चाक्षुषी विद्या प्रयोग

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  • तंत्र शास्त्र
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  • 31 October 2024
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अनिल गोविंद बोकील .  नाथसंप्रदाय में  कौल तथा कापालिक दोनो मार्गोमें पूर्णभिषिक्त । और शाक्त-मार्गमे साम्राज्याभिषिक्त । नाथसंप्रदायमें नाम = ज्ञानेन्द्रनाथ ।

शाक्त संप्रदाय का नाम = अखिलेश्वरानन्दनाथ भैरव ।   

 नेत्ररोग होने पर भगवान सूर्यदेव की रामबाण उपासना है। इस अदभुत मंत्र से सभी नेत्ररोग आश्चर्यजनक रीति से अत्यंत शीघ्रता से ठीक होते हैं। सैंकड़ों साधकों ने इसका प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त किया है। सभी नेत्र रोगियों के लिए चाक्षुषोपनिषद् प्राचीन ऋषि मुनियों का अमूल्य उपहार है।

 इस गुप्त धन का स्वतंत्र रूप से उपयोग करके अपना कल्याण करें। 

शुभ तिथि के शुभ नक्षत्रवाले रविवार को इस उपनिषद् का पठन करना प्रारंभ करें। 

पुष्य नक्षत्र सहित रविवार हो तो वह रविवार कामनापूर्ति हेतु पठन करने के लिए सर्वोत्तम समझें। प्रत्येक दिन चाक्षुषोपनिषद् का कम से कम बारह बार पाठ करें। बारह रविवार (लगभग तीन महीने) पूर्ण होने तक यह पाठ करना होता है। 

रविवार के दिन भोजन में नमक नहीं लेना चाहिए। प्रातःकाल उठें। स्नान आदि करके शुद्ध होवें। आँखें बन्द करके सूर्यदेव के सामने खड़े होकर भावना करें कि ‘मेरे सभी प्रकार के नेत्ररोग भी सूर्यदेव की कृपा से ठीक हो रहे हैं।’ लाल चन्दनमिश्रित जल ताँबे के पात्र में भरकर सूर्यदेव को अर्घ्य दें। संभव हो तो षोडशोपचार विधि से पूजा करें। 

श्रद्धा-भक्तियुक्त अन्तःकरण से नमस्कार करके ‘चाक्षुषोपनिषद्’ का पठन प्रारंभ करें। 

ॐ अस्याश्चाक्क्षुषी विद्यायाः अहिर्बुधन्य ऋषिः। गायत्री छंद। 

सूर्यो देवता। चक्षुरोगनिवृत्तये जपे विनियोगः। 

ॐ इस चाक्षुषी विद्या के ऋषि अहिर्बुधन्य हैं। 

गायत्री छंद है। सूर्यनारायण देवता है। नेत्ररोग की निवृत्ति के लिए इसका जप किया जाता है। यही इसका विनियोग है। 

मंत्र इस प्रकार से है 

ॐ चक्षुः चक्षुः तेज स्थिरो भव। मां पाहि पाहि। 

त्वरित चक्षुरोगान् शमय शमय। 

मम जातरूपं तेजो दर्शय दर्शय। 

यथा अहं अन्धो न स्यां तथा कल्पय कल्पय। कल्याणं कुरु करु। 

याति मम पूर्वजन्मोपार्जितानि चक्षुः प्रतिरोधकदुष्कृतानि सर्वाणि निर्मूल्य निर्मूलय। 

ॐ नम: चक्षुस्तेजोरत्रे दिव्व्याय भास्कराय। 

ॐ नमः करुणाकराय अमृताय। 

ॐ नमः सूर्याय। ॐ नमः भगवते सूर्यायाक्षि तेजसे नमः।

खेचराय नमः। महते नमः। रजसे नमः। तमसे नमः। 

असतो मा सद गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मा अमृतं गमय। उष्णो भगवांछुचिरूपः। 

हंसो भगवान शुचिरप्रति-प्रतिरूप:।

ये इमां चाक्षुष्मती विद्यां ब्राह्मणो नित्यमधीते न तस्याक्षिरोगो भवति। न तस्य कुले अन्धो भवति। 

अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग् ग्राहयित्वा विद्या-

सिद्धिर्भवति। ॐ नमो भगवते आदित्याय अहोवाहिनी अहोवाहिनी स्वाहा। 

ॐ हे सूर्यदेव ! आप मेरे नेत्रों में नेत्रतेज के रूप में स्थिर हों। आप मेरा रक्षण करो, रक्षण करो। शीघ्र मेरे नेत्ररोग का नाश करो, नाश करो। 

मुझे आपका स्वर्ण जैसा तेज दिखा दो, दिखा दो। 

मैं अन्धा न होऊँ, इस प्रकार का उपाय करो, उपाय करो। 

मेरा कल्याण करो, कल्याण करो। मेरी नेत्र-दृष्टि के आड़े आने वाले मेरे पूर्वजन्मों के सर्व पापों को नष्ट करो, नष्ट करो। 

ॐ (सच्चिदानन्दस्वरूप) नेत्रों को तेज प्रदान करने वाले, दिव्यस्वरूप भगवान भास्कर को नमस्कार है। 

ॐ करुणा करने वाले अमृतस्वरूप को नमस्कार है। ॐ भगवान सूर्य को नमस्कार है। 

ॐ नेत्रों का प्रकाश होने वाले भगवान सूर्यदेव को नमस्कार है। 

ॐ आकाश में विहार करने वाले भगवान सूर्यदेव को नमस्कार है। 

ॐ रजोगुणरूप सूर्यदेव को नमस्कार है। अन्धकार को अपने अन्दर समा लेने वाले तमोगुण के आश्रयभूत सूर्यदेव को मेरा नमस्कार है। 

हे भगवान ! आप मुझे असत्य की ओर से सत्य की ओर ले चलो। अन्धकार की ओर से प्रकाश की ओर ले चलो। मृत्यु की ओर से अमृत की ओर ले चलो। उष्णस्वरूप भगवान सूर्य शुचिस्वरूप हैं। 

हंसस्वरूप भगवान सूर्य शुचि तथा अप्रतिरूप हैं। उनके तेजोमय रूप की समानता करने वाला दूसरा कोई नहीं है। जो कोई इस चाक्षुष्मती विद्या का नित्य पाठ करता है उसको नेत्ररोग नहीं होते हैं, उसके कुल में कोई अन्धा नहीं होता है। 

आठ ब्राह्मणों को इस विद्या का दान करने पर यह विद्या सिद्ध हो जाती है।  



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