महाप्रकृति पराविद्या अविद्या क्रिया के अलग-अलग दैवता होते हैं। प्रत्येक विद्या दैवत की शक्ति में सूक्ष्मतम तत्व निहित रहते हैं। तत्वयुक्त विद्या दैवत की क्रिया के अनुसार ध्यान भी पृथक् प्रकल्पित हैं। ध्यान के अनुकूल ही महाविद्या के नाम भी भिन्न-भिन्न रखे गये हैं। प्रत्येक महाविद्या की क्रिया के मूलभाव- बीजा-क्षरनाद (मूलबीज) में योगियों, सिद्धों ने प्रत्येक महाविद्या के बीज संयुक्त किए हैं। उस दिव्य 'नादब्रह्म' को ही क्रियाशक्ति के 'बीजमन्त्र' के नाम से जाना जाता है।
https://www.mysticpower.in/astrology/blogs/category/tantra-shashtra
बीजमन्त्र का सतत मनन करने से वह बीज साधक के मन और उसकी जीवनी शक्ति के सम्पुट में दबकर प्रस्फुटित होता है। इस प्रस्फुटन को आधुनिक-विज्ञान की भाषा में 'ब्रोकिंग ऑफ कास्मिक एम्ब्रायो एण्ड जनिसिस ऑफ एलेक्ट्रान्स एण्ड एटम्स' कहा जाता है। इस क्रिया से बीज में निहित अन्तःशक्ति साधक के 'चित्' मन पर प्रभाव डालती है और साधक के 'चित्' अस्तित्व में एक विचित्र प्रकार की महाशक्ति उत्पन्न करती है, जिसे तन्त्रशास्त्र अणिमा, महिमा, गरिमा आदि आठ सिद्धियाँ कहता है। इन सिद्ध-शक्तियों में जो साधक फँस जाता है, वह अपनी इष्ट साधना का लक्ष्य नहीं प्राप्त कर पाता है।
https://mysticpower.in/bhavishya-darshan.php
इस प्रकार के बीजमन्त्र जब भिन्न-भिन्न महाविद्या दैवत शक्ति के भिन्न-भिन्न नाम से जपे जाते हैं, तब साधक को विशेष दैवी सहायता प्राप्त होती है और वह सिद्धि प्राप्त करता है। उस नाम और दैवत के ध्यान युक्त 'नाद' को मन्त्र कहा जाता है।
https://www.mysticpower.in/astrology/
बीजमन्त्रों से बनाये गये मन्त्र पञ्चाक्षरी से लेकर सहस्राक्षरी तक होते हैं। मूल बीज का उपदेश दीक्षाकाल में कायशोधन के लिए दिया जाता है। बीज सहित पूरे मन्त्र का जप साधक को सिद्धि प्रदान करता है।
साभार : पंडित देवदत्त शास्त्री द्वारा लिखित तंत्र सिद्धांत और साधना
Comments are not available.