श्री अनिल बोकिल- (ज्ञानेंद्रनाथ)- श्री सुदर्शन चक्र माला मंत्र विनियोग – ॐ अस्य श्रीसुदर्शन चक्र माला मंत्रस्य; अहिर्बुध्य ऋषिः जगती गायत्री छंदः श्री सुदर्शनरुपी श्री नृसिंह देवता, मम समस्त दोष परिहारार्थं जपे विनियोगः । (हाथमें गंध, पुष्प, अक्षत व जल लेके विनियोग कहे वह जल भुमीपर या पुजापात्र मे छोड़े) ऋष्यादि न्यास– शिरसी – श्री अहिर्बुध्य ऋषये नमः। दाहिने हाथ के अंगूठे से सिर का स्पर्श मुखे– जगती गायत्री छंदसे नमः। मध्यमा+अनामिका से मुख का स्पर्श हृदि– श्री सुदर्शनरुपी श्री नृसिंह देवताये नमः। चार उंगलीयों से (अंगूठा छोड़कर) हृदय स्पर्श सर्वांगे- मम समस्त दोष परिहार्थं जपे विनियोगाय नमः। दोनो हाथों के पंजो सें, सिर से पॉव तक स्पर्श करन्यास – हां अंगुष्ठाभ्यां नमः । दोनो हाथोंके तर्जनीसे अंगूठे को स्पर्श हीं तर्जनीभ्यां नमः । दोनो हाथोंके अंगूठेसे दोनो तर्जनीको स्पर्श ह मध्यमाभ्यां नमः । दोनो हाथोंके अंगूठे से दोनो मध्यमाको स्पर्श हुं मध्यमाभ्यां नमः । दोनो हाथोंके अंगूठेसे दोनो मध्यमांको स्पर्श हैं अनामिकाभ्यां नमः । दोनो हाथोंके अंगूठेसे दोनो अनामिका का स्पर्श ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः । दोनो हाथोंके अंगूठे से दोनो कनिष्ठीकांका स्पर्श ह्रः करतल-करपृष्ठाभ्यां नमः। दोनो हाथोंके पंजे एक दुसरे पर आगे- पिछे स्पर्शपूर्वक रगडे (हाथ धोनेजेसी क्रिया) अंग न्यास – हां हृदयाय नमः । (तर्जनी + मध्यमा अनामिकासे हृदयका स्पर्श) ह्रीं शिरसे स्वाहा । (तर्जनी मध्यमा + अनामिकासे सिरका स्पर्श) हूं शिखायै वषट् । (दाहिने हाथकी मुठ्ठी बाँधकर अंगूठा अलग करे व शिखास्थानको स्पर्श करे। है कवचाय हुं । (दाहिने हाथका पंजा बाँए कथेको बाँये हाथ का पंजा दाहिने कंधेको स्पर्श करे हौं नेत्रत्रयाय वौषट् । (तर्जनी + मध्यमा + अनामिका से दोनो आखे व भ्रू मध्यका स्पर्श) हः अस्त्राय फट । (दाहिने हाथकी मुठ्ठी बांधकर तर्जनी व मध्यमा अलग करे व सिरके उपर घुमाकर बाए हाथपर ताली बजाए) ध्यान- सुदर्शन ! नमस्तुभ्य, सहस्त्रारायुत प्रभो। सर्वस्त्र घातिन दैत्यानां, दानवानां बिजृंभणम् । (ह्रदय में ध्यान करें) मानस पूजन- ॐ लं पृथ्वी तत्वात्मकं गंधं समर्पयामि नमः । (अधमुख कनिष्ठांगष्ठ) ॐ हं आकाश तत्वात्मकं पुष्पं समर्पयामि नमः । (अधोमुख तर्जनी अंगुष्ठ) ॐ यं वायु – तत्वात्मकं धुप ध्रापयामि नमः । (उर्ध्व मुख तर्जन्यगुष्ठ) ॐ रं अग्नि – तत्वात्मकं दिपं दर्श्यामि नमः । (उर्ध्व मुख मध्यमांगुष्ठ) ॐ वं जल- तत्वात्मकं नैवेद्यं निवेद्यामि नमः । ( उर्ध्व मुख अनामांगुष्ठ) ॐ सं सर्व – तत्वात्मकं तांबूल समर्पयामि नमः । (उर्ध्व मुख सर्वांगुली) माला मंत्र- ॥ ह्रीं सिद्धये नमः ॥ ॐ ह्रीं सुदर्शन चक्र राज महाज्वल, महावीर, महा उग्र, महा भीम, महा पराक्रम ! ज्वल ज्वल, प्रज्वल प्रज्वल, स्थिर स्थिर, प्रस्फुरय – प्रस्फुरय, धम धम, भिंधि भिंधि; घोर घोर, सु-घोर घोर तर तान छट् तान छट्; प्रच्छट् प्रच्छट्, कह कह, कुहु कुहु, – ल ल ल ल लः; लृ लृ लृ लृ लृः, वम् वम् वम् मधूत्तम मधूत्तम आहा आहा; हा-राम हा-रामम्: ॐ ह्रीं ह्रीं ॐ हूं हूं, क्षं क्षंः ॐ क्षे ॐ क्षैः सर्वमारक्षम्; सर्व शत्रून ग्रासय ग्रासय; भक्षय भक्षय; खादय ॐ ह्रीं पर मंत्र, पर यंत्र, पर तंत्र, पर गुप्तविद्या, – पर सर्व विद्या, पर शक्ति, पर होमान भक्षय भक्षय; एकाहिक ज्वर: व्दयाहिक ज्वर, – त्र्याहिक ज्वर, चातुर्थिक ज्वर; उप ज्वर, शीत ज्वर पक्ष ज्वर; मास ज्वर; सांवत्सरिक ज्वर; सर्व ज्वर; व्दंव्द ज्वर; अक्षि शूल, कुक्षि शूल: पार्श्व शूल, परिवार शूल: सर्व श… सिध्दी – विधान नित्य पूजा-पाठ के बाद भगवान श्रीदत्त, श्रीकृष्ण, या श्रीविष्णु का पूजन करें । चक्रसिध्दी का संकल्प करें। गुरु को (मानस प्रणाम करें। बाद में विनियोग पढकर उदक छोडे । फिर ऋष्यादि न्यास कर षड्ग न्यास करके ह्रदय में श्रीसुदर्शन का ध्यान करें (ध्यानमंत्र पढें ।) फिर मानस पूजन करें। इसकी मुद्रायें लिखी है । यह सभी तांत्रिक क्रियायें किसी जानकार से समझ लेना , फिर “ह्रीं सिध्दये नमः “ से माला मंत्र, प्रसादो स्तु’ तक एक पाठ होगा । इसी प्रकार 108 पाठ होने चाहिए । दो या ढाई घंटों मे होते है । अंतिम याने 108 वा पाठ होने पर कुछ समय शांत बैठकर गुरुमंत्र का जाप करें। गुरु मंत्र ना मिला हो तो – ” ॐ द्रां दत्तात्रेयाय नमः “ का जप करें। सफेद पदार्थों का नैवेद्य दूध शक्कर या मिश्री आदि) दे। बाद में स्वयं ही वह नैवेद्य ग्रहण करें। यह सिध्दी विधान पूर्ण करें।
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