डॉ। दीनदायल मणि त्रिपाठी (प्रबंध संपादक )-
Mystic Power - श्राद्ध की परिभाषा
पितरों के उद्देश्य से विधिपूर्वक जो कर्म श्रद्धासे किया जाता है उसे कहते हैं-
'श्रद्धया पितॄन् उद्दिश्य विधिना क्रियते यत्कर्म तत् श्राद्धम्।'
श्रद्धा से ही श्राद्ध शब्द की निष्पत्ति होती है-
'श्रद्धार्थमिदं श्राद्धम्', 'श्रद्धया कृतं सम्पादितमिदम्', 'श्रद्धया दीयते यस्मात् तच्छ्राद्धम्' तथा 'श्रद्धया इदं श्राद्धम्'।
अर्थात् अपने मृत पितृगण के उद्देश्य से श्रद्धापूर्वक किये जाने वाले कर्म विशेष को श्राद्ध शब्द के नामसे जाना जाता है। इसे ही पितृयज्ञ भी कहते हैं, जिसका वर्णन मनुस्मृति आदि धर्मशास्त्रों, पुराणों तथा वीरमित्रोदय, श्राद्धकल्पलता, श्राद्धतत्त्व, पितृदयिता आदि अनेक ग्रन्थों में प्राप्त होता है। महर्षि पराशर के अनुसार-'देश, काल तथा पात्र में हविष्यादि विधि द्वारा जो कर्म तिल (यव) और दर्भ (कुश) तथा मन्त्रों से युक्त होकर श्रद्धापूर्वक किया जाय, वही श्राद्ध है ।'-
देशे काले च पात्रे च विधिना हविषा च यत् ।
तिलैर्दभैश्च मन्त्रैश्च श्राद्धं स्याच्छ्रद्धया युतम्॥
महर्षि बृहस्पति तथा श्राद्धतत्त्वमें वर्णित महर्षि पुलस्त्यके वचनके अनुसार-'जिस कर्मविशेषमें दुग्ध, घृत और मधु से युक्त सुसंस्कृत (अच्छी प्रकारसे पकाये हुए) उत्तम व्यंजन को श्रद्धापूर्वक पितृगण के उद्देश्य से ब्राह्मणादि को प्रदान किया जाय, उसे श्राद्ध कहते हैं'-
संस्कृतं व्यञ्जनाचं च पयोमधुघृतान्वितम् ।
श्रद्धया दीयते यस्माच्छ्राद्धं तेन निगद्यते ॥
इसी प्रकार ब्रह्मपुराण में भी श्राद्ध का लक्षण लिखा है-'देश, काल और पात्रमें विधिपूर्वक श्रद्धा से पितरों के उद्देश्य से जो ब्राह्मण को दिया जाय, उसे श्राद्ध कहते हैं'-
देशे काले च पात्रे च श्रद्धया विधिना च यत् ।
पितॄनुद्दिश्य विप्रेभ्यो दत्तं श्राद्धमुदाहृतम्॥
श्राद्ध करने से क्या लाभ है ?
जो प्राणी विधिपूर्वक शान्तमन होकर श्राद्ध करता है, वह सभी पापोंसे रहित होकर मुक्तिको प्राप्त होता है तथा फिर संसार-चक्रमें नहीं आता-
योऽनेन विधिना श्राद्धं कुर्याद् वै शान्तमानसः ।
व्यर्पतकल्मषो नित्यं याति नावर्तते पुनः॥
(कूर्मपुराण)
अतः प्राणीको पितृगणकी सन्तुष्टि तथा अपने कल्याणके लिये भी श्राद्ध अवश्य करना चाहिये। इस संसारमें श्राद्ध करनेवालेके लिये श्राद्धसे श्रेष्ठ अन्य कोई कल्याणकारक उपाय नहीं है। इस तथ्यकी पुष्टि महर्षि सुमन्तुद्वारा भी की गयी है-
श्राद्धात् परतरं नान्यच्छ्रेयस्करमुदाहृतम् ।
तस्मात् सर्वप्रयत्नेन श्राद्धं कुर्याद्विचक्षणः॥
अर्थात् इस जगत्में श्राद्धसे श्रेष्ठ अन्य कोई कल्याणप्रद उपाय नहीं है, अतः बुद्धिमान् मनुष्यको यत्नपूर्वक श्राद्ध करना चाहिये। इतना ही नहीं, श्राद्ध अपने अनुष्ठाताकी आयुको बढ़ा देता है, पुत्र प्रदानकर कुल-परम्पराको अक्षुण्ण रखता है, धन-धान्यका अम्बार लगा देता है, शरीरमें बल-पौरुषका संचार करता है, पुष्टि प्रदान करता है और यशका विस्तार करते हुए सभी प्रकारके सुख प्रदान करता है-
आयुः पुत्रान् यशः स्वर्ग कीर्तिं पुष्टिं बलं श्रियम्।
पशून् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात् ॥
(यमस्मृति, गरुडपुराण, श्राद्धप्रकाश)
श्राद्ध का क्या जीवन के बाद पारलौकिक फल भी होता है ?
इस प्रकार श्राद्ध सांसारिक जीवन को तो सुखमय बनाता ही है, परलोक को भी सुधारता है और अन्त में मुक्ति भी प्रदान करता है-
आयुः प्रजां धनं विद्यां स्वर्ग मोक्षं सुखानि च ।
प्रयच्छन्ति तथा राज्यं पितरः श्राद्धतर्पिताः॥
(मार्कण्डेयपुराण)
अर्थात् श्राद्ध से सन्तुष्ट होकर पितृगण श्राद्धकर्ता को दीर्घ आयु, संतति, धन, विद्या, राज्य, सुख, स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदान करते हैं।
इस बार श्राद्ध पक्ष 17 सितंबर से 2 अक्टूबर तक रहेगा। जिसमें प्रतिपदा तिथि का क्षय है तथा षष्ठी और सप्तमी का श्राद्ध एक ही दिन है। यहां पितृ पक्ष की श्राद्ध तिथियां दिनांक सहित दी जा रही है।
पितृ पक्ष की श्राद्ध तिथियां
17 सितंबर मंगलवार - पूर्णिमा श्राद्ध
18 सितंबर बुधवार - प्रतिपदा श्राद्ध
19 सितंबर गुरुवार - द्वितीया श्राद्ध
20 सितंबर शुक्रवार - तृतीया श्राद्ध
21 सितंबर शनिवार - चतुर्थी श्राद्ध
22 सितंबर रविवार - पंचमी श्राद्ध
23 सितंबर सोमवार - षष्ठी श्राद्ध और सप्तमी श्राद्ध
24 सितंबर मंगलवार - अष्टमी श्राद्ध
25 सितंबर बुधवार - नवमी श्राद्ध
26 सितंबर गुरुवार - दशमी श्राद्ध
27 सितंबर शुक्रवार - एकादशी श्राद्ध
28 सितंबर शनिवार - एकोदिष्ट एकादशी श्राद्ध
29 सितंबर रविवार - द्वादशी श्राद्ध
30 सितंबर सोमवार - त्रयोदशी श्राद्ध
1 अक्टूबर मंगलवार - चतुर्दशी श्राद्ध
2 अक्टूबर बुधवार - सर्व पितृ अमावस्या श्राद्ध
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