वसन्त ऋतु में हरीतिकी सेवन अमृतोपम

img25
  • आयुष
  • |
  • 31 October 2024
  • |
  • 0 Comments

डॉ. दीनदयाल मणि त्रिपाठी (प्रबंध संपादक) हरीतकी को वैद्यों ने चिकित्सा साहित्य में अत्यधिक सम्मान देते हुए उसे अमृतोपम औषधि कहा है। 

राज बल्लभ निघण्टु के अनुसार- यस्य माता गृहे नास्ति, तस्य माता हरीतकी। कदाचिद् कुप्यते माता, नोदरस्था हरीतकी ॥ 

https://mysticpower.in/astrology/

(अर्थात् हरीतकी मनुष्यों की माता के समान हित करने वाली है। माता तो कभी-कभी कुपित भी हो जाती है, परन्तु उदर स्थिति अर्थात् खायी हुई हरड़ कभी भी अपकारी नहीं होती। ) हरीतिकी उत्पत्ति की पौराणिक कथा एक समय भगवान दक्ष प्रजापति से दोनों अश्विनी कुमारों ने पूछा- ‘हे भगवान, हरीतकी (हरड़) किस प्रकार उत्पन्न हुई और हरीतकी की कितनी जातियाँ हैं तथा उसके कौन-कौन से रस, उप रस हैं एवं उसके कितने नाम हैं। 

इस पर दक्ष प्रजापति ने कहा- ‘एक समय देवराज इंद्र अमृतपान कर रहे थे। अमृतपान करते समय उनके मुख से एक बूँद अमृत पृथ्वी पर गिर पड़ा। उसी गिरी हुई अमृत की बूँद से सात जाति वाली हरीतकी उत्पन्न हुई। हरीतकी की सात जातियाँ इस प्रकार हैं : 

1. विजया 2. रोहिणी 3. पूतना 4. अमृता 5. अभया 6. जीवन्ती तथा 7. चेतकी- दक्षं प्रजापतिं स्वस्थमाश्विनी वाक्यमूचतुः । कुतो हरीतकी जाता तस्यास्तु कति जातयः ॥| १ ||



0 Comments

Comments are not available.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Post Comment