डॉ. दीनदयाल मणि त्रिपाठी ( प्रबंध सम्पादक )-
Mystic Power - पंचतत्त्वों का बना हुआ मानव शरीर ब्रह्माण्ड का ही एक छोटा प्रतिरूप है। परमात्म-प्रभु की असीम कृपा से जन्म के साथ ही मानव को स्वरोदय ज्ञान मिला है। यह विशुद्ध वैज्ञानिक आध्यात्मिक ज्ञानदर्शन है।
मनुष्य की नासिका में दो छिद्र हैं- दाहिना और बाँया। दो छिद्रों में से केवल एक छिद्र से ही वायु का प्रवेश और बाहर निकलना होता रहता है, दूसरा छिद्र बन्द रहता है। जब दूसरे छिद्र से वायु का प्रवेश एवं बाहर निकलना प्रारम्भ होता है तो पहला छिद्र स्वतः ही स्वाभाविक रूप से बन्द होता है। अर्थात् एक छिद्र क्रियाशील रहता है तो दूसरा बन्द हो जाता है। इस प्रकार वायु के संचार की क्रिया- श्वास-प्रश्वास को ही स्वर कहते हैं। स्वर ही श्वास है, श्वास ही जीवन का प्राण है। स्वर का दिन-रात चौबीस घण्टे बना रहना ही जीवन है और स्वर का बन्द होना मृत्यु का प्रतीक है।
स्वर का उदय सूर्योदय के समय के साथ प्रारम्भ होता है। साधारणतया स्वर प्रतिदिन प्रत्येक ढाई घड़ी पर अर्थात् एक घण्टे के बाद दायाँ-से-बायाँ और बायाँ-से- दायाँ बदलता है और इन घड़ियों के बीच स्वरोदय के साथ पाँच तत्त्व - पृथ्वी (२० मिनट), जल (१६ मिनट), अग्नि (१२ मिनट), वायु (८ मिनट) एवं आकाश (४ मिनट) भी एक विशेष समय-क्रम से उदय होकर क्रिया करते हैं। प्रत्येक (दायाँ-बायाँ) स्वर का स्वाभाविक गति से एक घण्टे में ९०० श्वास-संचार का क्रम होता है और पाँच तत्त्व ६० घड़ी में १२ बार बदलते हैं।
एक स्वस्थ व्यक्ति की श्वास-प्रश्वास क्रिया दिन-रात अर्थात् २४ घण्टे में २१६०० बार होती है। नासिका के दाहिने छिद्र को दायाँ स्वर या सूर्य स्वर या पिंगला नाडी- स्वर कहते हैं तथा बाँयें छिद्र को बायाँ स्वर या चन्द्र स्वर या इडा नाडी-स्वर कहते हैं। कभी-कभी दोनों छिद्रों से वायुप्रवाह एक साथ निकलना प्रारम्भ हो जाता है, जिसे सुषुम्णा नाडी-स्वर कहते हैं। इसे उभय स्वर भी कहते हैं। इन स्वरों का अनुभव व्यक्ति स्वयं ही करता है कि कौन-सा स्वर चलित है,कौन-सा स्वर अचलित है । यही स्वरविज्ञान ज्योतिष है।
Comments are not available.