श्रीरामचरित मानस व वेद

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  • मिस्टिक ज्ञान
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  • 31 October 2024
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डॉ. दिलीप कुमार नाथाणी ''विद्यावाचस्पति'' mystic power - महाभाष्यकार पतंजलि कहते हैं कि ''ब्राह्मणेन निष्करणो धर्मों षडंगो वेदो अध्येयो ज्ञेयश्चेति।'' अर्थात् ब्राह्मण का नित्य का कर्म है कि वह छ: अंगों सहित वेदों का अध्ययन करे। इसी से वह स्वयं के धर्म की तथा सम्पूर्ण वर्णाश्रम व्यवस्था में रहने वाले सभी जनों के धर्म की रक्षा कर सकता है। वेद का स्वाध्याय आवश्यक है इसलिये ही 'संध्या' का विधान है। ऐसे में हम देखते हैं कि जनसामान्य में ''श्रीरामचरित मानस'' के नित्य पारायण, अखण्ड पाठादि का विशेष प्रचलन है। अस्तु चारों वर्णों के व्यक्ति बहुत ही श्रद्धा एवं भक्ति के साथ श्रीरामचरित मानस जी का पाठ करते हैं। तो इस सन्दर्भ में कारण विशेष होना सिद्ध होता है। https://mycloudparticles.com/ उस कारण को जानने के लिये सूरदास जी का एक प्रसंग यहाँ प्रस्तुत करना अत्यावश्यक है। भक्त सूरदास जी से किसी ने पूछा कि महाराज! आपके एवं तुलसीदास जी के काव्यों में श्रेष्ठ काव्य कौनसा है? भक्त सूरदास जी ने नि:संकोच कह दिया कि मेरा काव्य श्रेष्ठ है। https://www.youtube.com/channel/UCzxQsWNHISmtdC1aNNLufuA/videos प्रश्नकर्ता ने पुन: निवेदन किया है कि महाराज! जनसामान्य तो गोस्वामी जी महाराज के काव्य को श्रेष्ठ कहते हैं। भक्त शिरोमणि सूरदास जी ने प्रत्युत्तर दिया कि गोस्वामी जी ने काव्य नहीं वरन् ''वेद की ऋचाएँ'' लिखी हैं। यही भक्त् शिरोमणि सूरदास जी के वाक्य ही हैं जो ''श्रीरामचरित मानस जी'' के अस्तित्व को प्रकट करते हैं। ये श्रीरामचरितमानस जी वस्तुत: वेद ही है। यही कारण है कि जनसामान्य मानस की चौपाइयों का पाठ करता है, ''श्रीरामचरितमानस'' का अखण्ड पाठ होता है। द्वेष बुद्धि से भी यदि कोई ''श्रीरामचरितमानस'' का सस्वर पाठ करे तो उसे इतना आनन्द का अनुभव होता है कि वह अवर्ण​नीय है। ऐसे में जो श्रद्ध पूर्वक इसका पाठ करे तो उसके आनन्द एवं लाभ की कोई सीमा हीं नहीं रहती। पतंजलि ने जो नित्य ही छ: अंगों सहित वेद के अध्ययन की बात कही है वह 'श्रीरामचरितमानस जी'' के नित्य पाठ से स्वत: ही पूरी हो जाती है। वस्तुत: वेद के अध्ययन का यह एक इतिहास ही है। किसी समय व्यक्ति वेद को उसकी शाखाओं सहित कण्ठस्थ करता था। फिर एक ही वेद की एक या दो शाखाओं के अध्ययन का समय आया आज के समय में चारों वेदों की रुद्री का पाठ तथा ''श्रीरामचरित मानस जी'' का नित्य पाठ ही ब्रह्मयज्ञ के लिये विहित दिखाई देता है। सम्भवत: आगामी समय में केवल *''श्रीरामचरित मानस जी'' का पाठ ही जनसामान्य करता रहेगा। ''वेद'' में सभी का अधिकार नहीं कहा है। वेद के अध्ययन से पूर्व वेदार्थी को उपनीत होना अत्यावश्यक है। ऐसे में ''श्रीरामचरित मानस जी'' एक ऐसा अमूल्य ग्रन्थ गोस्वामी जी ने भगवान् राम की कृपा से रचा है कि वह जनसामान्य का वेद है। अत: यह प्रमाणित हुआ कि जो भी ''श्रीरामचरित मानस जी'' का नित्य पाठ करता है वह वस्तुत: वेद का स्वाध्याय रूप ब्रह्म यज्ञ करता है। वेद ही श्रीरामचरितमानस जी हैं। श्रीरामचरितमानस जी ही वेद हैं।  



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