(पं० घनश्याम अग्निहोत्री) ‘स्वस्ति’ का अर्थ है क्षेम, शुभ, मङ्गल तथा कल्याण आदि और ‘क’ का अर्थ है करने वाला। इस प्रकार स्वस्तिक पद का अर्थ है-कल्याण करने वाला। देवताओं के चारों ओर घूमने वाले आभामण्डल का चिह्न ही स्वस्तिक होने के कारण वह देवता का प्रतीक है, इसीलिये शास्त्रमें उसे शुभ माना गया है।* प्रायः सभी धर्मों, सम्प्रदायों एवं मतों में एक शुभ प्रतीक अवश्य निर्धारित किया गया है। पुरातन वैदिक सनातन संस्कृतिका परम मङ्गलकारी प्रतीक स्वस्तिक सभी प्रतीकों में विलक्षण है, इसे हमारे सभी व्रत, पर्व, त्योहार, पूजा एवं हर माङ्गलिक अवसर पर सामान्यतया सिन्दूर, रोरी या कुमकुम से बनाया जाता है। यह शुभ प्रतीक अनादि काल से विद्यमान होकर सम्पूर्ण सृष्टि में व्याप्त रहा है। सभ्यता और संस्कृति के पुरातन लेख केवल हमारे वेद और पुराण ही हैं और हमारे ऋषियों ने उनमें स्वस्तिक का मान प्रस्तुत किया है। पुण्याहवाचन तथा स्वस्तिवाचन में आशीर्वाद-मन्त्र इस प्रकार हैं ॐ आयुष्मते स्वस्ति, ॐ आयुष्मते स्वस्ति, ॐ आयुष्मते स्वस्ति। ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः। स्वस्ति नस्ताक्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥ प्रायः सभी पूजा-पाठमें स्वस्त्ययन (स्वस्तिवाचन) किया ही जाता है जिसमें उक्त पङ्क्तियाँ सम्मिलित रहती हैं। इसमें स्वस्तिककी चार भुजाओंमें विद्यमान प्रतीकरूप चार देवताओंसे मानव-कल्याणहेतु प्रार्थना की गयी है, यथा सब ओर फैले हुए सुयशवाले इन्द्र, सम्पूर्ण विश्वका ज्ञान रखनेवाले पूषा, अरिष्टोंको मिटानेहेतु चक्रके समान शक्तिशाली गरुड एवं बुद्धिके स्वामी ‘बृहस्पति’ हमारे (जनमानसके) कल्याणकी वृद्धि करें। स्वस्तिक किसी क्षेत्रविशेषकी परिधिमें बँधा न होकर सम्पूर्ण ब्रह्माण्डके कल्याणके लिये शुभ है। ‘विष्णुपुराण’ में स्वस्तिकको श्रीहरि (विष्णु)-का प्रतीक एवं ‘गणेशपुराण’ में श्रीगणेशका प्रतीक (स्वरूप) बताया गया है। सनातन संस्कृतिमें इसे देवस्वरूप समझकर घर, दूकान, शुभ स्थानों, बहीखातों आदिमें बनाकर शुभ मङ्गलकी कामना की जाती है और निश्चित तौरपर ऐसा होता भी है। सनातनधर्मके साथ ही दूसरे सम्प्रदायोंमें भी स्वस्तिककी महिमाको स्वीकारा गया है। यहाँ संक्षेपमें कुछ बातें दी जा रही हैं (१) जैन-सम्प्रदाय-इस सम्प्रदायमें स्वस्तिक जिनदेवके चौबीस लक्षणोंमें एक है। इनके समस्त कार्यविधानका आधार ही ‘स्वस्तिक’ है। इनके देवालयोंमें पूजनके समय स्वस्तिक बनाना एवं इसका पूजन करना आदि प्रचलित है। (२) बौद्ध धर्म-इसमें स्वस्तिक अत्यन्त पूज्य माना गया है। भगवान् बुद्धके श्रीचरणोंमें स्वस्तिक अङ्कित था। जहाँ-जहाँ भगवान् बुद्धकी प्रतिमाएँ हैं, वहाँ-वहाँ स्वस्तिक भी उत्कीर्ण हुआ प्रायः मिलता ही है। (३) ईसाई-सम्प्रदाय-क्रॉसकी उत्पत्तिका आधार ही स्वस्तिक है। बेल्जियमके एक लेखक श्रीकॉनराड एल्स्टने ‘दी सेफरान स्वस्तिक’ नामक पुस्तकमें स्वस्तिक का विस्तृत वर्णन किया है। जर्मनी और जापानमें स्वस्तिकका प्रचलन है। हिटलरद्वारा भी इस प्रतीकको अपनाया गया था, पर उसका आकार एण्टीक्लाकवाइज था। जर्मनी की लेबर पार्टी तथा नाजी पार्टी इस प्रतीक को मानती थी। ‘इनसाइक्लोपीडिया ऑफ वर्ल्ड रिलीजन्स’ के पृष्ठ १०४१ में स्वस्तिकका उल्लेख है। इसमें यह उल्लिखित है कि मेसोपोटामियाके सिक्कोंमें तथा स्केण्डिनेवियाके देवता थौर (Thour) के प्रतीक-चिह्नके रूपमें स्वस्तिकका उपयोग किया गया है। इसी इनसाइक्लोपीडियामें यह भी उल्लेख है कि ई० सन् १९१० में जर्मनीके कवि ‘गाइडोवौनलिस्ट’ ने समृद्धिकी वृद्धिके लिये जर्मनीको इस प्रतीकको अपनानेकी सलाह दी थी। जर्मनभाषामें इसे Hooked Cross या ‘हैकेन क्रूज’ कहते हैं। ग्रीकके अभिलेखोंमें इस प्रतीकका उल्लेख ‘क्रक्सगामाटा’ नामसे मिलता है। यूरोपमें कई स्थानोंपर खुदाईमें अभिलेखोंके साथ यह चिह्न भी अङ्कित पाया गया है। साइप्रसमें की गयी खुदाइयोंमें हजारों वर्ष पूर्वकी वस्तुओंमें यह प्रतीक अङ्कित मिला है। ऑस्ट्रिया के अजायबघर में प्रदर्शित ‘अपोलो देवता’ की मूर्ति पर स्वस्तिक अङ्कित है। टर्की, बेल्जियम, आयरलैण्ड, स्काटलैण्ड, इटली, जापान, जर्मनी, कोरिया, चीन, नेपाल आदि देशोंके संग्रहालयोंमें संग्रहीत अनेक मूर्तियों, वस्तुओं, शिला-स्तम्भों, औजारों, ध्वज-दण्डों आदिमें यह प्रतीक सुशोभित हो रहा है। ज्योतिष एवं वास्तु में स्वस्तिक-जातककी जन्मकुण्डली में भी स्वस्तिक बनाया जाता है। नामाङ्क ज्योतिष में इस प्रतीक को प्रतिष्ठा, मान-सम्मान, वृद्धि, जीवन में सफलता तथा उन्नति का प्रतीक माना गया है। वास्तुशास्त्र भी दोष-निवारण के लिये ‘स्वस्तिक’ का उपयोग स्वीकारता है। जहाँ वास्तुदोष हो, वहाँ भवन के 2 प्रवेशद्वार पर नौ अङ्गुल का स्वस्तिक बनाने से घरके समस्त वास्तुदोष स्वतः दूर हो जाते हैं-ऐसी भी मान्यता है। स्वस्तिक के प्रयोग का वैज्ञानिक कारण-विश्व में सकारात्मक ऊर्जा के जितने भी स्रोत (साधन) उपलब्ध हैं, उनमें भगवान् शालग्राम एवं स्वस्तिक ही केवल महास्रोत हैं। शालग्रामजी की स्थापना (पूजा) अधिकारी-भेदसे होती है, परंतु स्वस्तिक तो जनमानसका कल्याण कर ही रहा है। सकारात्मक ऊर्जा प्रायः अदृश्य होती है। वैज्ञानिक हार्टमेण्ट अनसर्टने ‘आवेएंटिना’ नामक यन्त्रद्वारा इस ऊर्जाको मापा है तथा इसकी यूनिट ‘बोविस’ मानी गयी है। इस यन्त्रद्वारा मापी गयी ऊर्जाके कुछ परिमाण इस प्रकार बताये गये हैं क्रम प्रतीक का नाम सकारात्मक ऊर्जा की मात्रा (बोविस)
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