श्री शशांक शेखर शुल्ब (धर्मज्ञ)-
mysticpower- स्त्री को पत्नी रूप में पाने के लिये पुरुष में क्या अर्हता होनी चाहिये ? इस विषय में वदान्यमुनि का अष्टावक्र के प्रति यह कथन है...
"अनन्यस्त्रीजनः प्राज्ञो हाप्रवासी प्रियंवदः ।
सुरूपः सम्पतो वीरः शीलवान् भोगभुक् छविः ।
दारानुपतयश्च सुनक्षत्रामोत् स्वभर्ता स्वजनोपेत इह प्रेत्य च मोदते ॥"
( अनु. १९/१४ १)
१.अनन्य स्त्रीजनः =ऐसा पुरुष जिस के पास कोई स्त्री न रहती हो। जो स्वीहीन वा अविवाहित हो।
२- प्राज्ञ = बुद्धिमान हो।
३-हि- अप्रवासी= जो निश्चय ही विदेशवासी न हो। स्वदेश में रहने वाला हो। विदेशी न हो कर स्वदेशी हो।
४- प्रियंवद:= प्रिय भाषण करने वाला हो।
५- सुरूप सुन्दर रूप वाला हो। आकर्षक हो ।
६- सम्पतः लोकसम्मानित हो। जिसका सब लोग आदर करते हो।
७- वीरः = पीर / गतिशील / क्रिया शील / शक्तिसम्पन्न हो।
८- शीलवान् = शीलयुक्त / अच्छे अचारण वाला हो।
९- भोगभुक्= भोग भोगने वाला वा भोगेच्छु हो।
१० छवि = जिसमें प्रकाश / दीप्ति / सौन्दर्य / आभा / तेज हो। (छो छिनत्ति असारं छिनत्ति तमो वा छविः) ।
११- दारानुमत यज्ञः च =स्त्री से अनुमति ले कर वा स्त्री को साथ में ले कर यज्ञ सम्पन्न करता हो।
१२- सुनक्षत्र अथ वेहत्= जो अच्छे नक्षत्र में विवाह करने के लिये तैयार हो।
स्वमर्ता स्वजन उपेतः इह प्रेत्य च मोदते= उपयुक्त द्वादश गुणों वाले पुरुषों के साथ ब्याही गई स्त्री अपने पति के साथ तथा पुरुष अपनी भार्यां के साथ इसलोक और मरणोपरान्त परलोक में सुख भोगते है-प्रसन्न रहते हैं।
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