चाक्षुषोपनिषद स्तोत्र

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  • तंत्र शास्त्र
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  • 31 October 2024
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मनोज कुमार भारद्वाज – चाक्षुषोपनिषद स्तोत्र के नियमित जप से आप अपनी नेत्र ज्योति ठीक कर सकते हैं। यह चाक्षुषोपनिषद स्तोत्र इतना प्रभावशाली है की यदि आपको आँखों से सम्बंधित कोई बीमारी है तो एक ताम्बे के लोटे में जल भरकर, पूजा स्थान में रखकर उसके सामने नियमित इस स्तोत्र के २१ बार पाठ करने के उपरान्त उस जल से दिन में ३-४ बार आँखों को छींटे मारने पर कुछ ही समय में नेत्र रोग से मुक्ति मिल जाती है।  बस आवश्यकता है , श्रद्धा, विश्वास की …। किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष  रविवार को सूर्योदय के आसपास आरम्भ करके रोज इस स्तोत्र के ५ पाठ करें।  सर्वप्रथम भगवान सूर्य नारायण का ध्यान करके दाहिने हाथ में जल, अक्षत, लाल पुष्प लेकर विनियोग मंत्र पढ़े। विनियोग मंत्र — ॐ अस्याश्चाक्षुषीविद्याया अहिर्बुधन्य ऋषिः गायत्री छन्दः सूर्यो देवता चक्षुरोगनिवृत्तये  विनियोगः। अब इस चाक्षुषोपनिषद स्तोत्र का पाठ आरम्भ करें …. ॐ चक्षुः चक्षुः चक्षुः तेजः स्थिरो भव।  मां पाहि पाहि।  त्वरितम् चक्षुरोगान शमय शमय।  मम जातरूपम् तेजो दर्शय दर्शय।  यथाहम अन्धो न स्यां कल्पय कल्पय।  कल्याणम कुरु कुरु।  यानि मम पूर्वजन्मोपार्जितानी चक्षुः प्रतिरोधकदुष्क्रतानि सर्वाणि निर्मूलय निर्मूलय।  ॐ नमः चक्षुस्तेजोदात्रे दिव्याय भास्कराय।  ॐ नमः करुणाकरायामृताय।  ॐ नमः सूर्याय।  ॐ नमो भगवते सूर्यायाक्षितेजसे नमः।  खेचराय नमः।  महते नमः।  रजसे नमः।  तमसे नमः।  असतो मां सदगमय।  तमसो मां ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मा अमृतं गमय।  उष्णो भगवाञ्छुचिरूपः।  हंसो भगवान शुचिरप्रतिरूपः।  य इमां चक्षुष्मतिविद्यां  ब्राह्मणो नित्यमधीते न तस्याक्षिरोगो भवति। न तस्य कुल अन्धो भवति।  अष्टौ ब्राह्मणान ग्राहयित्वा विद्यासिद्धिर्भवति। हिंदी भावार्थ — विनियोग –  ‘ॐ इस चाक्षुषी विद्या के ऋषि अहिर्बुध्न्य हैं, गायत्री छन्द है, सूर्यनारायण देवता हैं तथा नेत्ररोग शमन हेतु इसका जाप होता है। हे परमेश्वर, हे चक्षु के अभिमानी सूर्यदेव। आप मेरे चक्षुओं में चक्षु के तेजरूप से स्थिर हो जाएँ। मेरी रक्षा करें। रक्षा करें। मेरी आँखों का रोग समाप्त करें। समाप्त करें। मुझे आप अपना सुवर्णमयी तेज दिखलायें। दिखलायें। जिससे मैं अन्धा न होऊं। कृपया वैसे ही उपाय करें, उपाय करें। आप मेरा कल्याण करें, कल्याण करें। मेरे जितने भी पीछे जन्मों के पाप हैं जिनकी वजह से मुझे नेत्र रोग हुआ है उन पापों को जड़ से उखाड़  दें। हे सच्चिदानन्दस्वरूप नेत्रों को तेज प्रदान करने वाले दिव्यस्वरूपी भगवान भास्कर आपको नमस्कार है। ॐ सूर्य भगवान को नमस्कार है। ॐ नेत्रों के प्रकाश भगवान सूर्यदेव आपको नमस्कार है। ॐ आकाशविहारी आपको नमस्कार है। परमश्रेष्ठ स्वरुप आपको नमस्कार है। ॐ रजोगुण रुपी भगवान सूर्यदेव आपको नमस्कार है। तमोगुण के आश्रयभूत भगवान सूर्यदेव आपको नमस्कार है। हे भगवान आप मुझे असत से सत की और ले जाईये। अन्धकार से प्रकाश की और ले जाइये। मृत्यु से अमृत की और ले चलिये। हे सूर्यदेव आप उष्णस्वरूप हैं, शुचिरूप हैं। हंसस्वरूप भगवान सूर्य, शुचि तथा अप्रतिरूप हैं। आपके तेजोमयी स्वरुप की समानता करने वाला कोई भी नहीं है। जो ब्राह्मण इस चक्षुष्मतिविद्या का नित्य पाठ करता है उसे कभी नेत्र सम्बन्धी रोग नहीं होता है। उसके कुल में कोई अन्धा नहीं होता। आठ ब्राह्मणो को इस विद्या को देने (सिखाने) पर इस विद्या की सिद्धि प्राप्त हो जाती है।  



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