- धर्म-पथ
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31 October 2024
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कृतिका खत्री -प्रवक्ता, सनातन संस्था, नई दिल्ली-
श्रावण मास को प्राकृतिक शीतलता के रूप में ही नहीं, बल्कि मानव-समुदाय के बीच शांति के रूप में देखा जाता है। इस मास में आकाश में मेघों को देखकर लगता है कि लंबे समय से बिछुड़ा कोई सगा-संबंधी आ गया हो। जीव-जंतु से लेकर पेड़-पौधे, नदी-तालाब, वन-उपवन, पर्वत-झरनों तक को लगता है कि हर प्रकार के ताप को हरने वाले भगवान शंकर ने डमरू बजा दिया है।
महादेव का डमरू नाद-सृष्टि का आलौकिक-यंत्र है। जिसकी ध्वनि से अक्षर, शब्द निकले, मंत्र गूंजे। महर्षि पाणिनी को इसी गूँज से महेश्वर सूत्र सुनाई पड़े।
इस स्थिति में गोस्वामी तुलसीदास जी को वर्षा ऋतु के महीने राम सदृश लगते हैं और वे
वर्षा ऋतु रघुपति भगति तुलसी सालि सुदास,
राम नाम बर बरन जुग सावन भादव मास।
कह कर इस ऋतु को सम्मान दे रहे हैं। शास्त्र कहते हैं मनुष्य पशु से भिन्न होकर विशिष्ट तब हुआ, जब उसमें श्रवण शक्ति का विकास हुआ।यही श्रावण मास है, जिसकी पूर्णिमा में श्रवण नक्षत्र का संयोग बनता है।
सावन प्रकृति के देवता महादेव की कृपा प्राप्ति का अवसर देता है। वर्षा-ऋतु में भोलेनाथ कैलाश पर्वत से उतरकर जब पृथ्वी पर आते हैं तो उत्सव का वातावरण बन जाता है। खुशी और आनंद के साथ मनुष्य की आस्था भी हिलोरें लेने लगती है, सूखते पेड़ों और बाग-बगीचों को नया जीवन मिल जाता है, चारों तरफ हरियाली छा जाती है। हरियाली का आशय ही
हरि (पालनकर्ता श्री नारायण) की सत्ता है, जो पृथ्वी की सम्पन्नता का सूचक है। देवशयनी एकादशी को श्रीहरि योगनिद्रा में जाते समय भगवान शिव को अपनी सत्ता का नेतृत्व सौंप देते हैं। शिव मूलत: दानी हैं, कोई कुछ भी मांग ले, सब तथास्तु।
भगवान शिव के प्रिय मास में सोमवार का दिन महादेव के शीश पर विराजते चंद्रमा से ऊर्जा पाने का दिन है! चंद्रमा मन के देवता हैं! सावन मास प्रभु भक्ति का प्रभु मिलन का मास है। यही ऐसा मास है जिसमें महादेव के डमरू-वादन से सृष्टि के कोने-कोने से संगीत गूँजने लगता है।