उदर रोगों की सर्वोत्तम औषध मधु

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  • आयुष
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  • 31 October 2024
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डा. दीनदयाल मणि त्रिपाठी (प्रबंध सम्पादक)- आमाशय भोजन का पाचन करता है जिससे रक्त उत्पन्न होकर शरीर के अंग-प्रत्यंग की पुष्टि होती है । अतः स्वास्थ्य आमाशय के ठीक होने पर ही निर्भर है । 

आमाशय दुर्बल होने से पाचनशक्ति न्यून हो जाती है और भोजन को ठीक नहीं पचा सकती । अतः शरीर के सभी अवयवों को यथोचित बल नहीं मिलता । इसलिए व्यक्ति दुर्बलता का ग्रास बन जायेगा । अतः चतुर वैद्य आमाशय की सुरक्षा का विशेष ध्यान रखते हैं और मधु आमाशय को बल देता है । पाचनशक्ति का सहायक है । आमाशय के दोषों और दूषित मल का नाशक है । वमन, हिचकी, अतिसार को मिटाता है । मधु में यह भी गुण है कि जब तक उदर में दूषित मल होता है, उल्टी (कै) और दस्त अधिक आने लगते हैं । उदर के भली-भांति साफ होने पर यह स्वतः बन्द हो जाते हैं और रोगी ठीक हो जाता है । 

उदर और आंतों के रोग गन्ने से चीनी, खांड, गुड़, शक्कर जो बनते हैं इनका सेवन आजकल प्रायः सभी लोग अधिक मात्रा में करते हैं । ये उदर में पड़े रहते हैं और देर से पचते हैं । शरीर इसको पचाकर बहुत देर में उसको शरीर का अंग बनाता है । इसलिए कभी-कभी इस शर्करा पर सूक्ष्म जीवाणु आक्रमण कर देते हैं और तब आंतों में सड़न पैदा हो जाती है और साथ-साथ अपान वायु बिगड़कर गैस बनने लग जाती है । पेट में अफारा हो जाता है । खट्टी डकार आतीं हैं । डकार के साथ सड़ने से उत्पन्न अम्ल मुख में आते हैं जो मार्ग में छाती और गले में जलन पैदा करते हैं । बोलचाल में इसे कलेजे की जलन और चिकित्सकों के शब्दों में दाह कहा जाता है, यद्यपि इसका हृदय से कोई संबन्ध नहीं होता । 

जिन व्यक्तियों का पाचन संस्थान इस प्रकार का हो, अगर वे खांड के स्थान पर मधु खाऐं तो उन्हें कोई कष्ट न हो, क्योंकि मधु की शर्करायें इतनी जल्दी शरीर द्वारा ग्रहण कर रक्तसंचार में मिल जातीं हैं । इसलिए सड़ान्द पैदा होने का अवसर ही नहीं मिलता और कोई विकार पैदा नहीं होता । पेट रोगों में चरक हल्के व दीपक पथ्यों में शहद देने का आदेश देते हैं । आमाशय और आंत्रशोध जैसी अन्न मार्गों की शोथयुक्त अवस्थाओं में मधु देने में भय नहीं होता और ग्रीष्म में अतिसार के रोगियों के लिए भी यह लाभप्रद है । गर्मी में अतिसार के सब रोगियों को आधा पाव जौ के पानी में छः माशे शहद डालकर दिया जा सकता है । इससे लाभ होगा ।



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