सामवेद मे यज्ञ से संबंधित ऋचाएं...

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  • धर्म-पथ
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  • 31 October 2024
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श्री शशांक शेखर शुल्ब (धर्मज्ञ)-   Mystic Power- १. "अञ्जते व्यञ्जते समजते, क्रतुं रिहन्ति मध्वाभ्यञ्जते ।" (साम० १६१४)   यज्ञकर्ता यज्ञ को संस्कृत, अभिव्यक्त और प्रशस्त करते हुए उसे अपनाते से सिक्त करते हैं । २. "अथो यज्ञस्य यत् पयः ।" ( साम० ६०२)   मुझे यज्ञ का रस (सार) प्राप्त हो ।   ३. "अबोध्यग्निः समिधा जनानाम् ।" (साम० ७३ ) लोगों द्वारा दी गई समिधाओं से अग्नि प्रदीप्त हुई । ४. "अयं स होता यो द्विजन्मा ।" (साम० १७७६)   द्विज ही होता (यज्ञकर्ता) होता है ।   ५. "आघा ये अग्निमिन्धते, स्तृणन्ति बर्हिरानुषक् । येषामिन्द्रो युवा सखा ।" (साम० १३३, १३३८)   जो प्रतिदिन अग्नि प्रदीप्त करते हैं (यज्ञ करते हैं), आसन बिछाते हैं, नित्य युवा इन्द्र (परमात्मा) उनका मित्र होता है ।   ६. "आ जुहोता हविषा मर्जयध्वम् ।" (साम० ६३ )   हव्य से यज्ञ करो और यज्ञभूमि को स्वच्छ रखो ।   ७. "आयुर्दधद् यज्ञपतावविरुतम् ।" (साम० ६२८ )   परमात्मा यज्ञकर्ता को अक्षत आयु देता है ।   ८. "इष्टा होत्रा असृक्षत ।" (साम० १५१ )   विद्वानों ने अभीष्ट साधक यज्ञों को जन्म दिया ।   ९. "उपप्रयन्तो अध्वरं मन्त्रं वोचेमाग्नये ।" (साम० १३७९)   यज्ञ में जाकर अग्नि देव के लिए मन्त्र बोलें ।   १०. "ऋषीणां सुष्टुतीरुप यज्ञं च मानुषाणाम् ।" (साम० १०३०)   ऋषियों की स्तुतियों और मनुष्यों के यज्ञ में देव आते हैं ।   ११. "एष ब्रह्मा य ऋत्वियः ।" (साम० ४३८, १७३८ )   ऋतुओं के अनुसार यज्ञ करने वाला ब्रह्मा होता है ।   १२. "कविमग्निमुप स्तुहि सत्यधर्माणमध्वरे ।" (साम० ३२)   यज्ञ में क्रान्तदर्शी और सत्यनिष्ठ अग्नि की स्तुति करो ।   १३. "तं त्वा समिद्भिरङ्गिरो घृतेन वर्धयामसि ।" (साम० ६६१)   विद्वान् समिधा और घी से अग्नि को दीप्त करते हैं ।   १४." त्वमग्ने यज्ञानां होता विश्वेषां हितः ।" (साम० २)   हे अग्नि ! तुम यज्ञ के प्रसारक और लोकहितकारी हो ।   १५. "देवमादनः क्रतुरिन्दुर्विचक्षणः ।" (साम० १३१५ )   यज्ञ देवों का आह्लादक, सोम्य और ज्ञानी है ।   १६. "देवाँ देवयते यज ।" (साम० १०० )   हे अग्नि ! तुम देवभक्तों के लिए देवों को लाओ ।   १७. "देवा यज्ञं नयन्तु नः ।" (साम० ५६ )   देवता हमारे यज्ञ को स्वीकार करें ।   १८. "देवा हविरदन्त्वाहुतम् ।" (साम० १०६६)   देवता प्रदत्त आहुति खावें (स्वीकार करें) ।   १९. "धर्ता दिवो भुवनस्य विश्पतिः ।" (साम० १८४५ )   यज्ञ द्युलोक का धारक और संसार का स्वामी है ।   २०. "प्रति त्यं चारुमध्वरं गोपीथाय प्र हूयसे ।" (साम० १६)   हे अग्नि ! तुम्हें इस सुन्दर यज्ञ में सोम-पान के लिए बुलाते हैं ।   २१. "ब्रह्मा देवानां पदवी: कवीनाम् ।" (साम०९४४)   सोम (ईश्वर) देवों का ब्रह्मा (राजा) और कवियों का मार्गदर्शक है ।   २२. "भद्रो नो अग्निराहुतः ।" (साम० १११, १५५९ )   आहुति दिया हुआ अग्नि हमारे लिए शुभ हो।   २३. "भरामेध्मं कृणवामा हवींषि ।" (साम० १०६५ )   हम यज्ञ में समिधा और हवि डालते हैं।   २४. "मही यज्ञस्य रप्सुदा ।" (साम० १६०२)   यज्ञ की महान् प्रतिष्ठा है ।   २५." यजस्व जातवेदसम् ।" (साम०१०३) अग्नि में यज्ञ करो ।   २६. "यजा देवाँ ऋतं बृहत् ।" ( साम० १५३७)   हे अग्नि ! तुम हमारे लिए देवों को और महान् सत्य को लाओ ।   २७. "यजा स्वध्वरं जनं मनुजातम् ।" (साम० ९६)   हे अग्नि ! तुम यज्ञकर्ता मनुष्य का आदर करो ।   २८. "यज्ञ इन्द्रमवर्धयत् ।" (साम०१२१, १६३९)   यज्ञ इन्द्र (मेघ) को बढ़ाता |   २९. "यज्ञस्य हि स्थ ऋत्विजा ।" (साम० १०७३)   हे इन्द्र और अग्नि ! तुम यज्ञ के ऋत्विज् हो ।   ३०. "यज्ञैः परि भूषत श्रिये ।" (साम० ५६८)   समृद्धि के लिए यज्ञों से (गृहादि को) अलंकृत करो ।   ३१. "यज्ञो जिगाति चेतनः ।" (साम०६७०) चेतन यज्ञ (ईश्वर) चारों ओर जाता है (व्याप्त है)   ३२. "यदि वीरो अनु ष्याद् अग्निमिन्धीत मर्त्यः ।" (साम०  ८२ )   जो वीर पुरुषार्थ करता है और यज्ञ करता है, उसे दिव्य सुख मिलता है।   ३३. "यद् भूमिं व्यवर्तयत् ।" (साम० १२१, १६३९ ) यज्ञ भूमि में चारों ओर फैल जाता है ।   ३४." विश्वे देवा. मम शृण्वन्तु यज्ञम् ।" (साम० ६१० )   सारे देव मेरे यज्ञ को सुनें (स्वीकार करें) ।   ३५. "शर्म भक्षीय दैव्यम् ।" (साम०  ८२ )   यज्ञकर्ता को दिव्य सुख मिलता है ।   ३६." सहस्रदाः शतदा भूरिदावा ।" (साम० १८४५)   यज्ञ अत्यधिक और सहस्रों रूप में सुख देता है।   ३७. "सुब्रह्मा यज्ञः सुशमी वसूनाम् ।" (साम०  ७५० )   यज्ञ श्रेष्ठ ब्रह्मा (वेदज्ञ) और वसुओं को शान्ति देता है ।   ३८. "सुभग भद्रो अध्वरः ।" (साम० १११, १५५९ )   श्रेष्ठ यज्ञ सौभाग्य के लिए हो ।   ३९. "सूरो न हि द्युता त्वं कृपा पावक रोचसे ।" (साम०  ८३)   हे अग्नि ! तुम अपनी ज्योति से सूर्य की तरह चमकते हो ।   ४०. "सूर्यस्य भानुं यज्ञो दाधार ।" (साम०  १८४५ )   यज्ञ सूर्य की किरणों को धारण करता है ।   ४१. "होतारं त्वा वृणीमहे ।" (साम०  ४२०)   हे अग्नि ! देवों को लाने वाले तुमको हम चुनते हैं ।  



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