श्री सुशील जालान-
Mystic Power- * विभिन्न योगासन, प्राणायाम, बन्ध, मुद्रा आदि योग क्रियाओं से मूलाधार चक्र में, मेरुदंड के आधार में, चेतना शक्ति का आभास होता है।
* चार मुख्य योगासन हैं। सुखासन, वज्रासन, पद्मासन और सिद्धासन। शक्ति जागरण के लिए इनका बदल बदल कर अभ्यास आवश्यक है।
* मूलाधार ऊपर उठकर स्वाधिष्ठान चक्र तक आ जाता है और वीर्य का ऊर्ध्वगमन संभव होता है। यही उद्देश्य है उपरोक्त योगासनों का। यह है मूलबंध।
* अनुलोम-विलोम प्राणायाम के अभ्यास से प्राणवायु सूक्ष्म होती है, और उज्जायी प्राणायाम से नाड़ी शोधन क्रिया सम्पन्न की जाती है। इससे इड़ा और पिंगला नाड़ियों के अवरोध समाप्त होते हैं।
* नाड़ी शोधन से सूक्ष्म प्राण मूलाधार-स्वाधिष्ठान चक्र युग्म में प्रवेश करता है, जब प्राण और अपान वायु सम हो जाते हैं।
* अश्विनी मुद्रा के बारम्बार उपयोग से साढ़े तीन वलय लिए हुई शक्ति को जाग्रत किया जाता है। यह शक्ति स्वाधिष्ठान चक्र से ऊपर उठने का प्रयत्न करती है और इसका सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश सम्भव हो पाता है।
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* जैसे जैसे सुषुम्ना नाड़ी शोधन क्रिया से शुद्ध होती जाती है, सूक्ष्म प्राणवायु वीर्य के साथ, ऊर्ध्वगमन करता है मेरुदंड में और नाभि के पीछे स्थित मणिपुर चक्र में शक्ति का प्रवेश संभव होता है।
* मणिपुर चक्र वेध के पश्चात् उपरोक्त योग क्रियाओं के साथ उड्डियान बंध लगाया जाता है जिससे सूक्ष्म प्राणवायु, वीर्य और शक्ति, हृदय स्थित अनाहत चक्र में प्रविष्ट होते हैं।
* अनाहत चक्र में अधिकारी योगी को ही प्रवेश मिलता है, जिसने त्याग और वैराग्य से अपने मन को वश में कर लिया है। अनाहत में ही अपरा परापरा और परा का भेद प्रकट होता है।
* शक्ति अपने प्रबल स्वरूप में दृष्टिगोचर होती है, जिसे सक्षम योगी ही साध सकता है। यह है शक्ति का उच्छवास अनाहत चक्र में जहां आत्मबोध संभव होता है।
* यह दीक्षा कुंडलिनी शक्ति जागरण के लिए दी जाती है योग्य शिष्य को, जिसमें आसक्ति न हो सांसारिक विषयों के प्रति और जब वह पूर्णतया समर्पित हो अपने इष्ट/आध्यात्मिक गुरू के प्रति।
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