किसी व्यक्ति को प्रयत्न करने पर भी निवास के लिये भूमि अथवा मकान न मिल रहा हो, उसे भगवान् वराह की उपासना करनी चाहिये। भगवान् वराह की उपासना करने से, उनके मन्त्रका जप करने से, उनकी स्तुति-प्रार्थना करनेसे अवश्य ही निवासके योग्य भूमि या मकान मिल जाता है।
स्कन्दपुराण के वैष्णवखण्ड में आया है कि भूमि प्राप्त करने के इच्छुक मनुष्य को सदा ही इस मन्त्र का जप करना चाहिये -
ॐ नमः श्रीवराहाय धरण्युद्धारणाय स्वाहा।
ध्यान- भगवान् वराह के अंगों की कान्ति शुद्ध स्फटिक गिरि के समान श्वेत है। खिले हुए लाल कमल दलों के समान उनके सुन्दर नेत्र हैं। उनका मुख वराह के समान है, पर स्वरूप सौम्य है। उनकी चार भुजाएँ हैं। उनके मस्तकपर किरीट शोभा पाता है और वक्षः स्थल पर श्रीवत्स का चिह्न है। उनके चार हाथों में चक्र, शङ्ख, अभय-मुद्रा और कमल सुशोभित है। उनकी बायीं जाँघ पर सागराम्बरा पृथ्वी देवी विराजमान हैं। भगवान् वराह लाल, पीले वस्त्र पहने तथा लाल रंगके ही आभूषणों से विभूषित हैं। श्री कच्छप के पृष्ठ के मध्य भाग में शेषनाग की मूर्ति है। उसके ऊपर सहस्र दल कमल का आसन है और उस पर भगवान् वराह विराजमान हैं।
उपर्युक्त मन्त्र के सङ्कर्षण ऋषि, वाराह देवता, पंक्ति छन्द और श्री बीज है। इसके चार लाख जप करे और घी व मधुमिश्रित खीरका हवन करे।
श्री संदीप वशिष्ठ ज्योतिर्विद