साधना से सफलता

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  • मिस्टिक ज्ञान
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  • 31 October 2024
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श्री शशांक शेखर शुल्ब (धर्मज्ञ)- Mystic Power- " यत् सानोः सानुमारुहद् भूर्यस्पष्ट कर्त्वम्। तदिन्द्रो अर्थं चेतति यूथेन वृष्णिरेजति ॥" ( ऋग्. १/१०/२) अन्वय - यत् सानो : सानुम् आरुहत्, भूरि कर्त्यम् अस्पष्ट । तत् इन्द्रः अर्थं चेतति, वृष्णिः यूथेन एजति । शब्दार्थ – (यत्) जब, साधक, (सानो) पर्वत की चोटी से अर्थात् साधना के एक उच्च शिखर से, (सानुम्) चोटी को, दूसरे शिखर को, (आरुहत्) चढ़ता है, (भूरि) अनेक, (कर्त्वम्) क्रियाकलाप को, (अस्पष्ट) स्पर्श करता है। (तत्) तब, (इन्द्रः) इन्द्र, परमात्मा, (अर्थम्) उसके प्रयोजन या अभीष्ट को, (चेतति) जानता है। (वृष्णिः) सुखों का वर्षक वह देव, (यूथेन) अपने झुंड अर्थात् अनुग्रह- समूह के साथ, (एजति) कांपता है, अर्थात् आता है।   हिन्दी अर्थ - जब (साधक) साधना की एक चोटी से दूसरी चोटी पर चढ़ता है और अनेक क्रियाकलाप करता है, तब परमात्मा उसके अभिप्राय को जानता है और सुखों का वर्षक वह देव अपने झुंड (अनुग्रह- समूह ) के साथ आता है।   अनुशीलन - साधना एक गहन प्रक्रिया है। बिना साधना के जीवन में विकास और प्रगति असंभव है। साधना छोटी हो या बड़ी, यह एक- निष्ठता और तन्मयता का प्रतीक है। साधना में सफलता और असफलता दोनों संभव हैं। इसमें असफलतारूपी विघ्नों को बार-बार ठुकराते हुए आगे बढ़ना होता है। कठिन साधना से लक्ष्मीरूपी प्रकाश के दर्शन होते हैं। यह प्रकाश भी मन्द से लेकर तीव्रतम तक अनेक रूपों में दृश्य है। साधना की सफलता का कोई एक लक्ष्य निर्णीत नहीं है। साधक जैसे जैसे आगे बढ़ता है- सफलता की चोटियाँ दिखाई पड़ती हैं। एक चोटी पर चढ़ जाने पर उसके प्रयत्न की इतिश्री नहीं होती। वह देखता है कि उस चोटी से आगे भी चोटियाँ हैं। वह प्रयत्न करता हुआ एक चोटी से दूसरी चोटी पर पहुँचता है। और फिर उससे ऊँची चोटी पर पहुँचने का प्रयास करता है। इस प्रकार साधना का क्रम चलता रहता है। साधना में भी एक सफलता के बाद दूसरी सफलता और एक सिद्धि बाद दूसरी सिद्धि प्राप्त होती है। साधना में धैर्य न छोड़ना ही सफलता की कुंजी है। जिस प्रकार माता शिशु के प्रयासों को देखती रहती है और अवसर आने पर उसे गोदी में उठा लेती है या आवश्यक सहायता देती है, उसी प्रकार परमात्मा साधक के कठिन प्रयत्नों को देखता रहता है और समय आने पर अपनी पूर्ण कृपा दृष्टि से उसकी समस्त कामनाओं को पूरा कर देता है। मन्त्र इसी सफलता की ओर संकेत करता है।   यह मंत्र योगिराज श्री अरविन्द घोष को अत्यन्त प्रिय था। उन्होंने इसमें साधना के रहस्य का दर्शन किया था।   टिप्पणी- (१) सानो :- सानु अर्थात् पहाड़ की चोटी से।   (२) आरुहत् चढ़ा। आ+रुह् (चढ़ना, भ्वादि) + लङ् प्र. १।   (३) अस्पष्ट- देखा, किया। स्पश् (देखना, आ.) + लुङ् प्र. १ ।   (४) कर्त्वम् कार्य, कर्तव्य । कृ+त्व।   (५) चेतति-देखता है, जानता है। चित् (जानना, देखना, भ्वादि) + लट् प्र. १।   (६) वृष्णिः - वर्षक, सुखों का वर्षक ईश्वर ।   (७) एजति कांपता है, चलता है, आता है। एज् (कांपना, चलना, भ्वादि) + लट् प्र. १ ।



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