श्री अरुण कुमार उपाध्याय ( धर्मज्ञ )-
mysticpower- अंग्रेजों द्वारा इतिहास जालसाजी के अनुसार भारत का सम्बन्ध केवल यूरोप (ब्रिटेन) या ब्रिटेन शासित आस्ट्रेलिया सहित था। बीच के देशों से कभी सम्पर्क नहीं हुआ।
भाषा विज्ञान केवल इण्डो-यूरोपियन या उसके छद्म अनुवाद भारोपीय भाषा पर आधारित है, जिसका नाम १८३० से पूर्व विश्व में किसी ने नहीं सुना था। पश्चिम एशिया में सुमेरिया या असीरिया के महत्वपूर्ण आक्रमण ८२४ईपू (नबोनासर) तथा ७५६ ईपू (सेमिरामी) के आक्रमण विफल हुए। किन्तु उस समय इतिहासकारों के अनुसार भारत की सभ्यता आरम्भ नही हुई थी। महावीर तथा बुद्ध के कल्पित समय के समय १६ महाजनपदों से सभ्यता आरम्भ हुई। उन आक्रमणकारियों को किस राज्य ने पराजित तथा नष्ट किया था। ६१२ ईपू में असीरिया की राजधानी निनेवे को सिन्धु पूर्व के मेडेस (मध्य देश) के राजा ने ध्वस्त किया। उस समय के चाप या चाहमान शक का वराहमिहिर तथा ब्रह्मगुप्त ने प्रयोग किया है। इसका बाइबिल में ५ स्थानों पर उल्लेख है तथा यहूदी विश्वकोश में सिन्धु पूर्व के राजा को कहा है। किन्तु इतिहासकार इसका श्रेय ईरान के पश्चिम के मेडेस को दिया जो स्वयं असीरिया शासन का अंग था। जिस समय विक्रमादित्य काल में भारत का पश्चिम एशिया पर प्रभुत्व था तथा ईसा मसीह के बारे में उनके ज्योतिषियों ने बताया, उस समय हूण आक्रमण का वर्णन किया जाता है। जब शालिवाहन काल में ईसा तथा उनके शिष्यों ने भारत में शरण ली, उस समय शक तथा कुषाण आक्रमण कहा जाता है।
भारत में पुराने कैलेण्डर थे, पर भारत के लोग तिथि नहीं देते थे। पर सिकन्दर के इतिहासकारों को बिना कैलेण्डर पता चल गया था कि उसके आक्रमण के ३२६ वर्ष बाद इसवी सन आरम्भ होने वाला है।
जितनी विदेशी मूल की जातियां खनिज क्षेत्रों में हैं, उनको मूल निवासी तथा सभी भारतीयों को विदेशी घोषित कर दिया। एक तरफ उनको मूल निवासी कहते हैं, वही व्यक्ति उनको आस्ट्रेलियाई मूल का कहते है। किन्तु इतिहास-पुराण में आस्ट्रेलिया विषय ज्ञान को अस्वीकार करते हैं।
६०० ईपू के पहले की सभी सभ्यता को Hunter-gatherer, food gathering community आदि कहते हैं। जैसे बिपान चन्द की पुस्तक थी-Food Gathering Communities of Mahabharata, MacMillan India, 2004. उसी वर्ष मेरे महाभारत कालीन ज्योतिष पर भाषण के समय बिपान चन्द ने गर्व सहित कहा था कि उन्होने महाभारत कभी नहीं पढ़ा, पर पूरे विश्व को पढ़ाने के लिए बेचैन थे। आज एक अन्य भारतीय भी गर्व से कह रहे थे कि उन्होंने संस्कृत (या कोई भारतीय साहित्य) नहीं पढ़ा है, पर मुझे पढ़ा कर स्वीकृति लेने के लिए बेचैन थे। मैंने पूछा कि ब्रिटेन तथा आस्ट्रेलिया मार्ग के अन्य देशों से सम्बन्ध रखने के लिए अंग्रेजों ने कब मना किया था तो उन्होंने तथा उनके साथियों ने मुझे तथा मधुसूदन ओझा को संघी, पिछड़ा, पागल आदि कई प्रकार से गालियां दीं तथा मेरी पुस्तक प्रकाशित करने वाले प्रकाशकों, पुस्तकालय में रखने वाले बर्कले, हिन्दू विश्वविद्यालय आदि को भी पागल कहा।
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