शास्त्र तथा यज्ञ का अधिकार

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  • 31 October 2024
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अरुण कुमार उपाध्याय (धर्मज्ञ) – भारत में पढ़े लिखे मूर्खों की कमी नहीं है। स्वयं न वेद पढ़ते हैं न कोई यज्ञ करते हैं, पर स्त्रियों या शूद्रों को यह नहीं करना चाहिए यह बताने के लिए बेचैन रहते हैं। किसी ने कुछ भी लिखा हो, यदि अधिकारी लोगों की अवहेलना से वैदिक परम्परा नष्ट हो रही है, तथा शूद्र और स्त्री उसे सुरक्षित रखें तो उनका कृतज्ञ होना चाहिए कि अपने दायित्व से अधिक काम कर दिया। हद तो तब हुई जब नवरात्र के अवसर पर शक्ति पूजा में भी स्त्रियों को मना कर रहे हैं। दुर्गा सप्तशती में ही लिखा है कि सभी स्त्रियां देवी का ही रूप हैं। वेद पढ़ने के लिए कहीं किसी को मना नहीं किया गया है। प्रचलित श्लोक कहा जाता है-स्त्री शूद्र द्विजबन्धूनां त्रयी न श्रुति गोचरा। इसमें सभी द्विजवर्ग को भी शामिल किया गया है। इन सभी वर्गों की विशेषता यजुर्वेद वाजसनेयि संहिता (२२/२२) में दी गई है। पर वे विशेषता या योग्यता वेद पढ़ने के लिए पर्याप्त नहीं है। जैसे कोई कहे कि मेरे पिता वेद के विद्वान थे तो मुझे स्वतः वेद आ जायेगा, यह सोचना भी मूर्खता है। भरद्वाज वेद के सबसे बड़े विद्वान थे पर उनका लड़का यवक्रीत अनपढ़ था। वह ज्ञान प्राप्ति के लिए तपस्या कर रहा था तो इन्द्र ने उसका उपहास किया और कहा कि बिना गुरु से विधिवत पढ़े वेद का ज्ञान नहीं हो सकता है (महाभारत, वन पर्व, अध्याय १३५)। यह वैसा ही है जैसे डाक्टर का बेटा डाक्टर या इंजीनियर का बेटा इंजीनियर हो जाए। किसी के पास बहुत सम्पत्ति है तो वह पैसे से डिग्री नहीं खरीद सकता है। राजा जानश्रुति पैसा देकर रैक्व से ब्रह्म ज्ञान पाना चाहता था। रैक्व ने उसे शूद्र कह कर भगा दिया जबकि वह राजा था (छान्दोग्य उपनिषद्, ४/१/१)। शूद्र शीघ्र दक्षता से कार्य करता है (आशु+ द्रवति = शूद्र), उसका तुरंत पैसा मिलता है। पर ज्ञान इस तरह से नहीं मिलता। इसी तरह कोई स्त्री कहे कि मैंने १० बच्चों को पाला है, मुझे स्वयं वेद का ज्ञान हो जायेगा। इस महान कार्य का वेद अध्ययन से कोई सम्बन्ध नहीं है। वेद मन्त्रों के कई ऋषि स्त्रियां है। शंकराचार्य तथा मण्डन मिश्र के शास्त्रार्थ में मण्डन मिश्र कि पत्नी भारती मध्यस्थ थीं। शंकराचार्य को उनके वेद ज्ञान तथा निष्पक्षता में कोई सन्देह नहीं था। पर आजकल शंकराचार्य के अनुयाई भी स्त्रियों की वेद शिक्षा का विरोध कर रहे हैं। वेद पढ़ने के दो ही माध्यम हैं, जिज्ञासा, तथा गुरु के पास वेदाङ्ग सहित अध्ययन। पढ़ने के लिए सैकड़ों विषय हैं, पर जिसकी जिज्ञासा होगी वही पढ़ा जा सकता है। यज्ञ के बारे में चर्चा हास्यास्पद है। आजकल केवल प्रदर्शन के लिए यज्ञ का नाटक हो रहा है। उन लोगों को यज्ञ के बारे में कुछ पता नहीं है, केवल अपने प्रचार के लिए करते हैं। प्रायः २५ वर्ष पूर्व गायत्री परिवार द्वारा ओड़िशा में राजसूय यज्ञ का आयोजन हुआ। मुझे भी बुलाया गया। मैंने मना कर दिया। नाम से ही स्पष्ट है कि राजसूय यज्ञ राजा का कर्तव्य है, श्रीराम शर्मा का नहीं। इसके अतिरिक्त गीता (३/११-१६) के अनुसार यज्ञ से पर्जन्य तथा पर्जन्य से अन्न होता है। इस यज्ञ में उलटा करना था-जो अन्न उत्पन्न हो चुका है उसे उल्टे सीधे मन्त्र पढ़कर १००० कुण्डों में जलाकर नष्ट करना था। उन्होंने मुझे नास्तिक कहा, मुझे गर्व हुआ कि भगवान श्रीकृष्ण के विचार के अनुसार चल रहा हूँ। गीता के अध्याय ४ में १४ प्रकार के यज्ञों का उल्लेख है जिसमें कहीं भी मन्त्र पढ़कर हवन करने का उल्लेख नहीं है। यह किस प्रकार से यज्ञ है यह समझना कठिन है। इसके दो प्रभाव हैं, मन्त्र तथा भाव द्वारा मानसिक अर्पण, विशेष ओषधि युक्त धुंआ। तैत्तिरीय संहिता में वर्षा कराने के लिए कारीर इष्टि इसी प्रकार का यज्ञ है। करीर के काठ को जलाने पर धुंआ के मोटे कण होते हैं जिन पर मेघ से जल की बून्द बनती है। अधिकांश यज्ञ स्त्रियां ही करती है, जैसे दैनिक ५ महायज्ञ। भोजन पकाने पर अग्नि में पहला हवन स्त्री द्वारा ही होता है। विवाह के समय शपथ लेते हैं कि पति पत्नी साथ मिल कर यज्ञ करेंगे। शतपथ ब्राह्मण आदि में हर स्थान पर यजमान पत्नी का भी वर्णन है।



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