युगानुकूल स्मृति

img25
  • NA
  • |
  • 31 October 2024
  • |
  • 0 Comments

श्री अरुण कुमार उपाध्याय (धर्मज्ञ)- Mystic Power-१८ प्रकार की स्मृति होने का मुख्य कारण कहा जाता है कि युग की स्थिति के अनुसार स्मृति होती हैं। यज्ञोपवीत विषय में स्मृति या श्रौत सूत्र में जो लिखा है उससे मेरा कोई विरोध नहीं है। उनमें भी समय अनुसार परिवर्तन है। इनमें विचारणीय विषय हैं- (१) यज्ञोपवीत में जो कर्म काण्ड हो रहा है उसका कितना पालन हो रहा है? अभी केवल नाटक मात्र है। न कोई भिक्षाटन करता है, न ब्रह्मचर्य पालन, न वेदारम्भ। (२) अभी सब काम एक साथ होते हैं। क्या अक्षरारम्भ, उपनयन और वेदारम्भ सभी एक साथ होते थे? (३) स्त्रियां भी निश्चित रूप से पढ़ती थीं। उनके पढ़ने के विषय तथा क्रम क्या था? (४) वेद पढ़ने का अधिकार हो या नहीं, बहुत कम लोग ही वेद पढ़ते थे। अन्य विषय भी उतने ही आवश्यक हैं। ईशावास्योपनिषद् के अनुसार विद्या-अविद्या दोनों आवश्यक हैं, बल्कि अविद्या को अधिक आवश्यक कहा है- अ॒न्धं तमः॒ प्रवि॑शन्ति॒ ये ऽ‍वि॑द्यामु॒पास॑ते। ततो॒ भूय॑ इव॒ ते तमो॒ य उ॑ वि॒द्यायाँ॑ र॒ताः॑॥१२॥ अ॒न्यदे॒वाहुर्वि॑द्यया अ॒न्यदा॑हु॒रवि॑द्ययाः। इति॑ शुश्रुम॒ धीरा॑णां॒ ये न॒स्तद्वि॑चचक्षि॒रे॥१३॥ वि॒द्यां चावि॑द्यां च॒ यस्तद्वेदो॒भयँ॑ स॒ह। अवि॑द्यया मृ॒त्युं ती॒र्त्वा वि॒द्यया॒ ऽमृ॒त॑मश्नुते॥१४॥ https://mysticpower.in/ (५) वेद पढ़ने से कोई आर्थिक लाभ नहीं है। अतः कोई पढ़ना नहीं चाहता है। यदि केवल कह दिया जाय कि तुमको वेद पढ़ने का अधिकार नहीं है तो वह विरोध करेगा पर ऐसा कोई व्यक्ति आजीवन वेद नहीं पढ़ा यद्यपि वह स्वयं विश्वविद्यालय का मुख्य हो। अतः पतञ्जलि ने महाभाष्य में कहा है कि ब्राह्मण को बिना किसी लाभ की आशा में वेद पढ़ना चाहिये। ब्राह्मणेन निष्कारणो धर्मः षडङ्गो वेदोऽध्येयो ज्ञेयश्च इति। (व्याकरण महाभाष्य, १/३/१/३) जीविका छोड़कर ब्राह्मण वेद रक्षा का कर्तव्य पालन करते रहे अतः वे सदा निर्धन रहे। पर म्लेच्छों को वैदिकधर्म नष्ट करने में कठिनाई हो रही है, अतः प्रचार किया कि ब्राह्मणों ने अन्य को वेद नहीं पढ़ने दिया तथा ब्राह्मणों पर अत्याचार और नरसंहार किया, जैसे टीपू सुल्तान ने मेलकोट में किया था। उनकी नकल में अन्य लोग भी बिना कुछ सोचे यह प्रचार कर रहे हैं कि उनको वेद नहीं पढ़ने दिया जाता, यद्यपि यह सदा से उपलब्ध है। (६) विद्या के लिए भिक्षाटन कब और कितना किया जाता था? अभी भारत नहीं, केवल अमेरिका में अधिकांश कॉलेज छात्र अपनी पढ़ाई के खर्च के लिये होटल या दूकान में दैनिक ३-४ घण्टे नौकरी करते हैं। इस वर्ष काठमाण्डू में ऐसे कई छात्रों को देखा। भीख लेना तो किसी के लिए सम्भव नहीं है, गाली के अतिरिक्त कुछ नहीं मिलेगा। भिक्षा मिले या नहीं, चिकित्सा की खर्चीली पढ़ाई का खर्च सरकार को वहन करना चाहिये। यह खर्च बेकार नहीं हो इस लिये केवल योग्यता आधार हो। जो व्यक्ति चिकित्सा पढ़ने के लिए ४० लाख खर्च करेगा, वह रोगी को कभी ठीक नहीं होने देगा। वैसा होने पर उसका व्यवसाय बन्द हो जायेगा। (७) पाठन के तीन स्तर-अक्षरारम्भ, विद्यालय, महाविद्यालय हैं। तीनों के नियम में कुछ अन्तर होगा। (८) साहित्य, विज्ञान तथा शिल्प तीनों के लिए भिन्न नियम होंगे। (९) वेद, या गणित ज्योतिष बहुत कम लोग पढ़ते हैं। संन्यासी की भरमार भी नहीं चाहिए। ढेर योगी मठ के उजाड़। जो पढ़ना चाहें वे पढ़ें। (१०) स्त्रियों की कुछ भी शिक्षा या योग्यता हो, घर का अधिकांश काम उनको ही करना है। सन्तान को जन्म देना तथा पालन केवल वही कर सकती हैं। अतः बाकी काम पुरुष से थोड़ा कम होगा। (११) सेना आदि में भी काम स्त्रियां नहीं करती थीं। पर हर युग में कुछ स्त्रियों ने युद्ध में भाग लिया है- दशरथ के साथ युद्ध में कैकेयी भी गयी थी। इजराइल शत्रुओं से घिरा है, अतः वहां की सभी स्त्रियों को सैन्य शिक्षा मिली है। इसे आपद् धर्म कह सकते हैं। कई स्त्रियां भी ऋषि थीं। बृहद्देवता में वर्णित स्त्री ऋषियों में सभी दिव्य नहीं थी। लोपामुद्रा निश्चित रूप से मनुष्य थी। या गार्गी, मैत्रेयी, उभयभारती ने शास्त्रार्थ किया था। उन लोगों की वैदिक या अविद्या शिक्षा किस प्रकार हुई? (१२) आधुनिक स्थिति में इन नियमों का किस रूप में पालन हो सकता है। कर्मकाण्ड में वर्णित नियमों का तो वर्तमान गुरुकुल में भी पालन सम्भव नहीं है। (१३) इन्ही कारणों से कहा है कि हर युग में अलग स्मृति होती है। पराशर समृति के आरम्भ में कहा है कि यह कलियुग के लिए उपयुक्त है। पाराशर-व्यास-शङ्ख-लिखिता दक्षगौतमौ। शातातपो वसिष्ठश्च धर्मशास्त्र प्रयोजकाः॥५॥ देशे काल उपायेन द्रव्यं श्रद्धा समन्वितम्। पात्रे प्रदीयते यत्तत् सकलं धर्मलक्षणम्॥६॥ (याज्ञवल्क्य स्मृति, अध्याय १) वर्तमान संविधान को आधुनिक स्मृति का एक अंश कहा जा सकता है। वर्तमान स्मृति का निर्धारण कौन करेगा? यह विद्वानों के निःस्वार्थ विचार से ही सम्भव है, वामपन्थ के प्रचारकों द्वारा नहीं।



0 Comments

Comments are not available.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Post Comment