श्री सुन्दर कुमार (प्रधान संपादक )-
Mystic Power - गाज़ियाबाद- डॉ. पवन सिन्हा गुरुजी के सान्निध्य में डॉ. कविता अस्थाना जी द्वारा श्री राम लला के बाल स्वरूप की कथा का प्रारंभ हुआ। यह कथा अनेक अर्थों में महत्वपूर्ण है – श्री राम जी के जन्म के बारे में प्रामाणिक जानकारी प्राप्त होना और उनके जीवन से जुड़े अनेक प्रसंगों की सत्यता के बारे में जानना। समाज का एक वर्ग ऐसा भी है जो श्री राम को मिथ, मिथक या कल्पित व्यक्ति मानता है। लेकिन यह भ्रांति है और कुछ लोग जानबूझकर ऐसी भ्रांति फैला रहे हैं जिससे सनातन संस्कृति की हानी होती है। श्रीराम जी के जीवन के अनेक प्रश्नों के उत्तर देने वाली यह कथा बताती है कि श्रीराम जी जन्म कब हुआ था? क्या सच में माँ सीता का स्वयंवर हुआ था? श्री राम जी द्वारा धनुष तोड़े जाने की क्या कथा है? परशुराम जी जब शिव धनुष के टूट जाने पर कुपित हुए तो श्री राम जी ने क्या किया? क्या वे चुपचाप अपने पिता यानी राजा दशरथ का अपमान सहन करते रहे? नहीं, ऐसा कुछ नहीं हुआ था! राम कथा ने जन समुदाय में फैली भ्रांतियों को समाप्त करने का कार्य किया और धर्म की स्थापना, सनातन संस्कृति के संरक्षण का कार्य किया।
श्रीराम जी के भजनों एवं दीप प्रज्वलन से राम कथा का शुभारंभ हुआ और आयोजकों द्वारा व्यासपीठ पर शोभायमान डॉ. कविता अस्थाना जी का तिलक वंदन कर स्वागत एवं अभिनंदन किया गया।
इसके उपरांत प्रो. पवन सिन्हा गुरुजी ने अपने आशीष वचनों से सभी को अनुगृहीत किया और आयोजकों को बधाई दी कि ऐसे समय में जब श्री राम जी की अस्मिता, उनके सत्य होने पर ही अनेक प्रश्न चिह्न लगाए जा रहे हैं, ऐसे समय में राम कथा का आयोजन किया गया। श्री गुरुजी ने अपने संभाषण में विष्णु अवतार और सनातन संस्कृति के वाहक श्री राम जी के जीवन से बहुत कुछ सीखने के लिए प्रेरित किया और यह संकेत भी दिया कि आज का युवा जन श्री राम जी को केवल और केवल राम-रावण युद्ध और सीता माँ के स्वयंवर के साथ ही जोड़कर देखता है। उस युवा वर्ग ने कभी श्री राम को सही से जाना ही नहीं है। बस उतना भर जाना और वैसा ही जाना जैसा टीवी धारावाहिकों में दिखाया जाता है।
श्री राम जी के बारे में असत्य, झूठ और भ्रम फैलाने वाले सोशल मीडिया से बचने की आवश्यकता है। अपने भगवान को जानना है तो शास्त्र पढ़ने होंगे, अपने प्राचीन ग्रंथ पढ़ने होंगे तब हम समझ सकेंगे कि अंतत: श्री राम कौन हैं और क्या हैं? वस्तुत: वे सत्य हैं, इतिहास पुरुष हैं और धर्म की स्थापना के लिए धरती पर जन्म लेते हैं। आज की रामकथा में ये सभी तथ्य उजागर होंगे।
इसके उपरांत डॉ. कविता अस्थाना जी ने श्रीराम जी के बाल जीवन के हर सूक्ष्म से सूक्ष्म रहस्यों को उजागर करते हुए श्रीराम कथा प्रारंभ की और यह बताया कि मेरी इस कथा का आधार श्रीवाल्मीकिकृत रामायण है न कि श्री तुलसी द्वारा रचित राममचरितमानस! इसका कारण है कि श्री वाल्मीकि जी श्री दशरथ जी के मित्र थे और श्री राम जी के समकालीन थे। श्री वाल्मीकि जी ने सीता माँ को अपने आश्रम में आश्रय दिया था इसलिए वे इस कथा के साक्षी भी हैं।
वाल्मीकिकृत रामायण को आधार इसलिए भी लिया गया है क्योंकि श्री राम हमारे पूजनीय तो हैं ही, इसके साथ-साथ वे इतिहास के प्रतीक हैं। जब भी भारत वर्ष का नाम आता है तो उसके साथ श्री राम का नाम आता ही आता है। तो इसलिए हमें इतिहास की दृष्टि से श्री राम को जानना चाहिए जिससे हम अपने भगवान को अच्छे से भज भी सकें और जब युवा जन हमसे प्रश्न करे तो हमें उनके उत्तर भी मालूम होने चाहिए। वाल्मीकिकृत रामायण उस समय का इतिहास, समाज का वर्णन भी करती है लेकिन उसकी शैली काव्यात्मक है इसलिए संभवत: हम उसे इतिहास में शामिल नहीं करा पाए। यह पीड़ा घोर कष्ट देती है। इसलिए हमारे भगवान श्री राम माइथोलॉजी बनकर रह गए जबकि ऐसा नहीं है! श्रीराम सत्य हैं और इतिहास पुरुष हैं। अपनी कथा में वे आगे राजा दशरथ के राज्य, नगर व्यवस्था और प्रजा के सरल एवं शिष्ट स्वभाव, व्यवहार की भी चर्चा करती हैं।
वे अपनी कथा में यह भी स्पष्ट करती हैं कि श्री राम जी से पहले कौशल्या माँ की एक संतान हैं – श्रीराम जी की बहन शांता! कौशल्या की बहन के कोई संतान नहीं थी इसलिए शांता को उन्हें गोद दे दिया था। राजा दशरथा का कोई उत्तरधिकारी नहीं होने के कारण वे चिंतित थे और इसलिए शांता के पति ऋष्यशृंग मुनि जो पुत्रेष्टि यज्ञ के जानकार हैं उनसे पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया जाता है। अब यहाँ सामान्य बुद्धि की जनता और अपनी सनातन संस्कृति की वैज्ञानिकता को स्वीकार न करने वाला युवा जन इस बात का उपहास करता है कि यज्ञ और खीर से संतान की उत्पत्ति कैसे संभव है? लेकिन विज्ञान भी इस बात को स्वीकार करता है कि एक निश्चित आवृत्ति या फ्रीकुएनसी पर जब ॐ का या मंत्रों का उच्चारण किया जाता है तो साउंड एंनर्जी उत्पन्न होती है जिसके हीलिंग इफ़ेक्ट्स होते हैं। यही पुत्रेष्टि यज्ञ में होता है। जब यज्ञ किया जाता है तो उसका हाविष्य विशेष औषधियों से तैयार किया जात है जिसे आयुर्वेद भी मानता है। हाविष्य में विशेष शक्ति होती है। तो खीर में भी विशेष औषधीय गुण हैं जिससे संतान उत्पत्ति होती है। आज भी ऐसी अनेक आयुर्वेदिक दवाइयाँ हैं जो नाना प्रकार के रोगों का उपचार करने में मदद करती हैं।
डॉ. कविता अस्थाना जी अपनी राम कथा में यह स्पष्ट करती हैं कि श्री राम इक्ष्वाकु वंश का ही इतिहास हैं । श्री पुष्कर भटनागर अपनी पुस्तक में प्लेनेटोरियम सॉफ्टवेयर के आधार पर बताते हैं कि प्रभु श्री राम जी का जन्म 10 जनवरी 5114 हुआ था। वे अपनी पीढ़ी में उनतालीसवें (39 वें) व्यक्ति है । बारहवें मास में चैत्र के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र एवं कर्क लग्न में कौसल्या देवी ने दिव्य लक्षणों से युक्त, सर्वलोक वंदित, जगदीश्वर श्री राम को जन्म दिया। श्री राम जी के जन्मोत्सव की धूमधाम और हर्षोल्लास का वर्णन मंत्र मुग्ध करने वाला था।
श्री गुरुमाँ जी ने श्री राम जी की शिक्षा-दीक्षा के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि वाल्मीकिकृत रामायण में श्रीराम जी को स्नातक कहा गया है और वे स्टेट क्राफ़्टशिप, कृषि, मिलिट्री आदि विषयों के ज्ञाता हैं। गुरुकुल में भी श्री राम जी निषाद राज जी गहरी मित्रता थी। तो यह असत्य बात भी खंडित होती है कि राम जी जातिगत भेदभाव मानते थे। श्रीराम जी निरंतर चिंतन करते हैं कि मनुष्य दुखी क्यों है, मोह, प्रेम, वैराग्य क्या है आदि, आदि! योग वशिष्ठ में इसकी चर्चा मिलती है! ऋषि वशिष्ठ द्वारा एक अनुष्ठान हेतु श्री राम और श्री लक्ष्मण को अपने साथ ले जाना, राजा दशरथ का देर से राज़ी होना, गुरु-शिष्य के सम्बन्धों की चर्चा आदि बिन्दुओं को रोचक तरीके से समझाया।
वे कहती हैं कि वाल्मीकिकृत रामायण के अनुसार सीता का स्वयंवर नहीं हुआ था। श्री राम जी और लक्ष्मण जी धनुष देखना चाहते थे। लोहे के आठ पहियों पर रखे सन्दूक में रखा धनुष उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ाने की प्रक्रिया में वह धनुष टूट जाता है। शिर्ध्वज अपनी पुत्री सीता जी को वीर्य शुल्का बताते हैं और कहते हैं कि मैंने यह निश्चय किया था कि जो अपने पराक्रमी इस धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा देगा उसी से मैं सीता का विवाह करूंगा। वापसी के समय शुभ-अशुभ लक्षण, धनुष तोड़े जाने पर श्री परशुरान जी का क्रुद्ध होना, राजा दशरथ का अपमान करना और तब श्री राम का कुपित होकर परशुराम जी की चुनौती को स्वीकार करना आदि घटनाओं का वर्णन किया जात है। यहाँ यह भ्रांति भी टूटती है कि परशुराम जी से क्रोध से वार्तालाप लक्ष्मण जी ने किया था, श्री राम जी एक कोने में चुपचाप खड़े थे। ऐसा नहीं था। हो भी नहीं सकता था, यह उनके पिता के सम्मान का प्रश्न था।
कथा के अंत में डॉ. कविता अस्थाना जी आयोजकों और दर्शा दीर्घा में उपस्थित सभी भक्त जनों का हृदय से धन्यवाद देती हैं और कहती हैं अब हमारा दायित्व है कि इस कथा को जन-जन तक पहुंचाएँ, अपने बच्चों को बताएं ताकी सनातन संस्कृति का संरक्षण और संवर्धन हो सके, हम अपने भगवान श्री राम को सही से जान सकें। श्री राम जी अपनी कृपा हम सभी पर बनाए रखें।
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