वैभव, आन्तरिक शान्ति। श्रीराम को भजने का अर्थ है, श्रीराम होना अर्थात् धनवान एवं ज्ञानवान होना। जो युगपत् रूप से धनी एवं ज्ञानी है, वही श्रीराम है। ऐसे जन श्रीराम को मेरा प्रणाम।
श्री= सीता = सित = श्वेतवर्ण दिन।
राम = रहस्यमय = कृष्णवर्ण = रात्रि ।
अतएव, श्रीराम = दिन रात्रि। दिनपति सूर्य है, रात्रिपति चन्द्रमा है। इसलिये श्रीराम = चन्द्रसूर्य = मन तन । श्रीराम को भजने का अर्थ है, मन शन को बली बनाना। मनोबली तथा आत्मबली पुरुष को श्रीराम कहते हैं। ऐसे पुरुष श्रीराम को मेरा प्रणाम।
श्रीराम = सीताराम = सत्-असत् =प्रकाश- अन्धकार= प्रकटतत्व- प्रच्छन्नतत्व = व्यक्त-अव्यक्त = देह-देही = क्षेत्र-क्षेत्री = क्षर-अक्षर = चर-अचर =परिवर्तनशील- कूटस्थ= जड़-चेतन= प्रकृति-पुरुष= सगुण-निर्गुण= साकार निराकार= वर्ण्य-अवर्ण्य।इस तथ्य से जो सुपरिचित है, उसे मेरा प्रणाम।
श्रीराम =राधाकृष्ण। राधा = रा दाने राति, धा धारण पोषणयोः दधाति= सर्व सम्पत्ति देने वाली, धारण पोषण करने वाली शक्ति । कृष्ण = चुम्बक आकर्षक सुन्दर रमणीय मनभावन तत्व ।राधा-कृष्ण=मूलाप्रकृति,अव्यक्त काल पुरुष। रुच् (दीप्तौ, अभिप्रीतौ च रोचते) + मन्=रुक्म=दीप्ति/चमख।रुक्म→रुक्मिणी=दीप्तिवती राधा = प्रकाशदात्री, उष्मा धारिणी सूर्य रश्मि। अतएव, राधा =रुक्मिणी।
राधा कृष्ण = रुक्मिणी कृष्ण= प्रकाश अन्धकार= ज्ञान अज्ञान= विद्या अविद्या= दिन-रात = श्रीराम। श्रीरामाय नमः ।
श्रीराम= स्त्री-पुरुष, नारि-नर, भार्या भर्ता, कोमल-कठोर, वाम-दक्षिण = निष्क्रिय-सक्रिय, शीत-तप्व शान्त-क्षुब्ध यह युग्म अपृथक्य है। इस जोड़ी का अभेद जो जानता है, उसे मेरा प्रणाम ।
श्रीराम = काम-क्रोध। काम सौम्य भाव है। क्रोध रुक्ष भाव है। काम = निर्माणकारी शक्ति। क्रोध = विनशकारी शक्ति। ये दोनों विरुद्ध शक्तियाँ सब में साथ-साथ रहती हैं। एक शक्ति दूसरी कोदना कर रखती है। काम जागृत होने पर क्रोध सो (भाग जाता है। क्रोध जागृत होने पर काम शान्त हो जाता है। श्री से निर्माण होता है। राम से संहार होता है। जहाँ दोनों कार्य एक साथ सम्पन्न होता है, वह संसार ही श्रीराम है। अस्मै नमः।
काम से क्रोध की उत्पत्ति होती है।
"कामात् क्रोधोऽभि जायते।"( गीता २ । ६२ ।)
सृष्टि का जन्म काम से तथा नाश क्रोध से है। संसार वृक्ष का मूल काम है तथा तना क्रोध है। काम-क्रोध का युगपत् स्वरूप हो श्रीराम तत्व है। संसार श्रीराममय है। इसे मेरा प्रणाम। गोस्वामी जी कहते हैं...
'सियाराम सब जगजानी।
करौं प्रनाम जोरि जुग पानी।।"
(बा.का.रा.च.मा.)
सम्पूर्ण संसार को श्रीराममय जानकर दोनों हाथ जोड़कर में उसे प्रणाम करता हूँ।
कुण्डली में सप्तम भाव काम है, लग्न भाव क्रोध है काम का प्रभाव जागृत होने पर उपस्थ स्थान में देखा जाता है। क्रोध का प्रभाव जागृत होने पर सिर स्थान ललाट पर देखा जाता है। इससे मुखमण्डल भयंकर हो जाता है। क्रोध ऊपर है तो काम नीचे है। काम को नीचे से ऊपर लाना तथा क्रोध को ऊपर से नीचे ले जाना एक योगिक साधना है। ऐसे साधक को मेरा नमस्कार ।
चन्द्रमा काम है। सूर्य क्रोध है। चन्द्रमा नीचे है। सूर्य ऊपर है। क्योंकि चन्द्रमा का घर कर्क तथा सूर्य का घर सिंह = ५ है। ५ अधिक/ ऊपर है। ४ कम/ नीचे है। चन्द्रमा स्त्री है। सूर्य पुरुष है। इसलिये स्त्री का स्थान पुरुष के स्थान से नीचे है। किन्तु ४ पहले है, ५ बाद में है। अतएव स्त्री, पुरुष से पहले / आगे है। श्री = चद्रमा ।राम= सूर्य। श्रीराम चन्द्र + सूर्य = ४+५=९। संख्या ९ पूर्ण है अतः श्रीराम पूर्णतत्व है। पूर्णकल्पाय नमः कार्तिक अमावस्या के दिन श्रीराम अयोध्या में प्रवेश करते हैं। फलस्वरूप, वहाँ रात्रि में दीप जलाये जाते हैं। यहीं से दीपावली के पर्व का प्रारंभ होता है। जहाँ युद्ध का भाव न हो, वह स्थान अयोध्या है। मनुष्य का अन्तकरण ही अयोध्या है, जिसमें अयुद्ध की स्थिति हो किस भी प्रकार का द्वन्द्व न हो। निर्द्वन्द्वता हो अयोध्या है अयोध्या में श्रीराम जन्मते हैं, द्वन्द्व होने पर अयोध्या को त्यागते हैं, अरण्य में वास करते हैं। अरण्य = जहाँ रण / लड़ाई / युद्ध न हो = अयोध्या। अर्थात् श्रीराम अयोध्या का कभी भी त्याग नहीं करते श्रीराम अरण्य में राक्षसोंको मारते हैं, रण में रावण को मारते हैं। पुनः अयोध्या में प्रवेश करते हैं। इन्द्ररहित पुरी अयोध्या है। जिसका अन्तःकरण अरण्य / अयोध्या है, वहाँ श्रीराम नित्य विराजते हैं। ऐसे अन्तःकरण में सदा दीपावली का उत्सव होता है। शुद्ध शान्त द्वन्द्वरहित अन्तःकरण में सदा दीपावली का उत्सव होता है। शुद्ध शान्त इन्द्ररहित अन्तःकरण अयोध्या ऐसी अयोध्या नगरी धन्य है सन्तों का अन्तकरण अयोध्या है, अरण्य है। यहाँ नित्य ज्ञान / प्रकाश होता है। जहाँ पर श्रीराम है, वहीं अयोध्या है, वही अरण्य है। अरण्य से उद्भूत विचार आरण्यक हैं। ऋषियों ने अपने अंतकरण को अरण्य बना कर जो विचार व्यक्त किये हैं, वे आरण्यक कहे गये हैं। ये ही उपनिषद हैं। यथा- बृहदारण्यक उपनिषद्, तैत्तिरीय आरण्यक (उपनिषद्) । 【उपनिषद् =ब्रह्मविद्या】 द्वन्द्वरहित अन्तःकरण वाला व्यक्ति अयोध्यावासी है, अरम्पवासी है, ऋषि है, द्रष्टा है, सन्त है, सिद्ध है, साधु है, ज्ञानी है, योगी है, भक्त है, ईश्वर है। तस्मै अस्मै नमः
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