श्रृंगिऋषि कृष्णदत्त जी। Mystic Power- जब बाल्मीकि आश्रम में माता सीता प्रविष्ट हो गईं तो वे बालक युवा होने लगे, आयुर्वेद की विद्या में पारायण हो गए। जब महाराजा राम ने अश्वमेध-याग किया तो उस याग में अश्वमेध के घोड़े को छोड़ने का प्रचलन था जैसा नियम है। उसको किसी ने अंकित नहीं किया। परन्तु उन दोनों पुत्रों! ने अंकित कर लिया। माता सीता ने उनसे कहा पुत्र! ये भगवान राम तुम्हारे पिता मेरे स्वामी का यह अश्व नाम का पशु है, यह अश्वमेध याग का है बाल्मीकि पर उसका निमन्त्रण आया है। तब उन्होंने यह कहा कि अब हम बालक शिक्षा में उत्तीर्ण हो गए हैं। मेरे प्यारे! हनुमान उनके महामन्त्री और लक्ष्मण ये दोनों भ्रमण करते हुए बाल्मीकि आश्रम में आए और उन दोनों पुत्रों! को गमन करके माता सीता से प्रार्थना की हे माँ! अब तू राष्ट्र गृह में चल, तू राज लक्ष्मी है। हमारा उद्देश्य पूर्ण हो गया है क्योंकि जब यह बालक तुम्हारे गर्भ में था तुम्हारी जो गति थी तुम्हारे हृदय का जो एक भाग था, मानो शरीर का एक भाग रुग्ण हो गया तो हमने इस भय से कि तुम्हारा यह रोग शान्त हो जाएगा बाल्मीकि आश्रम में छोड़ा था तो अब वह पूर्ण हो गया है अब तू राष्ट्र गृह में प्रविष्ट हो। माता सीता ने इस वाक्य को स्वीकार कर लिया। मेरे प्यारे! देखो, महामन्त्री हनुमान और वे दोनों बालक गमन करते हुए अयोध्या में आए। अयोध्या में आ करके सीता ने राम चरणों को स्पर्श किया और स्पर्श करके राजेश्वरी याग (अश्वमेध-याग) हुआ और उस याग में राम और सीता दोनों यज्ञमान बने और उनका याग पूर्ण हुआ। पूर्ण होने के पश्चात् माता सीता ने यह कहा कि हे भगवन! अब तुम्हारा यह याग पूर्ण हो गया है, आचार्य के कुल में मैंने कुछ पुत्रेष्टि याग भी पूर्ण कर लिया और आपका राजेश्वरी याग (अश्वमेध-याग) भी पूर्ण हो गया परन्तु अब मुझे यह भान हो रहा है कि याग पूर्ण हुआ और आज से सातवें दिवस मेरी मृत्यु हो जाएगी। माता सीता ने याग की पूर्ण आहुति के सातवें दिवस शरीर को त्यागा। जैसा मैंने कल कहा उसके सातवें दिवस भगवान राम ने शरीर को त्याग दिया, तृतीय दिवस लक्ष्मण ने त्यागा। बारी-बारी उन पांचों ने शरीरों को त्याग करके किसको राज्य का विधाता अधिराज बनाया गया? मैं इस सम्बन्ध में अधिक विवेचना देने नहीं आया हूं। विचार विनिमय यह कि मेरे प्यारे महानन्द जी ने किसी काल में ऐसा कहा कि सीता पृथ्वी में समाहित हो गई, प्रायः उसी को समाना उच्चारण कर लो। वह समाहित नहीं हुई। उसने शरीर को स्थूलता से त्यागा, प्राणायाम के द्वारा त्यागा। क्योंकि वे तो सर्व धर्मात्मा महापुरुष थे, उन्हें पृथ्वी में समाहित होने की क्या आवश्यकता थी? क्योंकि पृथ्वी में समाहित होना आत्म हत्या मानी जाती है और शास्त्रों में आत्म हत्या एक पाप है। तो वह यह पाप कर्म क्यों करते जब कोई अपराध तो किया नहीं था।
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