मूलाधार चक्र

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  • तंत्र शास्त्र
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  • 23 December 2024
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श्री शशांक शेखर शुल्ब 

•चक्र स्थान यह पुरूषों के मेरूदंड के सबसे नीचे तिकोनी हड्‌डी में तथा गुदा के पास रीढ़ खंभ में स्थित होता है।

•महिलाओं में यह डिंबाशय के मध्य में होता है। यह चक्र रीढ़ की हड्‌डी के निचले छोर से थोड़ा बाहर की ओर अवस्थित है (गुदा मूल से दो अंगुल ऊपर और उपस्थ मूल से दो अंगुल नीचहै)।

•केन्द्र : भौतिक शक्ति का मूल स्थान। चक्र व्यक्ति के जीवित रहने की आकांक्षा, कुंडलिनी ऊर्जा के विकास में सहायक है। समस्त पाशविक प्रेरणाएं यहीं से उठती हैं।

•ध्यान: चार दल वाले लाल रंग के कमल का ध्यान।

•आकृति: रक्त रंग के प्रकाश से उज्वलित चार पंखुड़ी वाले कमल के सदृश्य है।

•संबंधित अंग अधिवृक्क ग्रंथि, गुर्दे एवं मूत्राशय।

• अक्षर वं, शं, पं, सं संस्कृति शब्द पीले अथवा सुनहरे रंग से चित्रित। पीले रंग के चौकारे में।

•मंत्र की ब्याहृति: ओउम् सत्यम्, तत्व बीज लं है तथा तत्त्व बीज की गति ऐरावत हाथी के समान सामने की ओर गति है।

•शक्ति का नाम: सत्यम् अर्थात् विज्ञान चक्र, शक्ति, विज्ञान शक्ति मूलाधार और सहस्रार दोनों में होती है।

•ज्ञानेन्द्रिय: सूँघने की शक्ति नासिका का स्थान।

•रंग: चक्र का रंग लाल है, उसके भीतर एक पीले रंग का भी वर्ण होता है।

•तत्त्व स्थान : चौकोर सुवर्ण रंग वाले पृथ्वी तत्त्व का मुख्य स्थान है।

•वायु स्थान: नीचे की ओर चलने वाली अपनावायु का मुख्य स्थान है। इसको मूलाधार में कंदर्प-वायु कहते है।

•लोक : भू लोक है।

•गुण : गंध गुण है।

•कमेन्द्रिय : पृथ्वी तत्त्व से उत्पन्न होने वाली मल त्याग शक्ति गुदा का स्थान है।

•अधिपति देवता: चतुर्भुज ब्रह्मा।

•यंत्र : चतुष्कोण, सुवर्ण रंग पृथ्वी तत्त्व के यंत्र पर ध्यान करना चाहिए।

•नोट: मेजर चक्र मेरूदंड में स्थित होते हैं तथा इनका सीधा संबंध इंडोक्राइन सिस्टम, नर्वस सिस्टम तथा सरकुलेटरी सिस्टम से होता है। यह पृथ्वी तत्त्व प्रधान चक्र है। इसे गणेश चक्र भी कहा जाता है।

•चक्र पर ध्यान करने का फल :आरोग्यता, आनंद, वाक्य और प्रबंध दक्षता। नासिकाग्र दृष्टि के अभ्यास से मूलाधार को सक्रिय किया जा सकता। इस चक्र पर ध्यान के प्रमुख लाभ निम्न हैं: 
•१. यह रीढ़ को शक्ति देता है।
•२. यह रक्त की उत्पत्ति तथा उसकी शुद्धता को बनाए रखता है।
•३. शरीर की गर्मी को संयमित रखता है।
•४. जीवन शक्ति में अभिवृद्धि करता है।
•५. हृदय तथा सेक्स अंगों को शक्ति देता है।
•६. पैरों को शक्ति प्रदान करता है।
•७. मूत्राशय एवं अंडाशय को शक्ति प्रदन करता है।
•८. यह व्यक्ति को खाने, सोने तथा आत्म-रक्षा हेतु प्रेरित करता है तथा खतरों से सचेत रखता है।
•९. जीवन को बनाए रखने तथा गतिशील रखने को प्रेरित करता है। मूलाधार पर ध्यान करने से क्रोध, वासना और लोभ से छुटकारा मिलता है।

चक्र के विकारग्रस्त होने से हानियाँ:
चक्र के कमजोर अथवा निष्क्रियता के कारण निम्न रोग हो सकते हैं:

•१. रीढ़ संबंधी बीमारियाँ ।
•२. अर्थराइटिस ।
•३. रक्त की बीमारियाँ तथा एलर्जी।
•४. हड्डियों तथा घावों का विलंब से ठीक होना।
•५. शरीर के अंगों का विकास न होना।
•६. जीवन शक्ति में कमी।
•७. सेक्स संबंधी रोग।
•८. अनिद्रा, तनाव, हृदय तथा सिर संबंधी रोग।
•९. त्वचा संबंधी रोग।
•१०. आत्महत्या की भावना।
•११. आत्मकेन्द्रित होना, स्वार्थी तथा हिंसा की भावना।
•१२. सामान्य शारीरिक स्वस्थता का अभाव तथा शारीरिक विकास में बाधा उत्पन्न होना।



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  • 08 July 2025
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1 Comments

abc
Chander pal bharti 24 December 2024

बहुत ही उपयोगी जानकारी

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