आयुर्वेद का प्रयोजन

img25
  • आयुष
  • |
  • 31 October 2024
  • |
  • 0 Comments

डॉ.दीनदयाल मणि त्रिपाठी (प्रबंध सम्पादक)- 

प्रयोजनं चास्य स्वस्थस्य स्वास्थ्यरक्षणमातुरस्य विकारप्रशमनं च।   

“इस आयुर्वेद का प्रयोजन स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना और रोगी व्यक्ति के रोग को दूर करना है।”   इस संदर्भ में आयुर्वेद का प्रयोजन सिद्ध करते हुए कहा गया है-   

आयुः कामयमानेन धमार्थ सुखसाधनम् ।आयुर्वेदोपदेशेषु विधेयः परमादरः ॥ (अ० सं० सू०-१/२)     

https://mysticpower.in/astrology/adhyatmic-kendra

आयु-   आयुर्वेद का अर्थ प्राचीन आचार्यों की व्याख्या और इसमें आए हुए ‘आयु’ और ‘वेद’ इन दो शब्दों के अर्थों के अनुसार बहुत व्यापक है। आयुर्वेद के अनुसार आयु चार प्रकार की होती है- हितायुः, अहितायुः, सुखायुः, दुःखायु । महर्षि चरक के ही अनुसार- इन्द्रिय, शरीर, मन और आत्मा के संयोग को आयु कहते हैं । धारि, जीवित, नित्यग, अनुबंध और चेतना-शक्ति का होना ये आयु के पर्याय हैं ।   शरीरेन्दि्रयसत्वात्मसंयोगो धारि जीवितम् ।नित्यगश्चानुबन्धश्च पर्प्यायैरायुरुच्यते ॥ (च०सू० १/४२)   प्राचीन ऋषि मनीषियों ने आयुर्वेद को ‘शाश्वत’ कहा है और अपने इस कथन के समर्थन में तीन अकाट्य युक्तियां दी हैं यथा-   सोयेऽमायुर्वेद: शाश्वतो निर्दिश्यते,अनादित्वात्, स्वभावसंसिद्धलक्षणत्वात्, भावस्वभाव नित्यत्वाच्च। (चरक संहिता सूत्र, 30/26)   अर्थात् यह आयुर्वेद अनादि होने से, अपने लक्षण के स्वभावत: सिद्ध होने से, और भावों के स्वभाव के नित्य होने से शाश्वत यानी अनादि अनन्त है।     

आरोग्य तथा रोग-   धर्मार्थकाममोक्षाणाम् आरोग्यं मूलमुत्तमम् ।रोगास्तस्यापहर्तारः श्रेयसो जीवितस्य च ॥ -चरकसंहिता सूत्रस्थानम् – १.१४   धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का मूल (जड़) उत्तम आरोग्य ही है। अर्थात् इन चारों की प्राप्ति हमें आरोग्य के बिना नहीं सम्भव है।   कविकुलगुरु कालिदास ने भी इसी विचार को प्रकट करने के लिए कहा है कि   शरीरमाद्यं खलुधर्मसाधनम्   अर्थात् धर्म की सिद्धि में सर्वप्रथम, सर्वप्रमुख साधन (स्वस्थ) शरीर ही है। अर्थात् कुछ भी करना हो तो स्वस्थ शरीर पहली आवश्यकता है।



0 Comments

Comments are not available.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Post Comment